ये साल बहुत मामलो में सभी को निराशा के सिवा और कुछ नहीं दे पा रहा है, पहले कोरोना जैसी महामारी और उसी में अपने दो प्रतिभा के धनी अभिनेताओं को खोना फिल्म इंडस्ट्री ही नहीं बल्कि देश और विदेश में रहने वाले उनके फैंस के लिए भी किसी झटके से कम नहीं है. जी हां, हम ऋषि कपूर और इरफान खान की बात कर रहे हैं. दोनों ही एक्टर्स ने कैंसर से किसी योद्धा की तरह अपनी लड़ाई लड़ी लेकिन आखिर में इस रोग ने उन्हें अपने आगोश में ले लिया. आपको बता दें कि दोनों ही स्टार्स अपने जीवन के सबसे कठिन लड़ाई में अकेले नहीं थे बल्कि उनके साथ किसी चट्टान की तरह उनकी पत्नियां हर पल बनी हुईं थीं. तो चलिए आपको बताते हैं दोनों स्टार्स की लाइफ पार्टनर्स द्वारा उनके जीवन में निभाए गए कुछ अहम किरदार.
ऋषि कपूर और नीतू कपूर ने कुल 40 साल एक साथ बिताये, जिसमे उन्होंने हर तरह के सुख हो या दुख दोनों का मिलकर सामना किया. नीतू किसी चट्टान की तरह ऋषि के साथ उनके कैंसर के इलाज के दौरान न्यू यॉर्क में थी. यहां तक की वह भारत भी तब ही लौटी जब ऋषि को वहां से कुल एक साल बाद डिस्चार्ज कर दिया गया. ऋषि अपनी कीमोथेरपी ट्रीटमेंट के दौरान मुस्कुराना न भूलें, जीना ना भूलें नीतू इसका पूरा ध्यान रखती थीं. वह एक सच्ची जीवनसाथी की तरह हमेशा उन्हें ज्यादा से उम्मीदें और सहायता प्रदान किया करती थीं.
दूसरी तरफ लाइम लाइट से दूर रहने वाली इरफान की पत्नी सुतापा उनकी 25 साल की शादी में हर कदम में उनकी ताकत बनी रहीं. आप में से बहुत कम लोग यह बात जानते होंगे कि सुतापा स्क्रीन के पीछे इरफ़ान के लिए डायलॉग्स लिखने से लेकर उन्हें हर कदम पर अपना सपोर्ट दिया करती थी. ये कहना गलत नहीं होगा कि यह इरफ़ान के लिए उनका प्यार था.
आपको यह बात जानकर हैरानी होगी कि नीतू और ऋषि की लव स्टोरी बिल्कुल भी लव अट फर्स्ट साइट नहीं थी. यहां तक कि नीतू ने एक बार कहा था कि उन्हें ऋषि पसंद नहीं थे, क्योंकि वह बेहद बदमाश थे और वह अक्सर उनके साथ शूटिंग के दौरान उनके कपड़े और मेकअप पर कमेंट किया करते थे. हालांकि, चीजें ऐसी नहीं रही वक्त बीता और दोनों बेहद अच्छे दोस्त बन गए. एक वक्त ऐसा था जब ऋषि ने नीतू से मदद ली थी, अपनी एक गर्लफ्रेंड को इंप्रेस करने के लिए, लेकिन तब उन्हें यह समझते देर नहीं लगा कि उनका झुकाव नीतू की तरफ है. यूरोप जाने के बाद ऋषि ने नीतू को टेलीग्राम किया था और उन्होंने उसमें लिखा था "यस सिखणी बड़ी याद आती है." इतना ही नहीं ऋषि ने नीतू को यह भी कहा था कि वह सिर्फ उनको डेट करेंगे और शादी नहीं. हालांकि नीतू ने भी हार नहीं मानी और एक पल ऐसा आया जब ऋषि ने खुद नीतू को शादी के लिए प्रपोज किया.
दूसरी तरफ बात करें इरफान और सूतापा की बेहद ना के बराबर जाने जानें वाली लव स्टोरी की तो, उनकी मुलाकात पहली बार नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में पढ़ते हुए एक दूसरे से हुई थी. फिल्मों से जुड़ी बारीकियां सीखने के दौरान दोनों का प्यार भी परवान चढ़ा और दोनों के रिश्ते की मजबूत कड़ी उनके सिनेमा को लेकर एक तरह का प्यार और जुनून था. साल 1988 में इरफान को मीरा नायर की फिल्म 'सलाम बॉम्बे' के जरिए अपना पहला बॉलीवुड ब्रेक मिला था. यह उनके लिए एक बेहद बड़ी उपलब्धि थी. हालांकि, फिल्म में आगे चलकर उनका रोल थोड़ा काट दिया गया था, क्योंकि वह दिखने में सड़कों पर रहने वाले कुपोषित बच्चों की तरह नहीं लगे थे. यह पल इरफान के लिए दिल तोड़ने जैसा था, लेकिन उस समय अगर किसी ने उनका हौसला बढ़ाया, तो वह सूतापा ही थी. जिसके बाद इस टैलेंट एक्टर ने 'डांस ऑफ लाइफ' में अपनी कमाल की एक्टिंग से सभी का दिल जीता.
नीतू और ऋषि ने साल 1980 में शादी की उनकी शादी के चर्चे हर जुबान पर थे. इसके साथ ही आपको हम बता दें कि यह वह पल था, जब नीतू का करियर सबसे अच्छे दौर से गुजर रहा था. लेकिन शादी के बाद नीतू को स्टारडम और एक्टिंग को अलविदा कहना पड़ा. ऐसा नहीं था कि यह सिर्फ ऋषि के दबाव के कारण हुआ, लेकिन कहीं ना कहीं 15 साल लगातार फिल्मों में काम करने के बाद नीतू भी इन सभी चीजों से ब्रेक लेना चाहती थी. हालांकि, इन सबके बावजूद इनकी शादीशुदा जिंदगी में उतार-चढ़ाव आते रहे. एक इंटरव्यू में अपने माता पिता के बारे में बात करते हुए एक्टर रणबीर कपूर ने कहा था कि उन्होंने "अपने माता-पिता को झगड़ा करते हुए देखा है, लेकिन मेरी मां चट्टान की तरह थी. बल्कि वही एक शख्स थीं जिन्होंने सभी को एक साथ रखा."
दूजी ओर सूतापा और इरफान की कहानी बिल्कुल अलग थी. दोनों ने साल 1995 में शादी की और एक साथ प्रोफेशनल और पर्सनल हर तरह के उतार-चढ़ाव का सामना किया. हालांकि इन चीजों ने उनके रिश्ते को कमजोर नहीं बल्कि और मजबूती दी और दोनों हमेशा एक दूसरे को सपोर्ट करते रहे. साल 2003 में विशाल भारद्वाज की फिल्म 'मकबूल' से इरफान की जिंदगी में एक नया मोड़ आया. जिसके बाद एक्टर ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और आगे बढ़ते हुए साल 2006 में मीरा नायर की 'द नेमसेक' से अपनी एक अलग पहचान बनाई. हालांकि इसके पहले का सफर एक्टर के लिए बेहद पेचीदा और मुश्किल भरा था. दूसरी ओर सूतापा बतौर डायलॉग राइटर अपनी अलग पहचान बनाने की कोशिश में लगी हुई थी. उस समय उन्होंने 'खामोशी' 'शब्द' और 'कहानी' जैसी फिल्मों के लिए डायलॉग लिखे थे. बिताते समय के साथ सूतापा ने बतौर प्रोड्यूसर 'मदारी' और 'करीब करीब सिंगल' जैसी दो फिल्मों को प्रोड्यूस किया था, जिसके साथ उनका करियर ग्राफ ऊपर की तरफ जाता रहा.
नीतू ने अपने एक इंटरव्यू में खुलासा किया था कि ऋषि कपूर को पहली बार कैंसर का पता चलने पर वह बेहद चिड़चिड़ा हो गए थे. उन्होंने बताया था कि कुछ उसी तरह उनकी और उनके दोनों बच्चों की भी हालत थी. लेकिन उन्होंने अपने आप को संभालते हुए ऋषि पर ध्यान देने का फैसला किया. नीतू ने बताया शुरू के 4 से 5 महीनों तक वह बेहद ही अलग शख्स थे. लेकिन धीरे-धीरे वह अपने सच को स्वीकार कर पहले से ज्यादा मजबूत बन गए थे. नीतू ने अपने इंटरव्यू में कहा था कि "मुझे लगा कि मैं उनकी मां बन गई हूं. जैसे कि वह मेरे तीसरे बच्चे हैं, खाना, सोना, दवाइयां जैसे बच्चे को देखा जाता है. और मां हमेशा अच्छा करना चाहती है.
वही इरफान को मार्च 2018 में न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर का पता चला जिसके बाद उन्होंने फिल्मों को छोड़ तुरंत इलाज कराने के लिए लंदन जाना सही समझा. सूतापा की नजर में उनके पति एक योद्धा थे. सूतापा ने अपने एक लंबी फेसबुक पोस्ट में लिखा था, "मेरे सबसे अच्छे दोस्त और मेरे पार्टनर एक योद्धा हैं, जो कि बेहद ही खूबसूरती से सभी बाधाओं से लड़ रहे हैं. चलिए हम अपने जीवन के कीमती ऊर्जा को यह जानने में नष्ट ना करें कि यह क्या है, बस इसे सही करने की कोशिश करें. आप सभी से मेरी रिक्वेस्ट है कि आप अपने जीवन के गीत पर ध्यान केंद्रित करें ताकि आप जीवन के नृत्य को जीत की ओर लेकर जाएं. मेरा परिवार भी जल्द इसका हिस्सा होगा. बता दी कि बेहद मधुर और सादगी भरे अंदाज से उन्होंने इस बात की पुष्टि की थी कि इरफान की तबीयत ठीक नहीं है.
हालांकि, दुख की बात यह है कि दोनों एक्टर्स ने अपनी पत्नियों के पुरे सपोर्ट और हर कदम पर सहयोग से यह लड़ाई अपनी आखिरी दम तक लड़ी लेकिन वह हार गए. जहां, इरफान ने दुनिया को इस 29 अप्रैल को अलविदा कह दिया, वहीं सभी को गम में ओर और धकेलते हुए ऋषि कपूर के निधन की खबर उसके ठीक दूसरे दिन यानी 30 अप्रैल को आई. बता दें कि उनकी अंतिम यात्रा के समय में भी उनकी पत्नियों ने अपने फर्ज निभाए. आज इरफ़ान और ऋषि, सुतापा और नीतू की यादों में जिंदा हैं और हमेशा रहेंगे.