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From The Editor's Desk: दिलीप कुमार को आखिरी सलाम

बॉलीवुड के लिए इससे बड़ी ट्रेजेडी कोई और नहीं हो सकती है कि दिग्गज कलाकार दिलीप कुमार का आज सुबह 7.30 बजे खार के हिंदुजा अस्पताल में निधन हो गया. वे 98 साल के थे और पिछले कुछ सालों से वह अपनी बिमारियों को लेकर अस्पताल में बार-बार आते-जाते रहे थे.  वहीं इस साल वे कई बार हॉस्पिटल के चक्कर काट चुके थे. पिछले कुछ दिनों से दिलीप कुमार को आईसीसीयू में ऑब्जर्वेशन मे रखा गया था. सभी तरह के लाइफ सपोर्ट सिस्टम से जुड़े हुए थे.  उनकी हालत "गंभीर" और "स्थिर" के बीच की स्थिति के बीच मंडरा रही थी. हॉस्पिटल के गेट के बाहर, टीवी चैनल्स की ओबी वैन बेसब्री से इंतजार कर रही थीं. एंकर और कैमरामैन उनकी हालत के समाचार बुलेटिन हम तक भेज रहे थे.
55 साल तक दिलीप साबह के साथ साए की तरह रहीं उनकी पत्नी और बेहद खूबसूरत एक्ट्रेस सायरा बानो ने ठीक दो दिन पहले, यानि सोमवार को अस्पताल से ट्वीट किया था कि, 'हम दिलीप साहब पर भगवान की असीम कृपा के लिए बहुत आभारी हैं कि उनकी हेल्थ में लगातार सुधार हो रहा है.' सायरा जी ने दिलीप साहब के भारत, पाकिस्तान और दुनिया भर में फैंस से अनुरोध किया कि वे साहब के लिए अपनी प्रार्थनाओं और दुआएं जारी रखें, ताकि इंशाअल्लाह वह स्वस्थ हो और उन्हें जल्द ही अस्पताल से छुट्टी दे दी जाए.' दिलीप साहब पहले कई बार मुश्किलों को मात दे चुके है. वह एक पठान थे. उनमें उत्तर पश्चिम सीमांत प्रांत के अपने उग्र पूर्वजों का योद्धा खून था. और एक महान और पवित्र आत्मा है. लेकिन उनके जीवन की कहानी, उनकी सफल फिल्मों की कहानी की तरह सुखद नहीं लिखी गई थी. 

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बॉलीवुड ने उन्हें ट्रेजडी किंग कहा करता है. उनकी आखिरी फिल्म किला साल 2008 में आई थी. आखिरी फिल्म के रिलीज के 23 साल बाद वे हमें छोड़ कर चले गए. दिलीप साहब जैसा कि 11 दिसंबर 1922 को ब्रिटिश इंडिया के पेशावर (अब पाकिस्तान में) में पैदा हुए थे, उनका असली नाम मोहम्मद युसूफ खान था. अपने जीवन के आखिरी कुछ सालों में उन्हे कई परेशानियों का सामना करना पड़ा था. उनकी उम्र और कमजोर स्वास्थ्य के अलावा, 2020 में  कोरोना महामाही के बीच उनके भाइयों अहसान और असलम का जाना भी उन्हे खल गया. फिर भी यूसुफ साब ने ज़िंदादिल ढंग से अपने आप को ज़िंदा रखा. सायराजी ने कोरोना हालातों के मद्देनजर  11 दिसंबर को दिलीप साहब का 98वें जन्मदिन शांती से मनाया था. उस दिन उनता पाली हिल बंगला गुलदस्ते से भरा हुआ है और फोन की घंटिया लगातार बज रही थी. 

सायराजी के लिए युसूफ साहब के साथ हर दिन एक जश्न जैसा था. उनके जन्मदिन पर उन्होंने फैमिली, फ्रेड्स और फैंस के लिए उन्हें बधाई देने के लिए दरवाजे खुले रखे. जब तक वह इंफेक्शन की चपेट में नहीं आए और उनका शरीर कई बीमारियों से नहीं घिरा था. वहीं आखिरी बार जब दिलीप साहब अस्पताल मेंए एडमिट हुए ते तब पूरे देश की सांसे थम सी गई थी.  अस्पताल में कॉम्प्लिकेशन्स और परिस्थितियों को उलटना शुरू कर दिया था. सायराजी को इस बात का मलाल था कि यूसुफ साब अब सार्वजनिक रूप से नहीं जा सकते थे. उन्होने एक बार खुलासा किया था कि, 'अजनबियों के हाथ की गर्माहट जो उन्हें बताती है कि उन्हें उनका काम कितना पसंद आया, ये यूसुफ साब के लिए किसी भी इनाम से बड़ा है.' वह हमेशा मुस्कुराया करते थे. उनकी मुस्कान पर सायरा जी ने कहा था कि, जिस तरह की मुस्कान, माशाअल्लाह, अभी भी दिलों को घड़का देती है.' अल्लाह हाफिज, यूसुफ साब...
 

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