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'Gulabo Sitabo' Review: मजेदार कहानी के साथ एंटरटेनमेंट का पिटारा है अमिताभ बच्चन और आयुष्मान खुराना स्टारर यह कॉमेडी फिल्म

फिल्म: गुलाबो सिताबो 
कास्ट: अमिताभ बच्चन, आयुष्मान खुराना, विजय राज, फर्रुख जाफर, बृजेन्द्र काला, सृष्टि श्रीवास्तव, नल्नीश नील, टीना भाटिया
डायरेक्टर: शूजित सरकार
कहानी, स्क्रीनप्ले और डॉयलग: जूही चतुर्वेदी
प्रोड्यूसर : रॉनी लहिरी और शील कुमार
रिलीज प्लेटफॉर्म: अमेज़न प्राइम वीडियो
रेटिंग्स: 4 मून्स

1842 में लिखी गई जेम्स हैलिवेल फिलिप्स की नर्सरी क्लास की कविता 'देयर वॉज़ ए क्रूक्ड मैन' और शूजित सिरकार की अमेज़ॉन प्राइम पर रिलीज हुई फिल्म गुलाबो सिताबो की डोर एक दूसरे से बंधी दिखती है. कविता थी एक चालाक आदमी के बारे में और उसकी चालाकी भरी चालों के बारे में.

फिल्म में ये चालाक आदमी है मिर्जा शेख यानि अमिताभ बच्चन, मिर्जा साहब मकान मालिक हैं, लखनऊ में मौजूद एक दूर तक फैली हुई हवेली के जिसका नाम है फातिमा महल होता है. मिर्जा बड़े लालची हैं, कई सारे पैंतरे आजमाते हैं इस हवेली पर पूरा कब्जा पाने के और वो भी अपने किराएदारों को दांव पर लगाकर.

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इन्हीं में से एक किराएदार है बांके सोढ़ी यानि आयुष्मान खुराना जो एक नाकाम मिल मालिक है, प्यार में असफल रहा है और इस हवेली में बड़ी बुरी हालात में अपनी मां और तीन बहनों के साथ रहता है, सबसे बड़ी बहन का किरदार यूट्यूब स्टार और एक्ट्रेस सृष्टि श्रीवास्तव ने निभाया है.

बूढ़ा और तेज़ मिर्जा लखनऊ की गलियों में दिनभर घूमता रहता है, इस किरदार का गेटअप बड़ा दिलचस्प है. कुर्ता पायजामे के साथ एक स्कल कैप के साथ गमछा उसके चेहरे का ढके रहता है. मोटे लेंस वाले चश्मे से झांकती उसकी धुंधली आंखे और गंदी दाढ़ी इस किरदार को अलग ही रंग देती हैं. ये इंसान ज्यादातर ब्याजखोर दुकानदार के पास रहता है, जहां वो किराएदारों से हड़पी या चुराई चीजों को बेचने या गिरवी रखने के लिए मोलभाव करता रहता है. इन चीजों में हवेली की कुछ कीमती चीजें भी शामिल होती हैं.

गुलाबो सिताबो खासतौर पर उत्तर प्रदेश के लोककलाकारों की उन कहानियों पर आधारित कही जा सकती है जो कठपुतली के खेल में इसी नाम से कहानियां दिखाकर लोगों का मनोरंजन करते हैं. ये एक धीमी जरूर है लेकिन आनंद से भर देने वाली मनोरंजक फिल्म है. फिल्म में क्लाईमैक्स जैसा तो कुछ नहीं लेकिन इसका अंत आपके अंदाजे से कोसों दूर होगा और ट्विस्ट के साथ ही ये फिल्म आपको मुस्कुराहट और दया की भावना के साथ छोड़ जाएगी. मिर्जा और बांके के बीच मजाक से भरी लड़ाई ठीक वैसी ही है जैसे टॉम एंड जेरी हों लेकिन यकीन मानिए इसका फिल्म के अंत से कोई लेना देना नहीं. 

मिर्जा और बांके की ये लड़ाई आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया से होते हुए सिविल कोर्ट और फिर पहुंच जाती है, फातिमा महल की असल मालकिन एक बेगम जिसका किरदार निभाया है जानी मानी थिएटर आर्टिस्ट फारुख़ ज़फर ने. बेगम की निकाह मिर्जा से बहुत पहले हुआ होता है, मिर्जा जो बेगम से 17 साल छोटा होता है उससे शादी को बेगम इसलिए तैयार हो जाती हैं क्योंकि वो फातिमा महल नहीं छोड़ना चाहतीं और मिर्जा घर जमाई बनने को राजी हो जाता है. जबकि बेगम का असल आशिक उन्हें लंदन ले जाना चाह रहा होता है.

वहीं मिर्जा साहब का ख्वाब अलग है. वो फातिमा महल को बेगम के नाम से छीनकर अपने नाम करना चाहता है, और इसमें रह रहे किराएदारों को भी बाहर निकालने पर आमादा है. दो और बड़े दिलचस्प किरदार हैं फिल्म में. एक तो हैं विजय राज जो कि धूर्त सर्वेयर हैं आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया है तो वहीं एक शातिर वकील के किरदार में हैं बृजेन्द्र काला.

अविक मुखोपाध्याय की सिनेमैटोग्राफी लखनऊ के पुराने अंदाज को बखूबी कैद करती है. जर्जर हो चुके फातिमा महल उसके टूटे फव्वारे से लेकर पुरानी फर्नीचर, मच्छरदारी, हों या फिर पुराने लखनऊ की तंग गलियां और मुशायरा ए महफिल से लेकर हर छोटी बड़ी डिटेलिंग को कैमरा किसी कलाकार से कम कैप्चर नहीं करता. शूजीत सरकार ने हर किरदार का गज़ब का इस्तेमाल किया है. अमिताभ बच्चन ने मिर्जा के किरदार को कुछ इस तरह जिया है कि वो चाहें तो मिर्जा के तौर पर लखनऊ में रहें तो भी कोई उन्हें पहचान नहीं पाएगा..उन्होने कमाल का ये रोल प्ले किया है और जिस आसानी से प्रोस्थेटिक मेकअप के साथ उन्होने काम किया है वो बाकी कलाकारों के लिए सीखने की बात है. आयुष्मान खुराना एक गंभीर, चिंता से भरा साधारण किरदार शानदार तरीके से जी गए हैं. फ़ारुख जाफ़र ने मुग़ल काल के कल्चर को अपनी अदायगी में बेहतरीन तरीके से पेश किया है. विजय राज और बृजेंद्र काला चालाक रूप से किरदार को जिंदा बना देते हैं..और सृष्टि श्रीवास्तव ने भी बेहतरीन किरदार निभाया है.

फिल्म में कुल 8 गाने हैं जो बैकग्राउंड में बजते हैं. फिल्म में शांतनु मोइत्रा का थीम म्यूजिक भी अच्छा है. ये संगीत लखनऊ के पुराने मिजाज से लेकर फातिमा महल की कहानी बयां कहता है. इस कहानी में ये संगीत भी एक किरदार है जो लखनऊ की उजले और हलचल भरे दिन से लेकर फातिमा महल की रात तक की सैर आपको कराता है, और इसी एक रात में बाकें के हिस्से का बल्ब चुराते ही फातिमा महल अंधकार में डूब जाती है और इसी के साथ जूही चतुर्वेदी की बांधकर रखने वाली कहानी में रंग भर जाता है.

(Transcripted By: Varsha Dixit)

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