फिल्म: सूरज पे मंगल भारी
निर्देशक: अभिषेक शर्मा
कास्ट: मनोज बाजपेयी, दिलजीत दोसांझ, फातिमा सना शेख, सुप्रिया पिलगांवकर, मनोज पाहवा, सीमा पहवा, नेहा पेंडसे, अभिषेक बनर्जी, अन्नू कपूर, मनुज शर्मा, नीरज सूद, रोहन शंकर
अवधि: 2 घंटे 14 मिनट
रेटिंग: 2.5 मून्स
आठ महीने के लॉकडाउन के बाद, सिनेमाघर फिर से खुल गए हैं. महामारी के बीच सिनेमा हॉल में रिलीज होने वाली पहली फिल्म अभिषेक शर्मा की कॉमेडी फिल्म सूरज पे मंगल भारी है. मनोज बाजपेयी, दिलजीत दोसांझ और फातिमा सना शेख की स्टारर फिल्म की कहानी मुंबई में 90 के दशक में स्थापित है.
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सूरज पे मंगल भारी की कहानी सूरज सिंह ढिल्लों (दिलजीत दोसांझ) के इर्द-गिर्द घूमती है, जो अच्छे परिवार से ताल्लुक रखने वाला एक 28 वर्षीय लड़का होता है. सूरज शहर का मोस्ट एजीबिल बैचलर है लेकिन उसे उसके लिए दुल्हन नहीं मिल रही होती है. शादी करने के लिए बेताब सूरज अपने दोस्त की मदद लेता है जो उसे सलाह देता है कि वह बैड बॉय बन जाए. दोस्त की सलाह मानते हुए सूरज शराबी, कानून को तोड़ने वाला शख्स बनने का नाटक करता है. हालांकि यह चीज उसे मदद तो नहीं करती लेकिन उसे परेशानियों में जरूर घेर लेती है. ऐसे में एक संभावित दुल्हन के माता-पिता मंगल राणे (मनोज बाजपेयी) नाम के जासूस को नियुक्त करते हैं जो सूरज के बारे में सभी चीजें पता लगाता है. सूरज का बुरा व्यवहार मंगल को विश्वास दिलाता है कि वह सही इंसान नहीं है.
सूरज की शादी को लेकर मुश्किलें बनी हुई रहती हैं, इसी बीच उसे मंगल की बहन तुलसी राणे (फातिमा सना शेख) से प्यार हो जाता है. तुलसी और सूरज दोनों एक दूसरे से प्यार करते हैं लेकिन मंगल अपनी बहन के इस रिश्ते से खुश नहीं होता है. तुलसी और सूरज अपने रिश्ते को आगे ले जाने का फैसला करते हैं और मंगल इस बात पर अड़ा है कि वह अपनी बहन की शादी किसी बुरे लड़के से नहीं होने देगा. ऐसे में मंगल उनके सगाई के मौके पर सभी को शौक देते हुए एक वॉइस रिकॉर्डिंग शेयर करता है जिसमें सूरज के पिता दहेज की मांग करते हुए सुनाई देते हैं. जिसके बाद तुलसी और सूरज के बीच की दूरियां बढ़ जाती है. हालांकि आगे जो भी होता है वह एक बड़ी गड़बड़ी होती है.
डायरेक्टर अभिषेक शर्मा ने फिल्म का नेतृत्व करने के लिए शानदार एक्टर्स को कास्ट किया है. उनका डायरेक्शन औसत दर्जे का है, लेकिन सूरज पे मंगल भारी एक अनोयिंग नैरेटिव है, ज्यादा खींची और अस्पष्ट है. फिल्म में कुछ ऐसे सीन्स हैं जो सिर्फ स्क्रीन पर समय जोड़ते हैं. एक क्लिनिक स्टोरीलाइन के साथ, सूरज पे मंगल भारी एक बेस्वाद प्रोडक्ट है. लेखक शोखी बनर्जी अपने इलोजिकल लेखन से स्पष्ट रूप से निराश किया है.
सूरज पे मंगल भारी की मजबूत कड़ी की बात करें तो वह है मनोज बाजपेयी की दमदार एक्टिंग. टैलेंटेड एक्टर ने फिल्म कई अवतार बदलने हैं. हालांकि, उनकी परफॉरमेंस भी इस डूबते जहाज को बचाने में मदद नहीं कर पाई है. दिलजीत दोसांझ ने भी किरदार के साथ न्याय किया है. फातिमा भी तुलसी की भूमिका में फिट बैठ रही हैं. सीमा पाहवा, मनोज पाहवा, सुप्रिया पिलगांवकर, नेहा पेंडसे और अन्नू कपूर सहित सभी सपोर्टिंग कास्ट ने अच्छा प्रदर्शन किया.
सिनेमेटोग्राफर अंशुमान महली ने मुंबई को खूबसूरती से कैद किया है. वहीं, एडिटर रामेश्वर एस. भगत ने सूरज पे मंगल भारी को धीमी गति दी है. अनावश्यक सीन्स के साथ, एडिटिंग ख़राब लगती है और इसमें रोमांच नहीं है.
सूरज पे मंगल भारी फिल्म आपको उलझी हुई लगेगी. अच्छी परफॉरमेंस के बावजूद, फिल्म अच्छा नहीं कर पाई है. हालांकि, फिल्म देखते समय हम एंटरटेनमेंट की तो नहीं लेकिन सिर भारी होने की गार्रेंटी जरूर ले सकते हैं. फिल्म को अपने जोखिम पर देखें!