By  
on  

Jagdeep Birth Anniversary: सूरमा भोपाली बन अमर हो गए थे अभिनेता जगदीप, गुरबत में बीता बचपन यतीमखाने में खाना बनाकर पाला मां ने- आज 83 साल के होते 

बड़े पर्दे पर एक से बढ़कर एक बेहतरीन किरदार निभाने वाले जगदीप ने अपने जीवन काल में तक़रीबन 400 से भी ज्यादा फिल्मों में काम किया। वे अपने हर किरदार में इस कदर ढल जाते थे कि कई बार फिल्मों में मुख्य किरदार से ज्यादा लोग उन्हें पसंद करते थे। उन्होंने दर्शकों के दिलों में अपनी अलग ही जगह बना ली। जगदीप उस दौर के कलाकार थे जब फिल्मों में हास्य कलाकार की जगह किसी हीरो से कम नहीं समझी जाती थी। जहां फिल्म फिल्म की पकड़ ढीली होती थी, वहीं ये अपना जलवा बिखेरना शुरु कर देते थे। पर्दे पर इनकी एंट्री भर से ही दर्शक तालियां पीटना शुरू कर देते थे।

आज सूरमा भोपाली का जन्मदिन है 

70-80 के दशक की सुपरहिट फिल्म शोले में सूरमा भोपाली के नाम से मशहूर हुए एक्टर जगदीप का आज जन्मदिन है। 29 मार्च 1939 में मध्य प्रदेश के ‘दतिया’ में जन्में जगदीप का असली नाम ‘सैयद इश्तियाक अहमद जाफरी’ था। जगदीप के बचपन में ही उनके पिता का देहान्त हो गया था। देश के बंटवारे के बाद वो मध्य प्रदेश से मुंबई में आकर बस गए थे। यहां उन्हें काफी मुश्किल भरे दिन बिताने पड़े। उनका बचपन बहुत गरीबी में गुजरा था। बताया जाता है कि जगदीप की मां यतीमखाने में खाना बनाकर अपना गुजारा करती थीं। इसी तरह के छोटे-मोटे काम करके उन्होंने बेटे जगदीप को पाला। आर्थिक तंगी के चलते जगदीप को पढ़ाई छोकर नौकरी करनी पड़ी। जगदीप ने अपने करियर की शुरुआत साल 1951 में आई बीआर चोपड़ा की फिल्म, अफसाना से बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट से की थी, जिसमें काम करने के लिए उन्हें तीन रुपए मिले थे।

असली नाम सैयद इश्तियाक अहमद जाफरी

जगदीप का असली नाम सैयद इश्तियाक अहमद जाफरी था लेकिन बॉलीवुड में कदम रखते ही उन्होंने अपना नाम बदल कर जगदीप रख लिया। जगदीप ने अपना फ़िल्मी सफर बतौर बाल कलाकार शुरू किया था।वैसे तो उनका हर एक किरदार सराहनीय रहा है लेकिन लोगों के दिलों में जो अमर हो चुका है वह है उनके सूरमा भोपाली का किरदार। रमेश सिप्पी के निर्देशन में बनी फिल्म 'शोले' में उन्होंने यह किरदार निभाया था और तब से वे जगदीप से ज्यादा सूरमा भोपाली के नाम से मशहूर हो गए। उन्होंने एक इंटरव्यू में अपने इस किरदार को लेकर काफी दिलचस्प किस्सा भी बताया था।

एक इंटरव्यू में जब उनसे पूछा गया कि, 'आप जगदीप हैं, आपको असली नाम से कम ही लोग जानते हैं। आपके ज़हन में ये कैसे आया कि भोपाल की भाषा को दुनियाभर में मशहूर कर दें?' इस सवाल के जवाब में जगदीप ने कहा, 'ये बड़ा लंबा और दिलचस्प किस्सा है। सलीम और जावेद की एक फिल्म थी 'सरहदी लुटेरा', इस फिल्म में मैं कॉमेडियन था। मेरे डायलॉग बहुत बड़े थे तो मैं फिल्म के डायरेक्टर सलीम के पास गया और उन्हें बताया कि ये डायलॉग बहुत बड़े हैं। तो उन्होंने कहा कि जावेद बैठा है उससे कह दो'। फिर मैं जावेद के पास गया और मैंने जावेद से कहा तो उन्होंने बड़ी ही फुर्ती से डायलॉग को पांच लाइन में समेट दिया। मैंने कहा कमाल है यार, तुम तो बड़े ही अच्छे राइटर हो। इसके बाद हम शाम के समय साथ बैठे, किस्से कहानी और शायरियों का दौर चल रहा था। उसी बीच जावेद ने एक लहजा बोला "क्या जाने, किधर कहां-कहां से आ जाते हैं।" मैंने पूछा कि अरे ये क्या? कहां से लाए हो? तो वो बोले कि भोपाल का लहजा है।'

जगदीप ने आगे बताते हुए कहा, 'मैंने कहा भोपाल से यहां कौन है? मैंने तो ये कभी नहीं सुना! इस पर उन्होंने कहा कि ये भोपाल की औरतों का लहजा है। वो इसी तरह बात करती हैं। तो मैंने कहा मुझे भी सिखाओ। इस वाकये के कुछ 20 साल बाद फिल्म 'शोले' शुरू हुई। मुझे लगा मुझे शूटिंग के लिए बुलाएंगे। लेकिन मुझे किसी ने बुलाया ही नहीं। फिर एक दिन रमेश सिप्पी का मेरे पास फोन आया। वो बोले शोले में काम करना है तुम्हें। मैंने कहा उसकी तो शूटिंग भी खत्म हो गई। तब उन्होंने कहा कि नहीं नहीं ये सीन असली है इसकी शूटिंग अभी बाकी है।' और फिर शुरू हुआ सूरमा भोपाली का सफर। 

उसके बाद जो हुआ वो तो जग जाहिर है। आज भले ही वे इस दुनिया में नहीं रहे लेकिन लोगों के दिलों में हमेशा ज़िंदा रहेंगे सबके प्यारे 'सूरमा भोपाली'!

Recommended

PeepingMoon Exclusive