आज 7 जुलाई बुधवार के दिन, भारत के महान अभिनेता दिलीप कुमार के निधन की खबर से फैंस से लेकर इंडस्ट्री के बीच मौजूद सेलेब्स के बीच शोक की लहर देखने मिली है. बता दें कि वह पिछले कुछ दिनों से बिगड़ी तबीयत की वजह से अस्पताल आते जाते रहे थे, पिछले महीने ही उन्हें दो बार मुंबई के हिंदुजा अस्पताल में भर्ती कराया गया था. कुछ दिनों पहले, सायरा बानो ने फैंस को आश्वासन दिया था कि उनकी तबीयत ठीक है. हालांकि, लाख कोशिशों के बावजूद 7 जुलाई को दिलीप कुमार ने सभी को अलविदा कह दिया. ये कहना गलत नहीं होगा कि सिनेमा के एक युग का अंत हो चूका है.
छह दशकों के लंबे करियर में, दिलीप कुमार ने हमें कई आइकॉनिक फिल्में दी हैं, अगर हिंदी सिनेमा को उनके शानदार प्रदर्शन के साथ-साथ शैली-विरोधी कथाओं दोनों के लिए याद किया जाता है. तो आइये आज उनके द्वारा किये गए, आइकॉनिक किरदारों पर एक नजर डालते हैं.
देवदास, 1955
(From The Editor's Desk: दिलीप कुमार को आखिरी सलाम)
दिलीप कुमार की 'ज्वार भाटा' (1944) ने उनके लिए एक ऐसी राह बनाई, जिसके बाद उन्होंने हिंदी सिनेमा को कई हिट फ़िल्में दी. 'जुगनू' (1947) से 'मेला' (1948), 'अंदाज' (1949) से 'दीदार' (1951) तक, आने वाले दशक को दिलीप कुमार के सबसे बड़ी हिट फिल्मों से सजाया गया था. लेकिन कहां जाये तो 'देवदास' उनके करियर के लिए एक टर्निंग पॉइंट साबित हुई थी. पीसी बरुआ के देवदास के बाद, दिलीप कुमार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय के इसी नाम के उपन्यास के एडेप्टेशन में देवदास की भूमिका निभाने वाले दूसरे अभिनेता बने थे. इस ब्लॉकबस्टर ने उन्हें बॉलीवुड के ट्रैजेडी किंग का उपनाम दिया और तुरंत उन्हें राज कपूर और देव आनंद के समान लीग में डाल दिया, जो उस समय के सुपरस्टार थे. देवदास की भूमिका आइकॉनिक हो गई, और हर बार बॉलीवुड ने इसे फिर से परिभाषित करने की कोशिश की - जिसकी सबसे बड़ी झलक शाहरुख खान की देवदास में देखने मिली थी. अभिनेता के लिए, देवदास के बाद सीरियस रोल वाली भूमिकाएं आनी शुरू हो गयी, और उन्होंने सभी को अपने खास अंदाज में निभाया. लेकिन एक समय आया जब उन्होंने कथित तौर पर, अपने मनोचिकित्सक के सुझाव पर, जानबूझकर हल्की भूमिकाएं करनी शुरू कर दी थी.
मधुमती, 1958
दिलीप कुमार के साथ वैजयंतीमाला और प्राण अभिनीत बिमल रॉय की 'मधुमती' एक और आइकॉनिक फिल्म है. 'मधुमती' पुनर्जन्म और भयानक प्रेतवाधित हवेली की कहानी थी, जिसे दर्शकों से लेकर अन्य अभिनेताओं द्वारा भी खूब पसंद किया गया था.
मुगल-ए-आज़म, 1960
1960 में, हिंदी सिनेमा को 'मुगल-ए-आज़म' के रूप में एक ऐतिहासिक फिल्म मिली, जिसमे दिलीप कुमार ने सलीम की भूमिका निभाई थी, जबकि मधुबाला को अनारकली और पृथ्वीराज कपूर को अकबर की भूमिका में देखा गया था. फिल्म एक आइकॉनिक बनकर सामने आई, जो बॉलीवुड की एक कल्ट फिल्म के रूप में आज भी पसंद की जाती है.
राम और श्याम, 1967
राम और श्याम में, दिलीप कुमार ने भाइयों राम और श्याम का डबल रोल निभाया था, और इस तरह से हमें उनकी कॉमिक टाइमिंग की एक झलक देखने मिली थी. यह पहली बार था जब उन्होंने दोहरी भूमिका निभाई थी, और इस प्रक्रिया में, हिंदी सिनेमा को एक नई शैली दी थी.
क्रांति, शक्ति 1981 और 1982
बदलते समय के साथ हिंदी सिनेमा और फिल्म मेकिंग में भी बदलाव देखने मिल रहे थे. ऐसे में दिलीप साब ने ऐसी ही कई फिल्मों में अपना हाथ आजमाया था. उन्हीं में से हैं 'क्रांति' (1981) और 'शक्ति' (1982). 1976 और 1981 के बीच, दिलीप कुमार ने एक्टिंग से ब्रेक ली थी, जिसके बाद उन्होंने केवल क्रांति के साथ वापसी करने का फैसला लिया. उसके एक साल बाद, 'शक्ति' में, हमने बॉलीवुड की दो सबसे बड़ी प्रतिभाओं को एक साथ स्क्रीन पर देखा - अमिताभ बच्चन के साथ दिलीप कुमार. जिसके बाद से उन्होंने विधाता (1982), मशाल (1984) और कर्मा (1986), तक में की गयी भूमिकाएं आज भी सभी के दिलों में जिन्दा है.
कर्मा, 1986
सुभाष घई की कर्मा एक और कॉमिक फिल्म थी जिसमें दिलीप कुमार ने अपनी शानदार परफॉरमेंस से सभी का दिल जीता था. राणा विश्व प्रताप सिंह, एक पूर्व उच्च रैंकिंग पुलिस अधिकारी के रूप में, दिलीप कुमार ने हमें एक आइकॉनिक रिवेंज ड्रामा दिया.
सौदागर, 1991
90 के दशक के बच्चों के लिए, सौदागर एक और आइकॉनिक फिल्म थी जिसे हम भूल नहीं सकते. इसके रूप में राज कुमार के साथ दिलीप कुमार ने बॉक्स ऑफिस पर एक और ब्लॉकबस्टर दी. यह फिल्म एक लव स्टोरी थी, जिसमे दिलीप कुमार और राजकुमार ने सभी का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित किया था. इमली का बूटा आज भी एक गाना है जिसे हम गाते हैं.