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Kaamyaab Film Review: संजय मिश्रा और दीपक डोबरियाल की एक्टिंग ही फिल्म की जान है

फिल्म- कामयाब 

कास्ट: संजय मिश्रा, दीपक डोबरियाल

लेखन और निर्देशन- हार्दिक मेहता 

मून्स: 3 मून्स

 

परिचय :
सिनेमाहॉल या टीवी पर जब कोई फिल्म दिखाई जाती है तो फिल्म ख़त्म होने के बाद हम सिर्फ हीरो हीरोइन को याद रखते हैं. सपोर्टिंग और साइड एक्टर को अक्सर हम नजर अंदाज करते हैं. 'कामयाब' फिल्म भी फिल्म इंडस्ट्री के ऐसे ही कड़वे सच से रूबरू कराती है. फिल्म में दिग्गज अभिनेता संजय मिश्रा 'सुधीर' नाम के अनुभवी सुपरस्टार कैरेक्टर का किरदार निभाते हैं. वह अपने करियर की 500वीं फिल्म कर रिकॉर्ड बनाना चाहते हैं. 499 फिल्मों में काम कर चुके सुधीर 500 का रिकॉर्ड बनाने के लिए अपनी रिटायरमेंट से बाहर आने का फैसला करते हैं. 

कहानी:
सुधीर फिल्म इंडस्ट्री में सीनियर एक्टर होते हैं. उन्हें पता नहीं होता कि उन्होंने 499 फिल्मों में काम किया है. एक पत्रकार को इंटरव्यू देते समय उन्हें इस बात का पता चलता है. उन्हें लगता कि एक और फिल्म तो उन्हें जरूर करनी चाहिए. जब 500वीं फिल्म रिलीज होगी तो एक रिकॉर्ड बनेगा. सुधीर अपने घर में अकेले रहते हैं. बेटी की शादी हो गई होती है और वह अपने पति और छोटी बेटी के साथ खुशहाल जिंदगी बिताती है. उसकी इच्छा होती है कि उसके पापा अकेले न रहकर उसके साथ आकर रहे लेकिन सुधीर ऐसा करने से इंकार कर देते हैं.

 दीपक डोबरियाल कास्टिंग डायरेक्टर गुलाटी के किरदार में होते हैं, जो एक्टर्स को रोल दिलाते हैं. वो सुधीर को एक फिल्म में रोल दिलाते है लेकिन शूटिंग के दौरान कुछ ऐसा होता है कि जैसे तैसे शूट तो हो जाता है लेकिन उन्हें उसका पेमेंट नहीं मिलता है और इस बात का उन्हें खूब धक्का लगता है. इस परेशानी में वह अपने जन्मदिन की पार्टी में भी नहीं जाते है, जो उनकी बेटी उनके लिए अपने घर पर रखती है. फर्स्ट हाफ थोड़ा स्लो होता है, जिसे और दिलचस्प बनाया जा सकता था. सेकंड हाफ का क्लाइमैक्स अच्छा है. सेकंड हाफ की शुरुआत भी थोड़ी धीमी होती है लेकिन फिल्म के किरदार कहानी को बांधे रखते हैं. अब सुधीर अपने करियर की 500वीं फिल्म पूरी कर पाते है या नहीं इसके लिए आपको सिनेमाघर तक जाना होगा.  

कास्टिंग: 
संजय मिश्रा और दीपक डोबरियाल फिल्म के कप्तान होते है, जो शुरू से लेकर अंत तक मनोरंजन करते है. कुछ कॉमेडी सीन्स ऐसे भी हैं, जिनपर हंसना बिलकुल नहीं आता. संजय के चेहरे के हाव भाव और अदायिकी एकदम सटीक बैठते है और मालुम होता है कि उन्होंने अभिनय के छेत्र में महारथ हासिल की है. दीपक डोबरियाल जब भी स्क्रीन पर आते हैं, छा जाते हैं.

तकनीकी: 
नेशनल अवॉर्ड विनर हार्दिक मेहता फिल्म की कहानी और बेहतर तरीके से लिख सकते थे. कुछ सीन्स हैं, जहां आप थोड़े भावुक हो सकते हैं. पियूष पुटी की सिनेमेट्रोग्राफी अच्छी है. रचिता अरोरा ने खूबसूरत म्यूजिक दिया है. 

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