आपको स्वर्गीय यश जौहर की तारीफ करनी होगी. 1990 के दशक के मध्य में फिल्म निर्माता के पास 'कलंक' के लिए यह अस्पष्ट दृष्टि थी और 2000 के दशक के शुरुआती दिनों में अपने बेटे करण जौहर के साथ मिल कर उन्होंने इस फिल्म की अवधारणा की लेकिन फिर समय को कुछ और ही मंजूर था और यश जौहर इस दुनिया को छोड़कर चले गए. लेकिन उनकी इस फिल्म की कल्पना को करण जौहर ने अपने दिल के करीब रखा. करण ने अपने पिता के सपने को खुद जीने का फैसला किया और अभिषेक वर्मन जैसे प्रतिभाशाली युवा निर्देशक को अपनी कहानी को कलमबद्ध करने और प्रोजेक्ट को सफल बनाने की जिम्मेदारी सौंपी. साथ ही अपने पिता के चुने हुए कुछ कलाकारों के साथ- साथ उन्होंने कुछ नए कलाकरों को शामिल करके इस जर्नी की शुरुआत की और फाइनली उसका नतीजा कलंक जैसी ग्रैंड पैसा वसूल फिल्म है.
किसी ने एक वाक्य में 'कलंक' को सरल और सटीक रूप से कहा, "लंबे समय से दफन रहस्य तब सामने आते हैं जब 1945 के भारत में एक युवा साहसी और एक खूबसूरत महिला के बीच रोमांस खिलता है." वरुण धवन (जफर) और आलिया भट्ट की केमिस्ट्री फिल्म में जबरदस्त है. साथ ही माधुरी दीक्षित और संजय दत्त की पुरानी लव स्टोरी भी फिल्म का अहम हिस्सा है. इसके अलावा फिल्म में दो और किरदार हैं, आदित्य रॉय कपूर और सोनाक्षी सिन्हा, जिनकी लव स्टोरी साथ साथ चलती है.
फिल्म की कहानी थोड़ी कन्फूजिंग हो जाती है. क्योंकि पीरियड ड्रामा विभाजन से पहले और बाद में शटल होती है. लेकिन संगीत, सीन, सांप्रदायिक दंगे, दशहरा, होली, दिवाली, ईद और मकर संक्रांति जैसे त्यौहार लार्जर देन लाइफ होते हैं. फिल्म की कहानी दो जगहों पर बेस्ड है, एक हुसैनाबाद में बलराज चौधरी के राजसी महल और हीरा मंडी की घुटी हुई गलियों में, जहां बहार बेगम यानि माधुरी दीक्षित की कोठी दिखाई गई है. पूरी फिल्म दो परिवारों के बीच चलती है और दोनों के पास जीने के लिए अपने-अपने मूल्य हैं. अधिक कहना एक मजा बिगाड़ने वाली बात होगी तो कलंक को नजदीकी सिनेमाघर में जाकर जरूर देखें.
फिल्म में आलिया का किरदार युवा है, कमजोर है, परिपक्व होने की कोशिश करती है. लेकिन उसके पास असाधारण रूप से मजबूत-इच्छाशक्ति है. वहीं वरुण धवन का किरदार गर्म जोशी से भरा हुआ है, वो एक लोहार है, जो अपने एक वार से सीन्स में गर्माहट ला देता है. आलिया और वरुण की केमिस्ट्री जबरदस्त है. आदित्य और सोनाक्षी का किरदार अधिक संयमित हैं क्योंकि उनके चरित्रों की मांग परिपक्वता है. वहीं संजय दत्त एक बूढ़ा शेर है, जो अतीत में किए गए गलत फैसलों से घबराए और शर्मिंदा अपने बोझ के भार से झुका हुआ है. माधुरी के लिए खुद को व्यक्त करने के लिए कलंक में एक अद्भुत कैनवास देता है.
सभी पात्र एक दूसरे के जीवन में एक पहेली के टुकड़ों की तरह फिट होते हैं. आपको 'कलंक' देखना होगा तभी आप महसूस कर सकते है इस फिल्म के अंत में क्या हुआ. इस फिल्म में एक नेगेटिव किरदार भी है, जिसे कुणाल खेमू ने प्ले किया हैं. प्रीतम के बनाये हुए गीत फर्स्ट क्लास, घर मोर परदेसिया, तबाह हो गए और ऐरा गैरा (कृति सनोन) पहले से ही हिट हैं. लेकिन फिल्म में अरिजीत सिंग द्वारा गाया गया टाइटल ट्रैक फिल्म की पूरी कहानी बयान करता है.