फिल्म: शकुंतला देवी
OTT: अमेज़न प्राइम वीडियो
कास्ट: विद्या बालन और सान्या मल्होत्रा
निर्देशक: अनु मेनन
रेटिंग: 4 मून्स
जब आप अद्भुत हो सकते हैं तो सामान्य क्यों रहें? यही हमें सिखाती है अनु मेनन की कॉमेडी-ड्रामा शकुंतला देवी बायोपिक. फिल्म में इंडियन राइटर, मेंटल कैलकुलेटर और 'मानव कंप्यूटर' के नाम से जाने जानें वाली शकुंतला देवी के किरदार में एक्ट्रेस विद्या बालन मुख्य भूमिका में हैं. बता दें कि यह फिल्म एक स्वतंत्र महिला की भावना का जश्न मनाती है, जो एक हाईली जजमेंटल सोसाइटी में अपना रास्ता खुद बनाती है, जो कि यह स्वीकार नहीं कर सकता कि एक महिला मैथ में भी अच्छी हो सकती है.
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मुख्य रूप से बेंगलुरु, कोलकाता और लंदन में स्थापित, शकुंतला देवी की यह फिल्म एक महत्वकांक्षी महिला की कहानी है, जो सभी बाधाओं को पार कर देश को दुनिया के बीच गर्व महसूस कराती है. विद्या की यह फिल्म खूबसूरत सपनों, इच्छाओं और निराशा की कहानी है. फिल्म की कहानी एक ऐसी मैथ जीनियस के जीवन से प्रेरित है, जो कभी अपने जीवन में हार नहीं मानती. फिल्म में आप शकुंतला द्वारा किए गए संघर्ष, जीत और बेटी के साथ के उलझे रिश्ते की झलक देख सकते हैं. बेटी की भूमिका सानिया मल्होत्रा ने निभाई है.
फिल्म की कहानी 6 साल की शकुंतला के साथ शुरू होती है, जो बिना किसी औपचारिक शिक्षा के कठिन मैथ के सवाल को बड़ी ही आसानी से हल कर अपने परिवार को आश्चर्यचकित कर देती है. इसके ठीक बाद उसके लालची पिता उसकी इस प्रतिभा को स्टेज पर दिखा कर पैसे कमाते हैं. कई सालों तक अपने पिता के इस रवैए से परेशान शकुंतला लंदन चली जाती है, जहां वह अपना बनाकर एक 'बड़ी औरत' बनना चाहती है. ऐसे में बहुत ही कम समय में शकुंतला को 'ह्यूमन कंप्यूटर' का टाइटल मिल जाता है और इस तरह से वह अपने देश का नाम रोशन करती है.
पैसा कमाने और पहचान बनाने के बाद शकुंतला परितोष बनर्जी ( जीशु सेनगुप्ता) से शादी कर लेती हैं, जिसके बाद दोनों अपने पहले बच्चे बेबी गर्ल अनु (सान्या मल्होत्रा) को अपने जीवन में लाते हैं. हालांकि, दुर्भाग्य से, अपने करियर को संभालने के दौरान सबसे अच्छी मां बनने की उनकी इच्छा बहुत अच्छी नहीं जाती और इस तरह से उनकी पर्सनल लाइफ में चीजें नियंत्रण से बाहर हो जाती हैं. इसके बाद की कहानी एक बहादुर महिला, एक रिकॉर्ड तोड़ने वाले गणितज्ञ और सबसे ऊपर - एक मां की होती है. जिसका कहना होता है कि कौन कहता है कि मांओं को अपने सपनों को देखने का अधिकार नहीं होता आखिरकार?
फिल्म एक ऐसी महिला की यात्रा को बेहद खूबसूरत तरीके से दिखाता है, जो अपने सपनों को सच करने के साथ-साथ अपने बच्चे की देखभाल भी करना चाहती है. फिल्म में यह देख आपको एहसास होगा कि महिला एक मां होने से भी कहीं ज्यादा अधिक होती हैं. फिल्ममेकर अनु ने इसमें बॉलीवुड ड्रामा ऐड करने के साथ-साथ मस्ती का मसाला भी ऐड किया है, जो कि इस फिल्म को एंटरटेनिंग बनाती है. हालांकि फिल्म में शकुंतला देवी के सफल करियर से जुड़ी जानकारी डाली जा सकती थी.
विद्या ने शकुंतला देवी के रूप में एक सराहनीय प्रदर्शन पेश किया है, जिसमे हम उन्हें उनकी तरह तेज और फन-लविंग देख सकते हैं. यह कहना गलत नहीं होगा कि यह उनके द्वारा किये गए अब तक के बेहतरीन कामों में से एक है. स्क्रीन पर वह अपने किरदार में डूबीं हुईं एक महत्वाकांक्षी मैथ कैलकुलेटर के रूप में शानदार हैं और उसी तरह से एक मां के रूप में भी. इसके अलावा उनका जिशु के साथ किया जाने वाला रोमांस बेहद ही प्यारा है. वहीं, स्टेज पर समीकरणों को हल करते हुए, विद्या शानदार लग रही हैं. इस तरह से वह फिल्म में बड़ी सहजता से पूर्णता और शक्ति का मिश्रण लग रही हैं और इसी वजह से उन्होंने इस किरदार को बड़ी ही आसानी से निभा लिया है.
फिल्म में बोनस पॉइंट निश्चित रूप से सान्या के पास जाते हैं, जिन्होंने अपने अच्छे प्रदर्शन से प्रभावित किया है. एक्ट्रेस अपने किरदार में डूबी हुईं नजर आ रही हैं और बेहतरीन अंदाज में उसे निभाया है. वह फिल्म की शुरुआत और अंत में नजर आती हैं, और इस तरह से वह खुद को एक मजबूत संदेश देती हैं. अमित साध, जो उनके पति की भूमिका में हैं, उन्होंने अपने किरदार के साथ न्याय किया है. वहीं, एक सपोर्टिव पति पारितोष की भूमिका में जिशु सबका ध्यान अपनी तरफ खींचने में कामयाब हुए हैं.
दर्शकों के सामने फिल्म की कहानी को बेहद खूबसूरत अंदाज में लाने के लिए इसका क्रेडिट डायरेक्टर अनु मेनन को जाना चाहिए. नयनिका महतानी और उनके स्क्रीनप्ले ने बेहद खूबसूरत तरीके से कहानी को बाहर लेकर आईं हैं जो भावनात्मक, प्रेरक और पूरी तरह से आकर्षक है. अनु का लेखन और इशिता मोइत्रा के संवाद शानदार हैं और फिल्म की जान भी. सचिन-जिगर का म्यूजिक सोलफुल है और सीधे दिल को छूटा है. सिनेमैटोग्राफर केइको नकहरा फिल्म द्वारा की गयी देश विदेश के लोकेशन की शूटिंग शानदार है. इसके अलावा अंतरा लाहिड़ी की एडिटिंग फिल्म में जरुरी क्रिस्प लाती है.
शकुंतला देवी में हर उस महत्वपूर्ण पहलू को लिया गया है, जो एक अच्छी बायोपिक में होनी चाहिए. यह हमें एक भावनात्मक रोलर कोस्टर राइड पर ले जाती है और दर्शकों को निशब्द छोड़ देता है.