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'Bulbbul' Review: प्यार, दहशत और दर्द की अनोखी दास्तान है तृप्ति डिमरी की ये हॉरर फिल्म

Film: बुलबुल
OTT: नेटफ्लिक्स
Cast: तृप्ति डिमरी, राहुल बोस, अविनाश तिवारी, पाओली डैम और परमब्रता चट्टोपाध्याय
Director: अन्विता दत्ता
Rating: 4 मून्स

कहानी और दंतकथाएँ काल्पनिक कथाएँ हैं जिनमें हमारे बचपन का एक प्रमुख हिस्सा शामिल है. इसे एक bedtime कहानी कहो जो साहस की बात करती है या एक सच्ची रोमांटिक कहानी जो सच्चे प्यार को साबित करती है..हम उन सभी प्रकार की परियों की कहानियां पढ़ते हैं जो हमें प्रसन्न करते हैं...लेकिन, क्या हो सकता है अगर उनमें से सभी कल्पना के आसपास नहीं हैं ? इस सवाल को विस्तार से बताया हैं...अनुष्का शर्मा और उनके भाई कर्णेश शर्मा ने राइटर अन्विता दत्त के साथ मिलकर. सीधा कहे तो एक सधी हुई कहानी, एक दमदार मददगार टीम और एक हिम्मतवाली प्रोड्यूसर. 'बड़ी हवेली में बड़े राज होते हैं' इसी हवेली के इर्द-गिर्द नेटफ्लिक्स की फिल्म 'बुलबुल' की कहानी घूमती है. तृप्ति डिमरी, अविनाश तिवारी, राहुल बोस और पाओली डैम ने सबसे आगे बुलबुल को लीड किया हैं. 

बुलबुल की कहानी 19वीं सदी के अंत और 20 वीं शताब्दी की शुरुआत दौर के बीच बुनी हुई है. ये कहानी एक उम्र में बड़े आदमी (राहुल बोस) की बाल वधू (तृप्ति डिमरी) के रिश्ते के इर्द-गिर्द घूमती है, जो अपनी उम्र के देवर (अविनाश तिवारी) से प्यार करती है. 1881 में स्थापित, बंगाल प्रेसीडेंसी, बुलबुल (तृप्ति डिमरी) एक बाल वधू है, जिसकी शादी एक अमीर परिवार के बहुत बड़े ठाकुर (राहुल बोस) से हुई है. लेकिन बुलबुल को ठाकुर के छोटे भाई सत्या (अविनाश तिवारी) से प्यार हो जाता हैं. सत्या, उसके प्रति उसकी रूचि से अनजान, उसे सिर्फ उसकी भाभी और एक अच्छा दोस्त मानता है. तथ्य यह है कि बुलबुल के पास सत्या के लिए एक नरम कोना है. बुलबुल सत्या से पूरे दिल से प्यार करती है, लेकिन उसे नहीं पता है कि यह बाद में उसकी बड़ी परेशानी का कारण बन सकता है. वहीं ठाकुर के छोटे भाई महेंद्र की पत्नी का किरदार पाओली डैम ने निभाया है. वहीं फिर एक दिन सत्या कहीं चला जाता है. लंबे समय तक उसकी बुलबुल से मुलाकात नहीं हो पाती है. 

वहीं फिर 20 साल के लीप के बाद... सत्या जब वापस लौटता है तो हवेली में सबकुछ बदल जाता है. उस हवेली पर किसी प्रेत का साया होता है, जो कि हर किसी को जान से मार देता है. महेंद्र की भी मौत हो जाती है. सत्या को इन सब से निपटना है. वह यह साबित करने के लिए एक मिशन पर खड़ा होता है कि मौतें इंसानों द्वारा होती हैं न कि चुडैल. हालाँकि, यह उसे एक प्रमुख रहस्योद्घाटन की ओर ले जाता है.
 

फिल्म के शुरुआती सीन, जहां एक एक बाल विवाह को दिखाया जाता है और इसके बाद जंगल में घूमते घोड़ा गाड़ी के कुछ सीन्स अच्छे बन पड़े हैं. इसके अलावा अचानक दिखने वाली शैतानी चुड़ैल भी डराती है. अन्विता दत्त ने बहुत ही खूबसूरती के साथ 'बुलबुल' को रचा है, और महिलाओं के दर्द को भी बखूबी पेश किया है. कहानी सुनाने के संदर्भ में उसकी अपनी दृष्टि है और स्क्रीन पर चित्रित हर बारीकियों के साथ न्याय करती है. अन्विता दत्ता ने 'बुलबुल' से निर्देशन के क्षेत्र में अपना पहला कदम रखा है और पहली ही फिल्म में उनका काम सराहनीय है. फिल्म की पिक्चराइजेशन भी परफेक्ट है. 

फिल्म का निर्देशन अव्वल नंबर का है....और, दूसरे नंबर पर है राहुल बोस और तृप्ति डिमरी का कमाल का अभिनय। ‘कमाल’ दरअसल अभिनय के इस दर्जे के लिए छोटा शब्द होगा...इसे देखकर महसूसना ही ज्यादा सही रहेगा..बुलबुल सत्या के लिए श्रृंगार करती है...उसके साथ हंसती खेलती भी है..अबला हालत में होते अत्याचार में उसका चेहरा करुणा जगाता है और, जब वह काली बनती है तो दिखता है बुलबुल का रौद्र रूप. वीरता उसका पैदाइशी लक्षण है. भय वह बिल्कुल सही समय पर जगाती है. बुलबुल की मुस्कान उसके अद्भुत बदलाव की वाहक बनती है. सत्या के रोल में अविनाश तिवारी भी अच्छा काम करते नजर आ रहे हैं. अविनाश तिवारी और तृप्ति डिमरी फिल्म 'लैला मजनू' में पहले साथ काम कर चुके हैं. परमब्रता चट्टोपाध्याय को सिनेमा विरासत में मिला है. ऋत्विक घटक के डीएनए के दर्शन वह इस तरह के किरदारों में पहले भी कराते रहे हैं. पाओली डैम के लिए ये किरदार बाएं हाथ का खेल है और अश्विनी तिवारी लगातार इस कोशिश में हैं कि उनकी मेहनत को लोग नोटिस करें...लेकिन, इस फिल्म में बुलबुल का जो सैयाद (बहेलिया) है वह है राहुल बोस का उत्कृष्ट और दोहरा अभिनय। इंद्रनील और महेंद्र के किरदारों में राहुल बोस ने काइयांपन, लोलुपता, लालसा, ईर्ष्या, काम, क्रोध और वैराग्य का जो मिश्रण किया है, वह सिनेमा देखने का असली आनंद है.

अमित त्रिवेदी का म्यूजिक तो फ़ोटोग्राफ़ी के निदेशक सिद्धार्थ दीवान प्यार, ईर्ष्या, क्रोध, और ज़ाहिर है, रहस्य और भय के क्षणों को कैप्चर करने में एक शानदार काम करते हैं. रेड चिलीज़ द्वारा दृश्य प्रभाव अच्छा है, शाहरुख खान की कंपनी वीएफएक्स के मामले में वर्ल्ड लेवल हो चुकी है...लेकिन लाल स्वर जो जुनून, प्रेम, शक्ति, स्त्रीत्व और क्रोध का प्रतीक है, एक समय के बाद भारी हो जाता है. 

बुलबुल पारंपरिक रूप से डरावनी या अलौकिक फिल्म नहीं है, जो सफेद-चेहरे वाले भूतों और कर्कश आवाजों के इर्द-गिर्द घूमती है. टूटती रूढ़िवादिता, बुलबुल महिला सशक्तीकरण की एक शानदार कहानी है जिसमें दिखाया गया है कि अन्याय को बर्दाश्त करने के लिए कोई जगह नहीं है. एक अनूठी अवधारणा को एक अनूठी शैली के साथ एक साथ पिरोया गया हैं. अनुष्का, अन्विता और तृप्ति को इसके लिए बधाई.
 

PeepingMoon 'बुलबुल' को 4 मून्स देता है.

(Transcribe by Varsha Dixit)

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