फिल्म: दुर्गामती
कास्ट: भूमि पेडनेकर, अरशद वारसी, जीशु सेनगुप्ता, माही गिल, करण कपाड़िया
निर्देशक: जी. अशोक
अवधि: 2 घंटे 35 मिनट
OTT: अमेज़न प्राइम वीडियो
रेटिंग: 3 मून्स
IAS अधिकारी चंचल चौहान के रूप में भुमी पेडनेकर कहती हैं, "कैसे एक घर भूतिया हो सकता है, जब बाहर की दुनिया भूतों से पीड़ित है. यह वह तब कहती हैं, जब उसे CBI दुर्गामती मेंशन में कैद कर लेती है, जिसे वहां रहने वाले भूत बंगला भी कहते हैं. बता दें कि यह फिल्म अनुष्का शेट्टी की ब्लॉकबस्टर 'भागमती' (2018) की आधिकारिक हिंदी रीमेक है.
मध्य प्रदेश के गांव में स्थापित दुर्गावती को ओरिजिनल फिल्म को डायरेक्ट करने वाले अशोक द्वारा डायरेक्ट किया गया है. फिल्म की शुरुआत सेंट्रल कैरेक्टर यानी मिनिस्टर ऑफ वाटर एंड रिसोर्सेस ईश्वर प्रसाद से होती है. मंत्री जी को स्थानीय लोगों द्वारा पूजा जाता है इतना ही नहीं लोग उन पर आंख बंद करके भरोसा करते हैं. उनकी प्रतिष्ठा तब तक बनी रहती है जब तक सीबीआई वहां के मंदिरों में मौजूद 12 एंटीक और कीमती मूर्तियों को गायब पाते हैं. गांव में रहने वाले लोग इस बात पर यकीन नहीं कर पाती हैं कि ईश्वर का हाथ इन सब के पीछे है. जिसके बाद सीबीआई की ज्वाइंट डायरेक्टर सताक्षी गांगुली (माही गिल) मामले को अपने हाथ में लेती है. और इस तरह से वह एसीपी अजय सिंह जीशु सेनगुप्ता से मिलती है.
सताक्षी ने चंचल को बुलाया, जो अजय के भाई शक्ति की हत्या के लिए तीन महीने के लिए जेल में है. शक्ति चंचल का मंगेतर होता है. एक सिविल सेवा टॉपर, चंचल ने ईश्वर के निजी सचिव के रूप में दो कार्यकालों के लिए काम किया होता है, यानी कुल 10 साल. कुछ सबूत मिलने की उम्मीद में सताक्षी चंचल से नियमों के विरुद्ध पूछताछ करती है.
चंचल को विश्वास है कि वह ईश्वर की भ्रष्ट प्रथाओं के बारे में कुछ नहीं जानती है, और इस तरह से वह इस स्टैंड को बनाए रखती है और कहती है कि वह जनता का सेवक है. हालांकि, दुर्गामती की कहानी तब दिलचस्प हो जाती है. जब दबे हुए राज धीरे धीरे खुलते हैं. पहेली के विभिन्न टुकड़े जगह-जगह गिरने लगते हैं, जैसे ही रानी दुर्गामती की आत्मा चंचल को अपने वश में कर लेती है. दुर्गामती एक मिथक है या सच्चाई? फिल्म निश्चित रूप से 2 घंटे और 35 मिनट में इसका जवाब देती है.
फिल्म में हॉरर शैली का तड़का उसे आकर्षक होने के साथ देखने लायक बनाता है. जिन्होंने भागामाथी को नहीं देखा, उनके लिए दुर्गामती किसी सरप्राइज से कम नहीं है. अशोक ने स्क्रीनप्ले के साथ डायरेक्शन को खूबसूरती से संभाला है. अनुष्का की फिल्म के साथ तुलना करना सही नहीं है, लेकिन इसे एक नई हिंदी फिल्म के रूप में देखना आपको रीमेक का एहसास नहीं देगा. एक अच्छी तरह से निर्मित फिल्म जो आपको आपकी सोच से कहीं ज्यादा और शानदार कहानी देती है.
चंचल और दुर्गामती के रूप में भूमि ने अपने कभी न देखे जाने वाले अभिनय के साथ स्क्रीन को चमकाया है. रानी के रूप में उन्होंने खुद को बेहतरीन तरीके से ढाला है. भूमि अपने किरदारों को जीवंत करती हैं और इस तरह से अनुष्का के साथ उनकी तुलना खत्म नहीं होनी चाहिए, क्योंकि वे समान रूप से प्रतिभाशाली हैं.
अरशद ने पहले अपनी कॉमिक टाइमिंग का प्रदर्शन किया है लेकिन दुर्गामती उन्हें अलग ही रोशनी में दिखाती है. यह अनुमान लगाना आसान है कि उनका किरदार क्या मोड़ लेना वाला है, लेकिन अरशद की एक्टिंग बेहद अच्छी है. जिशु और माही अपनी भूमिकाओं में अच्छे हैं. करण द्वारा की गयी छोटी भूमिका सभ्य है.
दुर्गामती एक आकर्षक फिल्म है, फिल्म के कुछ सीन्स को खूबसूरती से फिल्माया गया है. प्रोडक्शन डिजाइनर तारिक उमर खान एक हॉरर फिल्म के लिए आवश्यक सही माहौल बनाने में कामयाब रहे हैं. हालांकि, फ़ोटोग्राफ़ी के निदेशक कुलदीप ममानिया यहां सेंटर स्टेज लेते हैं. बैकग्राउंड स्कोर ऐसी शैली की फिल्मों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और जेक बीजॉय ने निराश नहीं किया है. रवींद्र रंधावा के संवाद ड्रामेटिक हैं, लेकिन अच्छी तरह से काम करते हैं.
डरावनी शैली के साथ आने वाली कुछ रूढ़िवादी समस्याओं के अलावा, दुर्गामती आश्चर्यजनक रूप से बॉलीवुड की तीन पसंदीदा शैलियों - राजनीति, अपराध और हॉरर का मिश्रण है. रीमेक को बॉलीवुड में इस तरह की बेहतरीन अवधारणा के साथ देखना आश्चर्यजनक है. ऐसे में फिल्म को एंटरटेनर कहना गलत नहीं होगा.