प्रियदर्शन की मल्टीस्टारर फिल्म 'हंगामा 2' की रिलीज में बस कुछ ही दिन बाकी है. अभिनेता राजपाल यादव को बॉलीवुड में 22 साल हो चुके हैं. उन्होनें हर तरह की कॉमेडी फिल्म में काम किया है, वो प्रियदर्शन की ज्यादातर फिल्मों का हिस्सा रहे हैं. रिलीज से पहले फिल्म की स्टारकास्ट इसके प्रमोशन में व्यस्त है. हाल ही में PeepingMoon से बातचीत मेंअभिनेता राजपाल यादव ने निर्देशक के साथ सालों तक काम करने और फिल्म को लेकर अपने अनुभव के बारे में बात की.
यह फिल्म आपके लिए कई मायनों में स्पेशल है, क्या कहेंगे ?
जवाब- 'हंगामा' टाइटल ही हमारे लिए स्पेशल है. इस फिल्म की वजह से प्रिय ( प्रियदर्शन) जी मिले और एक अच्छा बैनर मिला वीनस और रतन जी मिले. इस फिल्म के साथ जीवन की बहुत यादें जुड़ी है. जितना फिल्म में कमाल किया था उतना ही शोज करने में ये जहां जाता था तो हंगामा के डायलॉग बोल बोलके बहुत रोजी रोटी कमाता था तो ये फिल्म 100% हमारे लिए बहुत मायने रखती है. सबसे हूं कि 23 जुलाई को सब डिज्नी प्लस हॉटस्टार पर इस फिल्म को जरूर देखें. इसका मजा लें. उम्मीद हूं कि यह फिल्म बच्चे, बूढ़े, नौजवान सभी को अच्छी लगेगी.
ट्रेलर रिलीज के बाद सोशल मीडिया पर आप, जॉनी लीवर और परेश रावल के बारे में कहा जा रहा है कि आप तीनों फिल्म की जान है. कॉमेडी फिल्म हो और आप तीनों में से कोई न हो तो वो अधूरा लगता है. क्या कहेंगे ?
जवाब- पता नहीं लेकिन जब आप सबका पॉजिटिव देखने का नजरिया मिल जाता है तो पूरा लगता है. जॉनी भाई और परेश जी ये दोनों ऐसे नाम है और आशुतोष राणा जी इन्होने दशकों तक अपने देश और दुनिया की सेवा की है और मैं उसकी बहुत कद्र करता हूं. मुझे इनके साथ असोसिएट होने का मौका मिला है, ये एक्टर के लिए बड़े सौभाग्य की बात होती है जैसे कुश्ती के अखाड़े में अच्छे पहलवान मिल जाए और मनोरंजन के अखाड़े में अच्छे कलाकार मिल जाए.
ओरिजिनल हंगामा एक मास्टरपीस थी, किसके सेट पर आपको ज्यादा मजा आया ?
जवाब: मुझे प्रियदर्शन जी के साथ काम करने में मजा आता है, जब भी काम करता हूं एक नया स्टूडेंट बनकर निकलता हूं. प्रियदर्शन जी के जो कलाकारों की टोली है, वो सब कलाकार अलग- अलग आंखें हैं लेकिन मिशन सेम लगता है. प्रियदर्शन जी का इसमें जितना भी योगदान बोला जाए वो कम है. क्योंकि जैसी राजा वैसी प्रजा. जब अपने आप में मनोरंजन का साइंटिस्ट आगे- आगे चल रहा है तो हम लोग बहुत सेफ महसूस करते हैं. वो आजादी भी खूब देते हैं. प्रिय जी के साथ काम करना जैसे हमेशा बैटरी रिचार्ज करना होता है.
ऐसा कहा जा रहा है कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में या तो बायोपिक्स बन रही है या फिर रीमिक्स, ओरिजिनल कंटेंट कहीं नहीं दिख रहा ?
जवाब- जो भी बने वह अच्छा बनें. अगर एक लव है तो लव के ऊपर हजार फिल्में बन चुकीं हैं. दुनिया में 36 प्लॉट है, कभी- कभी रीमेक बनाना अच्छा होता है, कभी- कभी इन्स्पिरेशन बनाना अच्छा होता है. लेकिन कहीं न कहीं से कोई न कोई जीवन के तार जुड़े हुए हैं तो कोई न कोई फिल्म किसी न किसी से लिंक तो लगती ही है. अब उसमें चाहे आप फिल्म लेकर फिल्म बनाये या नयी फिल्म बनाये लेकिन कोशिश करें जो बनाये उसमें ईमानदारी हो, अच्छा हो और नया हो. फिल्म नयी बनती है तो नयी दिखानी चाहिए. वो चाहे पुरानी फिल्म से लिया हो या नया आइडिया हो. (जब फिल्म नयी बनती है और माल सब पुराना लगता है तो बड़ा दुःख होता है.)
प्रियदर्शन की ज्यादातर फिल्मों में आप रहे है चाहे वो 'गरम मसाला' हो, 'खट्टा मीठा' हो या फिर 'भूल भुलैया' हो, आपकी मौजूदगी दर्शकों के चेहरे पर मुस्कान ले आती है, आपका फ्रेम में रहना ही बहुत होता है ?
जवाब: मैं शरमा गया (हंसते हुए). ये जो भी है पुरी दुनिया है इसमें मेरा कुछ भी योगदान नहीं है. मैं इसे रिस्पेक्ट के साथ स्वीकार करता हूं. ईश्वर जहां भी खड़ा हो. लोगों को हमारे खड़े होने पर भी आनंद मिले.
प्रियदर्शन के साथ इतना लंबा सफर तय करने के बाद आपने उनके डायरेक्शन में क्या बदलाव देखा है ?
जवाब: मैं आपको एक चीज बताऊं, पेड़ चार बार गिर उसमें नए अंकुर लगते हैं और वो पेड़ बन जाता है लेकिन पेड़ का बेस कभी नहीं बदलता. जितना नेचुरल बेस होता है उतना ही नेचुरल शेष होता है और प्रिय जी तो 70- 70 फिल्में लगभग अलग- अलग दे चुके हैं. लेकिन उन्होंने अपने बेस के साथ हमेशा ईमानदारी रखी और उस ऑनेस्टी की मैं बहुत कद्र करता हूं. वो बेस के साथ कभी नहीं खेलते लेकिन शेष के साथ लगातार प्रयोग करते रहते है. कहां विरासत कहां हंगामा, कहां गर्दिश कहां गरम मसाला, कहां मुस्कुराहट और कहां मालामाल वीकली. मुझे लगता है कि प्रिय जी जीतना कॉमेडी समझते है उतना ही वह 3 डी सिनेमा और जीवन भी समझते है इसलिए वह इतना सक्सेसफुली डायरेक्ट कर पाते है, हम जैसे सब बदमाश कलाकारों को (हंसते हुए).
कुछ लेजेंडरी कॉमेडियंस है जैसे संजय मिश्रा, विनय पाठक, असरानी, टीकू तलसानिया और आप ये पर्दे पर बहुत कम दिखाई देने लगे है, ऑडियंस इन्हे मिस करती है. फिल्में तो दर्जनों में बन रही है लेकिन क्या मौके कम है ?
जवाब- मौके कम नहीं है चॉइसेज है इन एक्टर्स के लिए. मौके की क्या बात है अब तो चॉइसेज है हमारे पास, ओटीटी की वजह से. अब जैसे पिछले पांच- छह महीने की बात कर रहा था, कुली नंबर वन रिलीज हुयी फिर उसके बाद टाइम टू डांस सीरीज की फिल्म थी वो रिलीज हुयी. फिर 'हेलो चार्ली' रिलीज हुयी. अभी 'हंगामा 2' रिलीज हो रही है. फिर 'भूल भुलैया 2' रिलीज होगी. इतनी आपदा में पांच छह फिल्में रिलीज हो गयी है. ओटीटी के कारण इन एक्टर्स के पास तीन डायमेंशनल वर्क है. अब तो दरवाजे और ज्यादा खुल गए हैं. अब तो सिनेमा का सपोर्टर पैदा हो गया है ओटीटी के रूप में.
आपने शाहिद कपूर, अक्षय कुमार, अक्षय खन्ना सलमान खान जैसे लोगों के साथ स्क्रीन शेयर किया है और इसमें आपके साथ मीज़ान जाफरी और प्रणिता सुभाष है. क्या कोई अंतर दिखाई देता है. बातचीत के तरीके में, मिलने के तरीके में ?
जवाब- ऐसा नहीं है. सभी की जुबान, भाषा अलग-अलग है. मीजन और प्रणिता सुभाष की बात करूं तो मुझे लगा मैं इनसे उम्र में कम हूं. भाषा वहां मिस कयुमिनिकेट होती है जब आप किसी चीज में खुखुद को बड़ा रखें लेकिन जब आप और आपके सामनेवाला दोनों का कद खड़ा रहता है न तो वहां पर सबकुछ अच्छा ही वायब्रेट होता है. बच्चन साहब के साथ जब- जब मुझे काम करने का मौका मिला है मुझे लगा मैं रोज इनके साथ 20 साल से बैठ रहा हूं. हमें ये सीखने का मौका मिला कि हमें हमारे यंग जेनरेशन से कैसा व्यवहार करना चाहिए. हमने अगर उनसे ज्यादा 10 साल की दुनिया देखी है तो इसमें उनका दोष नहीं है. हमें अपनी दुनिया को थोड़ी देर के लिए साइड में रखकर उनकी दुनिया में शामिल हो जाना है.
'वक़्त' में आपका लक्ष्मण का किरदार एपिक था, आप जीतनी बार फ्रेम में आये हैं बस आप ही दिखे हैं. लक्ष्मण का किरदार ऐसे होगा ये आइडिया किसका था?
जवाब- पूरा आइडिया ऋतू शाह जी का था. वो थिएटर के हैं और हमर उनका बड़ा अच्छा कम्युनिकेशन हो गया था. वो हमें प्यार भी करते है और हम उनकी रिस्पेक्ट भी बहुत करते है. वो कैरेक्टर हमें सुनाया था. उस तरह के किरदार हमने जीवन में एक दो जगह देखे थे.