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PeepingMoon Exlcusive: मुंबई डायरीज सीरीज से जुड़ने पर सत्यजीत दुबे ने कहा, 'कहानी इतनी अच्छी है, मुझे लगा कि इसका हिस्सा बनना तो बनता है'

26 नवंबर 2008 को मुंबई पर हुए आतंकी हमले की तस्वीर 12 साल बाद भी लोगों के दिमाग में ताज़ी है. इस अटैक में फ्रंटलाइन वर्कर्स ने जिस तरह जिंदादिली दिखाई थी वह काबिल- ए-तारीफ़ थी. सीरीज में अस्पताल पर हमले की कहानी एक्शन-इमोशन-ड्रामे से भरपूर है. जिसमें जगहों तथा व्यक्तियों के नाम-पहचान बदल दिए गए हैं. अभिनेता सत्यजीत दुबे एक जूनियर डॉक्टर का किरदार निभा रहे हैं. हाल ही में पीपिंगमून से बातचीत में उन्होंने अपने अनुभव के बारे में बात की. 

यह पूछने पर कि सीरीज के लिए वो ऑन बोर्ड कैसे आये और जब प्रोजेक्ट ऑफर हुआ तो उनका क्या रिएक्शन था, अभिनेता ने कहा,' मुझे एक ऑडिशन के स्क्रीन टेस्ट का कॉल आया था, कविश सिन्हा की कास्टिंग एजेंसी से क्यूंकि इतनी बातें होती रहती है, इतने ऑडिशन होते रहते है तो आप करके आ जाते हैं. तीन दिन बाद मुझे उनके ऑफिस से फ़ोन आया कि  उन्होनें कहा की निखिल आडवाणी मिलना चाहते हैं आप से. तो में गया आडवाणी साहब से मिलने के लिए और उन्होंने मुझसे कहा कि आपका काम मुझे बहुत पसंद है और मैं चाहूंगा कि आप इस प्रोजेक्ट का हिस्सा बनें. मैंने कहा बहुत अच्छी बात है सर मैं कहानी पढ़ना चाहूंगा. मुझे स्क्रिप्ट दी पढ़ने के लिए. जब मैंने स्क्रिप्ट पढ़ी तब मुझे लगा कि एक तो डायरेक्टर इतने उम्दा है. उनकी तरफ से अगर कोई ऑफर आ रहा है तो आपको मना नहीं करना चाहिए. कहानी इतनी अच्छी है, जिस तरीके से जिस संजीदगी के साथ लिखी गयी है तो मुझे लगा कि इसका हिस्सा बनना तो बनता है. फिर आईने हां कहा और उसके बाद हमारी प्रिपरेशन शुरू हो गयी. 

ट्रेलर में दिखाए गए अपने डायलॉग (मेरा पहला दिन है 'i can't do it') पर सत्यजीत ने कहा, 'हेल्दी नर्वसनेस हमेशा बनी रहनी चाहिए. वो तो एक इंटरव्यू करने से पहले भी मेरे अंदर बनी रहती है. मेरा ऐसा मानना है कि अगर में थोड़ा सा एक्ससाइटेड और नर्वस न रहूं चीजों को लेकर (हां अच्छा था, हां कर लिया) तो एक इगरनेस होनी चाहिए. नर्वसनेस ये है कि एक हलकी सी हलचल बनी हुयी है कि कैसे करूंगा उसे मैं क्यूंकि एक्टर का काम बहुत इंटरनल होता है. आप इमोशन्स को फील कर रहे हैं. तो वो एक एक्शन और कट के बीच में आना चाहिए. कई बार उसमें मैजिक आ जाता है तो आप एक अलग इमोशनल स्टेट में रहते है. 

 

 

26/11 हमले वाली रात को याद करते हुए सत्यजीत ने कहा, 'मैं मुंबई में ही था मेरा दूसरा साल था. मेरी मां का फ़ोन आया था. बहुत परेशान थी वो. उन्होंने कहा था कि मैंने मना किया था मुंबई जाने से. देखो क्या हो रहा है वहां पर. जैसे एक मां होती है परेशान. मैं अंधेरी ईस्ट में एक छोटी सी जगह थी जिसे बम्बई भाषा में खोली कहते है वहां रह रहा था. मेस में नीचे खाना खाने गया था. हम खाकर आ रहे थे और एकदम से पुलिस की गाड़ी निकली. लाउडस्पीकर में उन्होंने कहा सब अपने अपने घर में जाइये शटर बंद कीजिए. पता चला की मुंबई पर अटैक हुआ है. 

अपने किरदार के लिए किसी मेडिकल स्टाफ से बातचीत के सवाल पर अभिनेता ने कहा, 'हमारा 15 से 20 दिन का वर्कशॉप हुआ था. उसमें हमने मेडिकल भाषा जो टर्मलोजी होती है वो सीखी थी. उसका सही उच्चारण करना सीखा और जो जो प्रॉसिजर हमें परफॉर्म करने थे उसकी बार- बार हमने प्रैक्टिस की. अगर आप डॉक्टर का किरदार निभा रहे हैं तो टेक्निकली आपको साउंड होना पड़ता है. आप जो किरदार प्ले कर रहे होते हो उसके पीछे एक इंसान होता है, उसकी खुद की अपनी एक जर्नी होती है. 

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