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जॉन अब्राहम को आदित्य चोपड़ा ने वो कौन सा कॉम्प्लीमेंट दिया जिसके लिए हर एक्टर तरसेगा

अपनी लंबी कदकाठी और डोले-शोले के लिए मशहूर बॉलीवुड अभिनेता जॉन अब्राहम  45 वां जन्मदिन मना रहे हैं. उन्होंने 31 की उम्र में बॉलीवुड फिल्म 'जिस्म' के साथ अपने करियर की शुरुआत की थी. इसके लिए उन्हें फिल्मफेयर में बेस्ट डेब्यू के लिए नामांकित भी किया गया. अपने आने वाले प्रोजेक्‍ट्स के बारे मे जॉन ने की हमसे एक्‍सक्‍लूसिव बातचीत, पढ़‍िए बातचीत के खास अंश.

इंडस्ट्री में आपका कोई गॉडफादर नहीं है. उसके बावजूद एक मॉडल से सफल एक्टर और फिर एक सफल प्रोड्यूसर तक का सफर आपने तय किया. क्या ताकत रही इसके पीछे?
मैं हमेशा कहता हूं कि सेल्फ कन्विक्शन या आत्मविश्वास सबसे ज्‍यादा जरूरी है. मुझे लगता है कि मेरी जिंदगी में सबसे बड़ी चीज वो आत्मविश्वास ही है. क्यूंकि जब भी किसी ने मुझसे कहा है कि तुम ये नहीं कर सकते हो, तब मैंने हमेशा यह सोचा है कि 'आई थिंक आई कैन डू इट.' मैं वो काम कर सकता हूं. आज की तारीख में भी लोग कई बार बोलते हैं कि आप ये क्यों प्रोड्यूस कर रहे हो, ये नहीं काम करेगा. लेकिन मैं बोलता हूं कि मैं करूंगा. मुझे अपने ऊपर पूरा भरोसा है. उस वजह से मुझे लगता है कि मैं आज यहां तक पहुंचा हूं.

करियर के इस मुकाम पर आकर आपने 'परमाणु' जैसा सब्जेक्ट क्यों चुना?
मैं मानता हूं कि आज का जो ये युवा है, उसे अपने भारतीय होने पर बहुत गर्व है. एक समय था जब हम खुद को दूसरे देशों के मुकाबले कहीं पिछड़ा हुआ समझते थे. इंडियन पासपोर्ट के साथ एक शर्मिंदगी लगती थी. लेकिन आज ऐसा नहीं है. आज का यूथ मानता है कि भारत एक महान देश है. और इसके महान होने के पीछे 11 मई 1998 की तारीख का बहुत बड़ा हाथ है. इस तारीख को बुद्ध पूर्णिमा का दिन रहा है. बुद्ध इस दिन मुस्कुराए थे. और हमने इस दिन परमाणु परीक्षण किया. इसकी महत्ता यह रही कि उस परीक्षण के बाद से पूरी दुनिया को यह पता चला कि भारत भी दमखम रखने वाला देश है और इससे उलझना ठीक नहीं रहेगा. इतिहास को देखा जाए तो इंडिया एक अहिंसावादी देश रहा है. तो यह परीक्षण कोई न्यूक्लियर बम बनाने के लिए नहीं था. बल्कि यह प्रयोग स्वयं को परमाणु ऊर्जा से संपन्न बनाए रखने के लिए था. इसलिए यह इवेंट भारत के इतिहास में एक मील का पत्थर था. और इसकी कहानी तो सबको पता चलनी चाहिए. हमने अपने भूतपूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के ऊपर 'मद्रास कैफे' बनाई थी. ऐसे ही कई कहानियां हैं जिन्हें मैं समझता हूं कि युवाओं को जानना चाहिए. और आप देखिएगा कि इस ऑडियंस का एक हिस्सा ऐसा भी होगा जो इस फिल्म को देखकर बहुत गर्व महसूस करेगा.

'परमाणु' की शूटिंग राजस्थान में हुई है. लेकिन आप काफी लम्बे अरसे से मुंबई में हैं. राजस्थान का वातावरण और आबो-हवा यहां से बिलकुल अलग है. वहां का कोई किस्सा आप शेयर करना चाहेंगे?
इस फिल्म के डायरेक्टर हैं अभिषेक शर्मा, जिन्होंने 'तेरे बिन लादेन' भी बनाई है. उन्होंने मुझसे पूछा कि यह फिल्म कब शूट करनी है? मैंने बदले में उनसे सवाल किया कि टेस्ट कब हुआ? फिर उन्होंने जब बताया कि 11 मई को टेस्ट हुआ था, तो मैंने बोला कि मई में ही राजस्थान जाकर शूट करेंगे. पहले तो अभिषेक थोड़ा घबराए कि उस महीने में तो राजस्थान में काफी गर्मी होगी. लेकिन अभिषेक एक स्मार्ट इंसान हैं. उन्हें तुरंत लगा कि उस सब्जेक्ट को वो फील देने के लिए हमें शूटिंग के लिए भी वही टाइम चुनना चाहिए. कभी-कभी तो आप असल इवेंट जैसा एक माहौल तैयार कर सकते हो, लेकिन असली मौसम वाला जो लुक और फील होता है, वो आर्टिफिशियल सेटअप में नहीं आता है. और हम खुद भी यह महसूस करना चाहते थे कि उस मौसम में हमारे जवानों, वैज्ञानिकों आदि पर क्या बीती होगी. उस समय तापमान 51 डिग्री भी पार कर रहा था. लेकिन हम अपने प्रोडक्शन हाउस के क्रू मेम्बर्स का बहुत ध्यान रखते हैं. पहले उनकी सेफ्टी निर्धारित करते हैं. तो उनके आराम को भी हमने ध्यान में रखा. और राजस्थानी लोग बहुत प्यारे हैं. इसके अलावा पोखरण का भी एक किस्सा मुझे याद है. एक फोन बूथ पर मैं एक सीन कर रहा था और अचानक किसी ने उसके कांच पर एक पत्थर फेंका. पत्थर की आवाज आते ही तुरंत वहां की तमाम महिलाएं इकठ्ठा हो गईं और हमसे हाथ जोड़कर उन्होंने कहा कि जिसने भी ऐसा किया है हम उसे पकड़कर लाएंगे, लेकिन उसकी तरफ से हम सब आपसे माफी मांगते हैं. वहां का खाना भी बहुत लजीज था. और हमें वहां शूटिंग करके बहुत मजा आया.

जब ये असली परमाणु परीक्षण हुआ था तब आप क्या कर रहे थे और उस समय आपकी इस पर क्या प्रतिक्रिया थी?
मैं उन दिनों अपना एमबीए कर रहा था. मुझे बहुत बुरा लगता है जब मैं किसी से पूछता हूं कि 1998 में क्या हुआ था और लोग जवाब नहीं दे पाते. ठीक ऐसा ही 'मद्रास कैफे' के टाइम पर भी मेरे साथ हुआ है. कई ऐसी चीजें है जो आज की यंग ऑडियंस को पता ही नहीं हैं. लेकिन मेरी हमेशा से ही पॉलिटिकल सब्जेक्ट्स को पढ़ने में रुचि रही है. तो अगर आप मुझसे पूछेंगे कि आजकल सीरिया में क्या हो रहा है, या वेनेजुएला में क्या हो रहा है या जापान और नॉर्थ कोरिया में क्या हालात हैं, तो मैं शायद बता सकता हूं क्यूंकि मैं दुनिया भर के बारे में पढ़ता रहता हूं. तो मैं 1998 का भी आपको बता सकता हूं. मैं उन दिनों न्यूज देख रहा था और मुझे याद है कि उस टाइम पर कुछ पत्रकार एक किसान के पास कुछ सवाल पूछने आए. वो टेस्ट अंडरग्राउंड हुआ था. तो उन लोगों ने उस किसान से पूछा, 'इस टेस्ट से तो आपके घर में दरारें आ गईं. इस बारे में आप क्या कहेंगे?' तो उस किसान ने जवाब दिया था, 'घर टूट गया तो क्या हुआ साहब...देश तो बन गया न'. ऐसे देशभक्ति के जज्‍बे को सलाम है और ऐसी कहानियां तो सालों तक सबको सुनानी चाहिए. इसलिए मैंने यह फिल्म बनाई है.

एक तरफ आपने 'हॉउसफुल' जैसी कॉमेडी फिल्में की हैं और दूसरी तरफ आपकी एक्शन फिल्मों की लिस्ट भी काफी लम्बी है. आपको किस तरह की फिल्में ज्‍यादा पसंद हैं?
मुझे कॉमेडी फिल्में बहुत पसंद हैं - आई सिम्पली लव कॉमेडी. मैं अनीस बज्मी, प्रियदर्शन, साजिद खान और नीरज वोरा जैसे लोगों का बहुत बड़ा फैन हूं. मैं खुद को एक बुद्धिजीवी बताते हुए बिलकुल भी यह नहीं बोलूंगा कि मुझे सिर्फ 'मद्रास कैफे' या 'परमाणु' जैसी फिल्में ही बनानी हैं. मुझे कॉमेडी बेहद पसंद है. मैं अपने पैरेंट्स को भी अगर फिल्म दिखाने ले जाऊं, तो कोशिश करूंगा कि वो एक कॉमेडी फिल्म ही हो. हॉल में सबसे ज्‍यादा शायद मैं ही हंसता हूं. आप देखिए रोहित की फिल्म 'गोलमाल 4' ने इस साल क्या कमाल किया है. मैं कॉमेडी इसलिए करता हूं कि ऐसी फिल्मों की शूटिंग के दौरान भी एक बहुत ही पॉजिटिव माहौल होता है. मैंने कई कॉमेडी फिल्में अक्षय के साथ की हैं और उनसे बहुत कुछ सीखा है. वो बिलकुल मेरे भाई की तरह हैं और मेरे बहुत करीब हैं. हम दोनों जब भी साथ में आते हैं तो ऑडियंस भी शायद एक्साइटेड हो जाती है.

'फोर्स 2' के बाद आपकी इस साल कोई फिल्म नहीं आई. आपको इस साल पर्दे पर न आ पाने का दुख है या आप कूल थे कि अच्छी स्क्रिप्ट के साथ ही उतरेंगे?
यह एक सीढ़ी की तरह है. मैं फिल्मों को या अपने काम को लेकर परेशान नहीं रहता हूं. मैं मानता हूं कि फिल्म वही बनानी चाहिए जिसमें हमारा विश्वास पूरी तरह जमा हुआ हो. जब आप उसमें खुद विश्वास करोगे तो ऑडियंस उसे देखेगी. लेकिन अगर किसी फिल्म में मेरा विश्वास नहीं है, या सिर्फ पैसे के लिए किसी ने बोला कि कमर्शियल फिल्म है - कर लो, तो मैं वो नहीं करता हूं. 'परमाणु' के लिए मैं चाहता था कि यह इसी साल दिसंबर में रिलीज हो. लेकिन इसकी डेट्स आगे पुश हो गई. हमें अभी फिल्म में कुछ जगह स्पेशल इफेक्ट्स डालने हैं. उसके बाद इत्मिनान से रिलीज करेंगे.

'परमाणु' में आप एक्टर भी हैं और इस फिल्म के प्रोड्यूसर भी हैं. तो जब कोई और प्रोड्यूसर आपके पास ऑफर के साथ आते हैं तो आप उन्हें सुनते हैं?
बिलकुल. मैं सबको सुनता हूं. और कभी-कभी अपने प्रोड्यूसर होने पर ऊपरवाले को शुक्रिया अदा भी करता हूं कि मैं उनसे अच्छी फिल्म बना रहा हूं (हंसते हुए). मैं कई बार देखता हूं कि कैसी- कैसी स्क्रिप्ट्स पास हो रही हैं, लोग क्या क्या बना रहे हैं.

आपकी एक फिल्म थी 'वॉटर', उस जैसे किसी प्रोजेक्ट में दोबारा काम करने का मन है आपका?
'वॉटर' एक इंटरनेशनल टाइप की फिल्म थी. वो आज भी रिलीज होती तो अच्छी ऑडियंस बटोरती. उस टाइम पर विधवा प्रणाली पर बनी फिल्म एक शॉकिंग सब्जेक्ट थी. आज शायद हमारे लिए यह टॉपिक उतना चौंकाने वाला नहीं है, लेकिन उस समय था. लेकिन हां, उस जैसी एक इंडियन-इंटरनेशनल फिल्म अगर मुझे बनाने का मौका मिले तो मैं जरूर बनाऊंगा. लेकिन मेरा झुकाव कुछ 'नो स्मोकिंग' टाइप की फिल्मों की तरफ ज्‍यादा है. अनुराग उस टाइम पर मेरे पास उसकी स्क्रिप्ट लेकर आए थे. मैंने पहली बार सुनते ही उनसे कहा कि कितनी घटिया स्क्रिप्ट है. फिर उन्होंने बोला कि तुम्हें जो सुनाया वो तो रास्ते में आते-आते मन में बनाई स्टोरी थी. अब 'नो स्मोकिंग' फिल्म की असली स्क्रिप्ट सुनो. और सुनते ही मैंने कहा कि मुझे यह फिल्म करनी है. मेरे दोस्तों से मेरी बातचीत हुई और हमें लगा कि शायद यह फिल्म अच्छा बिजनेस नहीं करेगी. लेकिन मैं पहले ही सोच चुका था कि वो फिल्म मुझे ही करनी थी. इंडस्ट्री में मैं आदित्य चोपड़ा की बहुत इज्‍जत करता हूं. उन्होंने मुझसे कहा था, 'जॉन तुम्हारी सबसे इंटेलिजेंट चॉइसेज वो हैं जो फेल हुई हैं. वो एक अलग तरह का ही काम है. एक तरफ जब लोग कमर्शियल सिनेमा में करियर पाथ बनाने में लगे हुए हैं, उस समय तुम कुछ अलग कर रहे हो.'

और मैं खुद भी मानता हूं कि 'वॉटर' से लेकर 'नो स्मोकिंग', 'काबुल एक्सप्रेस' या प्रोड्यूसर के तौर पर 'विक्की डोनर' और फिर 'मद्रास कैफे' तक मैंने कुछ अलग तरह की फिल्में कीं. और मैं जब भी कुछ अलग कर रहा होता हूं तो यह जरूर सोचता हूं कि रिस्क क्या है मुझे. कुछ खोने का डर तो है नहीं. जब करियर शुरू किया था तब पैसे भी नहीं थे मेरे पास. आज भी डूब जाएगा तो भी मैं वापस वहीं आ जाऊंगा जहां से सब शुरू किया था. इसलिए मैं हमेशा रिस्क लेता हूं.

आपको पर्सनली क्या काम ज्‍यादा पसंद है - एक्टिंग का या प्रोड्यूसर का?
मुझे एक्टिंग ज्‍यादा पसंद है. मैं एक्टिंग बहुत एन्जॉय करता हूं. लेकिन आजकल मुझे प्रोड्यूसर का रोल भी अच्छा लग रहा है, क्यूंकि ऐसा बिलकुल नहीं है कि मेरे प्रोडक्शन हाउस में सिर्फ मैं ही एक्टर हूं. अगर किसी फिल्म के लिए हमें लगता है कि वरुण इस रोल में सूट करेगा, तो हम वरुण के पास जाते हैं. अगर कहीं लगता है कि कोई फिल्म टाइगर पर जंचेगी तो हम टाइगर के पास जाते हैं. ऐसे ही आयुष्मान से लेकर डायना पेंटी, कंगना, अनुष्का आदि कई एक्टर्स ने हमारे प्रोडक्शन हाउस के साथ काम किया है. हम मानते हैं कि हमारा प्रोडक्शन हाउस जॉन अब्राहम की स्टार वैल्यू से न जाना जाए बल्कि 'जे एंटरटेनमेंट' की कंटेंट वैल्यू से जाना जाए.

आपको बाइक्स का शौक कब और कैसे लगा?
यह तब की बात है जब मैं 6 या 7 साल का था. मेरे भाई शिप पर थे. वो एक फॉरेन स्पोर्ट्स बाइक लेकर लेकर आए थे. मुझे याद है वो हौंडा सीबी 754 थी. मैं महज 6 साल का था और मेरी लम्बाई सिर्फ उतनी ही थी जहां बाइक का मॉडल नाम लिखा होता है. और मुझे उस चीज को देखकर इतना आश्चर्य हुआ था कि ये क्या चीज है जो इतनी खूबसूरत है और इतनी बड़ी है. किसने बनाई होगी यह चीज. तभी से मुझे बाइक्स के लिए प्यार पैदा हो गया. 9 साल का था मैं जब मैंने अपने एक गुजराती दोस्त का बजाज चेतक चलाया. बाइक चलना सीखते-सीखते यह प्यार और बढ़ता गया. आपको शायद यकीन नहीं होगा लेकिन यह प्यार बढ़ते-बढ़ते इस हद तक पहुंच गया है कि मेरे पास आजकल जो यामाहा की बाइक है उसका इंजन मैंने ऐसे ट्यून किया है कि उसकी आवाज और मेरे दिल की धड़कन एक सिंक में हैं (एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं). मैं जब उसे चलाता हूं तो मेरी हार्टबीट और उसकी आवाज एक सिंक में होने की वजह से मुझे बहुत कम्फर्ट मिलता है, ऐसा लगता है कि हम दोनों एक ही हैं.

'परमाणु' जैसे सीरियस और पेचीदे सब्जेक्ट पर फिल्म बनाने के बीच में आपने एक मराठी फिल्म भी प्रोड्यूस की. ऐसा क्यों?
कई साल पहले की बात है जब मैं शिवसेना भवन के पास एक जगह पर गया था और वहां मैंने एक मराठी नाटक देखा था. वो नाटक देखकर तो मैं जैसे दीवानाा हो गया था उस पर. मैंने सोचा था कि कभी फिल्में बनाने का मौका मिलेगा तो इस पर एक हिंदी फिल्म बनाएंगे. लेकिन बाद में अहसास हुआ कि हर चीज को हिंदी में क्यों बदलना. एक भाषा से दूसरी भाषा में बदलने में चीजों की ओरिजिनालिटी कहीं खो जाती है. तो हमने डिसाइड किया कि उस पर मराठी फिल्म बनाते हैं. उसमें हमने कास्ट किया था सुबोध भावे को, जो कमाल के एक्टर हैं. इसको डायरेक्ट किया स्वप्ना वाघमारे जोशी ने. फिल्म अभी पूरी नहीं हुई है, इसका पोस्ट-प्रोडक्शन का काम चल रहा है अभी.

आपके आने वाले प्रोजेक्ट्स कौन-कौन से हैं?
अभी तो सिर्फ 'परमाणु' ही है. इसके अलावा एक काफी इंट्रेस्टिंग सब्जेक्ट को लेकर निखिल आडवाणी के साथ बात चल रही है. इसमें मेरे साथ-साथ मनोज बाजपेयी भी बहुत इंट्रेस्टेड हैं. शायद वो मेरा अगला प्रोजेक्ट हो. इसका टाइटल अब तक कुछ फाइनल नहीं हुआ है.

जॉन अब्राहम का अल्टीमेट गोल क्या है जिससे उन्हें संतुष्टि मिल सके?
पहले तो मैं एक एक्टर हूं, उसके बाद प्रोड्यूसर. पता नहीं आगे कभी डायरेक्टर बनूंगा या नहीं. लेकिन बतौर एक्टर हम लोग तारीफ के भूखे होते हैं. और जहां से भी मुझे तारीफ मिलती है मैं उसे पकड़कर रखता हूं.

आपकी पसंदीदा किताब कौन सी है और किस लेखक को आप ज्‍यादा पढ़ते हैं?
आजकल तो मेरी पसंदीदा किताब 'मोरया रे' है जिसके लेखक मार्क मैन्युअल हैं. और मेरा मन है कि हम उस किताब पर हम एक फिल्म भी बनाएं.

जब आप उदास होते हैं तो कौन सा गाना सुनते हैं?
जब मैं काफी उदास होता हूं तो सबसे पहले जाकर अपनी बाइक की आवाज सुनता हूं.

जो लोग दिन भर ऑफिस में बिजी रहते हैं या जिम नहीं जा पाते हैं उनके लिए आप कुछ सजेस्ट करना चाहेंगे कि उनका खान-पान कैसा होना चाहिए?
सबसे जरूरी यह है कि वो टाइम पर खाएं. सबके लिए काम बहुत जरूरी है लेकिन अपनी सेहत के लिए ब्रेक लेना भी उतना ही जरूरी है. खुद विज्ञान भी यही मानता है कि बे-टाइम खाने पीने वाले लोग जल्दी मोटे होने लगते हैं. जब आपकी बॉडी को टाइम पर फूड नहीं मिलता तो वो डर के मारे आपके अंदर के फैट से काम चलाने लगती है. और वो ब्राउन फैट काफी नुकसानदेह होता है.

 

 

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