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मुझे 'राउड़ी राठौर' जैसी फ‍िल्‍में बेहद पसंद हैं: आर बाल्‍की

पाली हिल स्थित आईएमपीएए हाउस में डायरेक्टर आर बाल्की के ऑफिस के बाहर चिप लाइसेंस वाली एक ब्लैक लंदन कैब कड़ी थी. यह पहले इंडियन मोशन पिक्चर्स प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन का मुख्यालय हुआ करता था. वो लोखंडवाला में शिफ्ट हो गए और बाल्की ने अपना 'होप प्रोडक्शंस' का ऑफिस यहां बना लिया. एंट्रेंस के पास बाल्की की इस हफ्ते रिलीज़ हुयी फिल्म "पैडमैन" के तीन बड़े पोस्टर्स भी लगे थे. मैंने लंदन कैब पहले भी देखी है, लिंकिंग रोड में घूमते हुए...मानो जैसे वो लंदन की ऑक्सफ़ोर्ड स्ट्रीट हो. लेकिन मुझे नहीं पता था कि वो बाल्की की है. बाद में उन्होंने मुझे बताया कि उन्हें यह कार बहुत पसंद है. यह वो इकलौती चीज़ है जिसे वो वाकई पाना चाहते थे. बकौल बाल्की, "मुझे घर खरीदने या छुट्टियों में घूमने जाने कि महत्वाकांक्षाएं नहीं हैं. मुझे सिर्फ तीन चीज़ें पसंद हैं - लंदन कैब, मेरे काले कपड़े और क्रिकेट.'

एक सफल और प्रसिद्द शख्सियत होते हुए भी बाल्की एक साधारण प्रतीत होने वाले इंसान हैं. उनके ऑफिस में कई ऐसी चीज़ें हैं जिन्हें देख उन पर चर्चा की जाए, लेकिन उन्हीं चीज़ों के बीच है एक क्रिकेट बैट जो उन्हें राहुल द्रविड़ ने साइन करके दिया था. बाल्की ने फिर से मुझे अचंभित करते हुए कहा, "मैं दुनिया का हर एक क्रिकेट ग्राउंड देखना चाहता हूँ. मैंने लगभग 50 प्रतिशत तो देख ही लिए हैं. इंग्लैंड में मैंने लगभग सब कुछ देखा, ऐसे ही साउथ अफ्रीका और श्रीलंका में भी. ऑस्ट्रेलिया में भी मैंने बहुत सारे स्टेडियम देखे हैं. न्यूज़ीलैंड में सिर्फ क्राइस्टचर्च देखने को बचा है. मैंने एक ग्राउंड बांग्लादेश में भी देखा. इंडिया में शायद एक या दो ग्राउंड देखने को बचे हैं. समस्या यह है कि यहाँ बहुत सारे प्लेइंग सेंटर्स हैं. लेकिन मैं अभी तक वेस्ट इंडीज और पाकिस्तान नहीं गया."

मुझे बाल्की तुरंत भा गए, लेकिन मैं वहां क्रिकेट पर चर्चा करने नहीं गया था. न ही लंदन कैब पर और न ही उनके काले कपड़ों पर. 'होप' का ऑफिस किसी घर से कम नहीं है. सफेदी की हुयी दीवारें, एक के बाद दूसरी, संकरा सा जीना (सीढ़ियां) जो नीचे एडिट सेट अप तक ले जाती हैं. हर तरफ कुछ बेमेल सा फर्नीचर है लेकिन बहुत आरामदायक है. दीवारों पर पेंटिंग्स हैं और हर कोने में लैंप. हर कमरे में उनकी फिल्मों के पोस्टर्स हैं और सेट पे लिए गए कई फोटोज़. अमिताभ बच्चन ने बाल्की की सात फिल्मों में से तीन में लीड रोल किया है और दो में गेस्ट अपीयरेंस दी है. वो भी कई फोटोज़ में हैं. शॉन कॉनरी की जेम्स बांड फिल्मों के भी दो फ्रेम्स हैं ("फ्रॉम रशिया विद लव" और "गोल्डफिंगर"). सारे मुयायने के बाद हम उनके ऑफिस में गए और "पैडमैन" पर बात की. मेरे हाथ में कॉफ़ी का एक मग था और उनके हाथ में सिगरेट. पेश हैं बातचीत के कुछ अंश:

सवाल: अरुणाचलम मुरुगनाथम करीं दो साल पहले ट्विंकल खन्ना से मिले थे लेकिन अपनी स्टोरी के राइट्स उन्होंने नहीं दिए थे. फिर जब आप और ट्विंकल साथ में उनसे मिले तो उन्होंने राइट्स दे दिए. क्या वजह थी? यह आपका तमिल भाईचारा था या वो एक महिला के साथ डील करने में अनकम्फर्टेबल थे?

जवाब: नहीं नहीं. ऐसा कुछ नहीं है. उन्हें गलत समझा गया. वो यह चाहते थे कि पहले हम उनके चरित्र का मर्म समझें. उनकी कहानी सिर्फ पैड पहनने से लेकर गोल्ड मैडल जीतने या मशीन बनाने तक की नहीं है. वो पहले यह जानना चाहते थे कि क्या हम वाकई उन्हें जान पाए हैं कि उन्हें प्रेरणा कैसे मिली, उनकी सोच क्या थी या उन्होंने जो किया वो क्या सोचकर किया. वो बात करने चाहते थे और टीना के साथ बहुत कम्फर्टेबल थे उन्होंने ज़्यादातर समय महिलाओं के साथ ही बिताया है. वो तो अक्षय कुमार के साथ भी बात नहीं करना चाहते थे, लेकिन जब मैंने उनसे कहा कि मैं उनसे मिलना चाहता हूँ, तो वो बहुत खुश हो गए. वो ज़्यादा फिल्में नहीं देखते हैं. लेकिन उन्होंने पढ़ा था कि मैं कौन हूँ. और वो इस बात से बहुत एक्साइटेड हुए कि मैं और टीना उनके जीवन की कहानी को दो अलग अलग तरीकों से पेश करना चाहते हैं. हम उनसे उनकी वर्कशॉप में मिले थे. वहां से वो हमें अपने घर ले गए. उस पहले उन्होंने कई ब्लेंक चेक साइन किये और ऑफिस में ही छोड़ दिए. मैंने पूंछा कि उन्हें डर नहीं लगता कि उन चेक का गलत इस्तेमाल हो सकता है. तो बोले, "मेरे पास किसी अकाउंटेंट को देने के लिए पैसा ही नहीं है. मेरे सप्प्लायर्स आते हैं, जो चाहिए होता है वो ले जाते हैं. मेरे पास बैंक में पैसा ही नहीं है. कोई क्या ले सकता है?" जब मैं और टीना एयरपोर्ट के लिए निकले तो मुरुगनाथम ने हमसे कहा कि हम उन्हें एक इंजीनियरिंग कॉलेज तक ड्रॉप कर दें जहाँ उन्हें एक लेक्चर देने जाना था. वो ग्रीस लगे हुए सफ़ेद रंग के अपने वर्कशॉप के कपड़े ही पहने हुए थे. मैंने उनसे पूंछा कि वो काले कपड़े क्यों नहीं पहनते हैं, तो उन्होंने कहा, "क्या फायदा है? लोगों को पता ही नहीं चलेगा कि मैं काम करता हूँ. मैं मैनेजर नहीं हूँ, मैं एक लेबरर हूँ. उन्हें पता होना चाहिए कि मैं मजदूरी करता हूं.'

सवाल: तो आपको उनकी अंदर की बातें पता चलीं?
जवाब: परतों के बाद परतें खुलती चली गयीं. उन्हें पता था कि मैं विज्ञापन जगत का आदमी हूँ. उन्होंने मुझसे पूंछा कि 'मार्केटिंग के लोग इतने बेवकूफ क्यों होते हैं? वो सेनेटरी नैपकिन्स पर विज्ञापन बनाते हैं, करोणों रुपय खर्च करते हैं और दिखाते हैं कि अपने पीरियड के दिनों में महिलाएं दिन मैं अपने दफ्तरों में मुस्कुरा रही हैं, बाड़ें फलाँगकर कूद कूद कर जा रही हैं, खेल खेल रही हैं, बसों के पीछे भाग रही हैं. ऐसा कैसे हो सकता है? उन दिनों में महिलाएं सच में बहुत दर्द में होती हैं. पैड जादुई तरीके से उन्हें ठीक नहीं कर सकता है. यह स्वच्छता के बारे में है. महिलाएं गंदे कपड़े इस्तेमाल करती हैं, राख लगाती हैं, पेड़ों की पत्तियां लगाती हैं. इससे इंफेक्शन का खतरा रहता है. पैड का उद्देश्य है हाइजीन. कोई भी ब्रांड हाइजीन की बात क्यों नहीं करती? अगर मेरे पास पैसा होता तो मैं ज़रूर करता. हर ब्रांड यही बात करती है कि कौन सा सेनेटरी पैड बेहतर सोखता है.' और मैं उनका लॉजिक सुनकर चौंक गया. मैंने कभी यह नहीं सोचा था.


सवाल:आपको उनमें क्या दिखा?
जवाब:
मैं मुरुगनाथम की ज़िंदगी में एक लव स्टोरी तलाश रहा था. मुझे क्रान्ति या प्रेरणा से ज़्यादा भी कुछ चाहिए था. और मुझे वो बेहतरीन लव स्टोरी मिल गयी, जो वो अपनी पत्नी के साथ शेयर करते हैं. उस महिला को शुरु में मुरुगनाथम के कामों पर इतनी शर्म आती थी कि उसने मुरुगनाथम से अलग होने का सोच लिया था. आप खुद सोचिये कि एक गाँव में पले-बढ़े होने पर समझ कम होने कि वजह से उस महिला को कितना कुछ झेलना और सुनना पड़ा होगा. दोनों ने एक दुसरे से बहुत प्यार किया है, लेकिन वो महिला उस शर्मिंदगी को नहीं उठा पा रही थी. मैंने इस कहानी को उस महिले के एंगल से समझने की कोशिश की.

सवाल: और इससे आपने "पैडमैन" लिखी, और ट्विंकल ने "द सेनेटरी मैन"?
जवाब.
हम दोनों ने अपनी अपनी कहानी साथ नहीं लिखी. लेकिन समकालीन लिखी. और अलग लिखी. हम दोनों की कहानियां अलग अलग हैं. समानता है तो सिर्फ मुरुगनाथम के जीवन की. टीना और मैंने इसे समझा भी अलग अलग ही है. मेरी एक लव स्टोरी है और टीना की एक इंसान के जीवन की यात्रा. हमने एक दुसरे का काम डिस्कस ज़रूर किया लेकिन हमें नहीं पता था कि दूसरे की स्क्रिप्ट किस तरह से पेश की जा रही है. जब हम दोनों ने अपना अपना काम ख़त्म कर लिया, तब हमने देखा कि हम दोनों की कहानियां बिलकुल अलग हैं. हाँलांकि फिल्म बनाने का विजन भी टीना का ही था. लेकिन इसे लिखा मैंने और स्वानंद किरकिरे ने माहेश्वर (मध्य प्रदेश) में. वहीं "पैडमैन" की शूटिंग भी हुयी है. टीना ने हमारे साथ एक हफ्ता बिताया क्यूंकि उन्होंने पहले कभी फिल्म लिखते हुए नहीं देखी थी. हम खुशकिस्मत थे कि वो हमारे साथ थीं. वो एक फ्रेश माइंड के साथ आयी थीं.

सवाल: अक्षय और मुरुगनाथम के बारे में क्या कहना चाहेंगे?
जवाब. अक्षय ने स्क्रिप्ट में बहुत जबरदस्त योगदान दिया है. वो बहुत संवेदनशील इंसान हैं. वो बहुत शान्ति से हमें सुझाव देते थे कि आप लोग इसकी बजाय ऐसा क्यों नहीं करते हो. जहाँ तक बात मुरुगनाथम की है, वो बिलकुल भी असमंजस में नहीं थे कि दो लोग उनके जीवन पर काम कर रहे हैं. बल्कि वो तो खुद दो अलग अलग संस्करण देखकर खुश थे. उदाहरण के लिए फिल्म में जो सोनम कपूर का किरदार है, वो असल में मुरुगनाथम की ज़िंदगी में है ही नहीं. लेकिन मैंने उन्हें बताया कि, "मेरे काम फिल्म में आपके चरित्र के प्रति ईमानदार रहना नहीं है. या हू-ब-हू आपने जो किया महज़ वो दिखाना नहीं है. मेरे काम यह तय करना है कि फिल्म देखकर आप भी सोचें कि काश मैंने वाकई ऐसी ज़िंदगी जी होती." लेकिन फिर भी फिल्म 90 प्रतिशत वैसी ही है जैसी उन्होंने सोची थी, बाली 10 प्रतिशत कल्पनाएं लेखकों की हैं.

सवाल: कहानी के लिये आपने ट्विंकल की किताब को क्यों नहीं अपनाया?
जवाब. किसी किताब को अपनाने से मैं बेचैन हो जाता हूँ. किसी इंसान ने एक जबरदस्त ज़िंदगी जी है, क्या मेरी फिल्म उस पर इन्साफ करेगी? लेकिन मैंने "पैडमैन" इसलिए की क्यूंकि मुझे मुरुगनाथम से मिलकर बड़ा मज़ा आया. दूसरे, आज तक किसी ने दुनिया भर में महिलाओं के मासिक धर्म और उससे जुडी हाइजीन के ऊपर कोई कमर्शियल मेनस्ट्रीम फिल्म या डाक्यूमेंट्री फिल्म नहीं बनायी थी. और उसको भी एक लव स्टोरी की तरह पेश करना! इसमें इतना मज़ा था जो आप सोच भी नहीं सकते. मेरी सारी बेचैनी ख़त्म हो गयी थी. मैं स्टोरी को अपनी तरह से लिखना चाह रहा था.


सवाल: मुरुगनाथम आपकी स्टोरी के साथ सहमत थे?
जवाब.मुझे नहीं लगता कि वो पूरी किताब या स्क्रिप्ट पढ़ने वालों में से हैं. उन्होंने मेरे ऊपर भरोसा किया कि मैं इस तरह से उनका चरित्र कैमरे में उतारूंगा कि उन्हें उससे अपना केस और भी आगे ले जाने में मदद मिले. मैंने उन्हें पूरी फिल्म दिखाई. उन्होंने कहा, "मुझे बस एक बात केहनी है. मेरी ज़िंदगी को कागज़ी मत बनाइये. इसे एक मनोरंजक फिल्म बनाइये. लोग इसे जब देखें तो उन्हें हंसी भी आनी चाहिए और रोना भी. यह फिल्म मेरे जीवन के साथ न्याय करने वाली नहीं, बल्कि उन लोगों के साथ इन्साफ करने वाली होनी चाहिए जो इसे देखने थिएटर्स में आएंगे. अगर आप लोगों का मनोरंजन नहीं करेंगे तो वो मेरे जीवन की कहानी से बोर हो जाएंगे. तो मेरी लाइफ को सुहावना बनाइये.”

सवाल: मुरुगनाथम की एक कहानी थी जिसे ट्विंकल, स्वानंद और आपने जनता को बताया. अक्षय ने इसमें क्या जोड़ा?
जवाब. अक्षय ने ने कुछ स्पेशल किया है. अगर किसी शख्स के जीवन परदे पर उतारना हो तो किसी एक्टर के लिए अक्सर आसान होता है उसे कॉपी करना. मुरुगनाथम के तौर तरीके काफी अलग हैं लेकिन अक्षय ने उन्हें कॉपी नहीं किया. उन्होंने पहले उस करैक्टर की रूह और उसकी पवित्रता को समझा. अक्षय उस रोल में ढले नहीं, बल्कि अपने रोल में ऐसी चीज़ें जोड़ीं जो सच में मुरुगनाथम में भी नहीं हैं. और ऐसे बदलाव उन्होंने महज़ अपनी बॉडी लैंग्वेज और अपने बातचीत के तौर तरीके से ही किया. उन्होंने मुरुगनाथम का किरदार बहुत नैचुरल तरीके से निभाया है. अगर किसी डायरेक्टर को सही एक्टर्स मिल जाएँ तो उसका 90 प्रतिशत काम तो वैसे ही हो जाता है. एक डायरेक्टर क्या चाहता है इस बात को वो लिख सकता है, डिज़ाइन कर सकता है. लेकिन अगर एक्टर ही उस पिच में काम न कर पाए तो डायरेक्टर समझिये मर गया. अक्षय ने मेरी स्क्रिप्ट में जान डाल दी.

सवाल: विज्ञापन जगत से जुड़े होने की वजह से क्या इस फिल्म का उद्देश्य प्रचारित करना आसान था आपके लिए?
जवाब.  मैंने फिल्म में सम्वेदनशीलता डाली है. मैं फिल्म को बोल्ड तरीके से भी दिखा सकता था कि कुछ अभिजात वर्ग के फिल्ममेकर्स मेरे लिए तालियां बजाते और विदेश में मुझे उसके लिए अवॉर्ड मिल जाता. लेकिन मैं यहाँ कोई बोल्ड और साहसभरे स्टेटमेंट्स देने नहीं आया हूँ. जो लोग अभी भी कई चीज़ों के बारे में जागरूक नहीं हैं और अन्धकार में जी रहे हैं मैं उन्हें कई ऐसी चीज़ों के बारे में विश्वास दिलाना चाहता हूँ जिनका विश्वास वो अभी नहीं करते हैं. सिनेमा के बारे में यह मेरी परिभाषा है. मैंने यह विज्ञापन जगत में सीखा है. यह बड़ी बात नहीं है कि आप कितना बेहतरीन विज्ञापन बनाते हैं. बड़ी बात यह है कि आपका विज्ञापन ऑडियंस से बात कर सके. तो यह एक ऐसी फिल्म है जिसमें गहराई है, संवेदनशीलता है.


सवाल: आप किस तरह का सिनेमा पसंद करते हैं?
जवाब. मैं एक दर्शक की तरह ही फिल्में देखता हूँ, एक फिल्मकार की तरह नहीं. और मुझे पागलपंती वाली फिल्में बेहद पसंद हैं. "रावडी राठौर" और "वेलकम" जैसी. मैं अक्षय को बताता हूँ, "मेरे लिए तुम्हारी बेस्ट फिल्म एयरलिफ्ट नहीं बल्कि रावडी राठौर है!" अक्षय हँसते हैं लेकिन सच में ऐसी फिल्में करना बहुत मुश्किल है. मैं सोचता हूँ कि काश मुझमें "वेलकम" जैसी फिल्म बनाने का हुनर होता. आप ऐसी स्क्रिप्ट को कैसे लिखते होंगे? यह पागलपंती है, सिरफिरापन. ऐसी फिल्मों के लिए मैं लोगों को सलाम करता हूँ.

Translate: Deepika Sharma 

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