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मैं अपने किरदारों को घर लेकर नहीं जाती:रानी मुखर्जी

'लंच टाइम था मैं अँधेरी वेस्ट स्थित यशराज फिल्म्स स्टूडियोज के में था और रानी मुखर्जी का इंतजार कर रहा था.तभी वो पलाज़ो सूट और फ्लोरल दुपट्टे में सामने आईं.उत्साह, जोश से भरपूर रानी कुछ मीडिया जर्नलिस्टों से बंगाली में बातचीत करने लगीं जो काफी देर से उनकी राह देख रहे थे.मीडिया में बंगालियों की भरमार है और मुझे ये भाषा समझ नहीं आती.मगर मैं उनकी बातचीत से इतना तो समझ पा रहा था कि वह रानी को हिचकी के लिए फीडबैक दे रहे थे जो हाल ही में रिलीज़ हुई है.रानी ने सराहना पर सबका आभार व्यक्त किया.मैंने प्रेस शो मिस कर दिया था इसलिए चुपचाप पीछे खड़ा रहा.तभी उन्होंने मुझे देख लिया. वह किसी पुराने दोस्त की तरह मुझसे मिलने आईं.

यशराज स्टूडियो उनके घर के समान है जो कि उनके पति आदित्य चोपड़ा का है.हिचकी उनकी फिल्म है जिसे उन्होंने मनीष शर्मा के साथ मिलकर को-प्रोड्यूस किया है.सिद्धार्थ मल्होत्रा इसके डायरेक्टर हैं.यह फिल्म 2008 में आई हॉलीवुडफिल्म फ्रंट ऑफ़ द क्लास पर बेस्ड है जिसे अमेरिकन मोटीवेशनल स्पीकर ब्रेड कोहेन की लाइफ पर बनाया गया था.ब्रेड ने इसी नाम से एक किताब लिखी थी जिसमें उन्होंने अपने आपके टॉरेट सिंड्रोम से पीड़ित होने की बात बताते हुए उसके साथ लाइफ जीने के संघर्ष को साझा किया था.मेरी फ्रेंड भारती प्रधान जो कि एक वेटरन बॉलीवुड लेखक और एडिटर हैं उन्होंने फिल्म देखकर इसकी काफी तारीफ की है.उन्होंने बताया कि ये फील गुड फिल्म है और रानी इसकी रानी हैं.'हिचकी की रिलीज़ पर उनसे हुई बातचीत के अंश...

आप किरदारों को आर्गेनिकली प्ले करने में यकीन करती हैं.उन्हें महसूस करती हैं,उनके लिए तैयारी नहीं करतीं?

मैंने किरदार को महसूस किया.मेरे लिए जरुरी था कि मैं ब्रैड कोहेन से कनेक्ट कर पाऊं जिनकी लाइफ पर ये किरदार बेस्ड है.मैं ये समझना चाहती थी कि वह बचपन से लेकर अब तक किस तरह की परेशानियों से गुजरे.मैं उनसे नहीं मिली लेकिन स्काइप पर उनसे बातचीत की.वह यूएस में हैं.हमने खूब बात की.मैंने उनसे जाना कि टॉरेट सिंड्रोम से पीड़ित होने पर कैसा फील होता,बचपन से लेकर अब तक उनके इमोशन क्या रहे,उन्हें किस चीज से डर लगता था,क्या उनके दोस्त उनका मजाक उड़ाते थे,क्या उनकी मां उनका सपोर्ट सिस्टम हुआ करती थीं?बड़े होकर ब्रैड टीचर बनना चाहते थे?जब उन्हें रिजेक्शन झेलना पड़ा तो उन्होंने क्या प्रतिक्रिया दी?जब वह टीचर बने तो उनकी लाइफ कैसे बदली?मैंने उनसे सब कुछ पूछा.उनकी लाइफ की पूरी स्टोरी.मुझे उनके जैसा महसूस करना था और उनके जैसा बनना था तो इमोशनली मेरे लिए उस किरदार में उतरना बेहद जरुरी था.

आपने उनसे खूब बात की लेकिन कभी मिल नहीं पाईं.क्यों?

वह ट्रेवल नहीं कर सकते.प्रोमोज के वक्त भी हम उन्हें यहां लाना चाहते थे मगर डॉक्टरों की सलाह थी कि उन्हें इतना लंबा ट्रेवल न कराया जाए क्योंकि उन्हें टॉरेट सिंड्रोम है.मगर ये बड़ी फिल्म थी.आपके हस्बैंड आदित्य फिल्म के प्रोड्यूसर हैं.आप ब्रैड से यूएस जाकर मिल सकती थीं.मैं टेक्नोलॉजी को धन्यवाद कहना चाहूंगी कि उनसे मुझे स्काइप पर ही मिलने का मौका मिल गया.मैं जो उनसे मिलकर पूछना चाहती थी वो स्काइप पर पूछ लिया.हमने स्काइप पर काफी वक्त गुजारा.आप शायद भूल गए कि मैं मां बन चुकी हूं और बच्ची छोटी होने की वजह से मेरा यूएस जाना संभव नहीं था.

सुना है कि आप शूटिंग के पहले दिन नर्वस थीं.क्या ये इसलिए कि आपने मर्दानी जो कि 2014 में रिलीज़ हुई थी,उसके बाद कैमरा फेस नहीं किया था?या फिर आप बेटी आदिरा को घर में छोड़ने की वजह से परेशान थीं?

दोनों चीजें थीं.जब आदिरा हुईं तो मुझे महसूस हुआ कि मेरे लिए ये पॉसिबल नहीं था कि मैं उन्हें प्यार करने के अलावा कोई और काम कर पाऊं.मगर फैक्ट ये भी है कि मैं उस चीज के पास वापस लौट रही थी जिसे मैं सबसे ज्यादा प्यार करती हूं जो कि एक्टिंग है.मुझे कहीं न कहीं ये लगा था कि मैं एक कठिन किरदार कर रही हूं जो कि काफी चैलेंजिंग है,मुझे उसके साथ न्याय करना था.मन में ये भी था कि पता नहीं मैं ऐसा कर भी पाऊंगी या नहीं या फिर पहले दिन ही शूटिंग पर अपनी हंसी उड़वा लूंगी.मन में कई ख्याल थे और जब मैं सेट पर पहुंची तो लगा मैं तो यहीं कि हूं और सब नैचुरली होने लगा.जैसे एक स्विमर,स्विमर ही रहता है,वैसे ही एक्टर हमेशा एक्टर ही रहता है तो अगर कुछ गैप होते भी हैं तो आप एक नयी अप्रोच के साथ कमबैक कर सकते हो.

आप हिचकी की मेकिंग के दौरान जाहिर तौर पर घर से दूर रही होंगी.ऐसे में अपनी अनुपस्थिति को बेटी आदिरा को कैसे एक्सप्लेन किया था?

हमने हिचकी की शूटिंग 38 दिनों में पूरी कर ली थी.आदिरा जब 14 महीनों की थीं जब मैंने शूटिंग शुरू की थी और उन्होंने बातचीत करना पूरी तरह शुरू नहीं किया था.मैं उन्हें कभी सेट पर लेकर नहीं गई.मैं उन्हें शूटिंग माहौल में नहीं ले जाना चाहती थी.मैं उनके लिए ऐसा माहौल चाहती थी जिसमें उन्हें अच्छा लगे.मैं शूटिंग फिनिश करके बेटी के पास घर जाना चाहती थी और मेरी टीम इसमें पूरा सहयोग करती थी.हम रोज सुबह 7 बजे शूटिंग शुरू कर देते थे और 12:30 बजे मुझे छोड़ देते थे.तो जो लोग 9 से 6 की शिफ्ट में काम करते हैं और उसमें से चार या पांच घंटे ही काम के होते थे,हम उससे उलट सारा काम एक साथ निपटा देते थे.टीम मुझे फ्री करके फिर लंच पर जाती थी तो मुझे बिलकुल नहीं लगता था कि मैं बेटी को मिस कर रही हूं.वह भी बहुत छोटी थी तो उसे मेरे न होने का एहसास नहीं होता था.मगर अब आदिरा दो साल की हो चुकी हैं.वह बहुत शार्प हैं और वह समझ जाती हैं कि मैं फिल्म प्रमोट कर रही हूं या इंटरव्यू दे रही हूं.जब मैं घर पहुंचती हूं तो वो कहती हैं,मम्मा मेकअप उतारो,मीटिंग पे गए थे?शूटिंग पे गए थे?मैं नहीं जानती कि उन्हें शूटिंग,एक्टिंग या मेकअप का कॉन्सेप्ट कितना समझ आता है लेकिन उन्हें मेरे फेस पर मेकअप बिलकुल पसंद नहीं.वह समझ जाती हैं.ऐसा इसलिए क्योंकि उन्होंने मुझे ज्यादातर समय नेचुरल देखा है तो अब अगर मैं लिपस्टिक भी लगा लूं तो वो कहती हैं,ये क्या है?उन्हें अपनी मां नेचुरल ही पसंद हैं जैसे उनके पिता हैं,आदि भी सेम यही चीज कहते हैं,मेकअप उतारो और आओ!.


क्या आपने फ्रंट ऑफ़ द क्लास देखी?

मैंने नहीं देखी क्योंकि ये उस विषय के बेहद करीब थी जिसे मैं कर रही हूं.अगर मैं उसे देख लेती तो उससे प्रभावित हो जाती.मैं बस ब्रेड कोहेन से सीधा मिलना चाहती थी.क्योंकि जिमी वोल्क जो इस फिल्म में ब्रैड का रोल प्ले कर रहे थे वो भी उन्हीं की परछाई की तरह थे तो मुझे लगा कि मुझे डायरेक्टली ब्रैड से ही बात करनी चाहिए तो इसलिए मैंने फ्रंट ऑफ़ द क्लास नहीं देखी.सिद्धार्थ ने मुझे ये यकीन दिलाया था कि फिल्म में सिर्फ ब्रैड और मेरा किरदार ही सेम इसके अलावा दोनों फिल्में बिलकुल अलग हैं तो उनके मुताबिक फ्रंट...को देखने का सेन्स ही नहीं था.मुझे लगता था सेन्स है लेकिन अब मैं ये फिल्म देखूंगी.

(फोटो में जेम्स वोल्क)
ब्रैड ये एक्स्पेक्ट कर रहे थे कि कोई एक्टर हिचकी में उनका केरैक्टर निभाएगा,न कि कोई एक्ट्रेस मगर जब उन्होंने ट्रेलर देखा तो उन्होंने कहा कि वह चालीस सालों से टिक के साथ जी रहे हैं लेकिन आपने एक साल में ही उनसे ज्यादा कर लिया.

अच्छा,ये उनकी अच्छी बात है,मैं उनसे मिलना चाहती हूं,मैं जानना चाहती हूं कि वो क्या सोचते हैं.
क्या आपको लगता है कि डिफरेंटली एबल्ड(दिव्यांग) लोगों से आपका कनेक्ट है?

हां,मैं उन्हें बेहद पॉजिटिव और फियरलेस मानती हूं और यही बात मुझे उनसे कनेक्ट करती है.मैं जब ऐसा कोई रोल करती हूं तो दुनिया को ये दिखाना चाहती हूं कि वो सच में क्या हैं?वो कौन हैं?ये ऐसे लोग हैं जिन्हें दया नहीं चाहिए.ये वैसा ही सम्मान चाहते हैं जैसे सबको मिलता है.हम सोचते हैं कि उनमें कोई कमी है तो इसका मतलब ये नहीं कि कोई कमी है.उनमें कोई और चीज बहुत अच्छी होती है तो उन्हें नॉर्मल इंसानों की तरह ट्रीट किया जाना चाहिए और इससे ही उन्हें ख़ुशी मिलती है.


2005 में आई ब्लैक एक सुखद एक्सपीरियंस रहा?

विनम्रता तब आती है जब हम ऐसे लोगों से मिलते हैं जिन्हें देखकर हमें लगता है कि भगवान ने हमें जिंदगी में कई चीजें अच्छी दी हैं.इन्सान नेचर से ही एहसानफरामोश प्रवृति के होते हैं.उन्हें ये लगा रहता है कि ये मिल गया-अब वो चाहिए!मारुति मिल गई तो मारुति क्या है?अब होंडा चाहिए,होंडा मिल गयी तो मर्सिडीज चाहिए,मर्सिडीज मिल गयी तो रोल्स रॉयस चाहिए,फिर बुगाटी,लोगों की जरूरतें बदलती रहती है,अभी मेरे पास 2bhk फ्लैट है लेकिन मेरे को महल चाहिए.ऐसे में जब आप ब्लैक जैसी फिल्म करते हो तो आपको समझ आता है कि जिंदगी की खूबसूरती क्या है.ब्लैक ने मुझे विनम्र बना दिया था क्योंकि इसी से मैंने लाइफ की छोटी से छोटी चीज को एन्जॉय करना सीखा.

आपको क्या यही फीलिंग हिचकी की मेकिंग के दौरान भी आई थी?क्या आप अपने किरदार की फीलिंग को घर ले गई थीं,वो इमोशन या जिससे भी आप उस दौरान गुजरी थी?

नहीं,बिलकुल नहीं.मैं स्विच ऑफ-स्विच ऑन एक्टर हूं.जब कैमरा चल रहा होता है तो मैं एक्टिंग पर ध्यान देती हूं लेकिन उसके बाद मैं अलग हूं क्योंकि लाइफ में कई और इमोशन भी होते हैं.मैं किरदार के इमोशन का बोझ लेकर नहीं जीती क्योंकि ये डील नहीं हो सकता.मैं कहीं से भी मेथड एक्टर नहीं हूं,नेचुरल एक्टर हूं.

क्या आपने टॉरेट सिंड्रोम के बारे में पढ़ा था?

नहीं,मैं सारी जानकारी ब्रैड से लेना चाहती थी क्योंकि मुझे ऐसा इन्सान बनना था जिसे टॉरेट सिंड्रोम था.जब आप मेडिकल भाषा में टॉरेट सिंड्रोम की डेफिनेशन पढ़ते हैं तो आपको पता चलता है कि वोकल और फेशियल टिक्स क्या होते हैं लेकिन जब तक इससे जूझ रहे व्यक्ति से न मिलें तो आपको पूरी जानकारी नहीं मिल पाती.इसलिए मेरे लिए ब्रैड के साथ समय बिताना बेहद जरुरी था.उनसे अच्छा उदहारण और कौन हो सकता था?

(फोटो में डेनियल डे लेविस)

क्या आपने दिव्यांगो पर बनी कोई हॉलीवुड फिल्म देखी है?जैसे Music Within? Emmanuel’s Gift? The Cake Eater? या Margarita With a Straw?
हां मैंने My Left Foot... देखी है जिसमें डेनियल डे लेविस को सेरिब्रल पल्सी था,वह क्या बेहतरीन फिल्म थी,मैंने उसे ब्लैक करने से पहले देखा था.उसमें शानदार परफॉरमेंस थी.


क्या आपको इस रोल को स्वीकारने में कुछ झिझक हुई थी?

नहीं बिलकुल नहीं,मुझे पता था कि निर्माता ऐसा कोई प्रोजेक्ट प्लान कर रहे हैं.जब वह मेरे पास आये तो प्रारंभिक प्रक्रिया पूरी हो चुकी थी.मुझसे पहले कोई और ये किरदार निभाने वाला था लेकिन यह मेरे पास आ गया तो ऐसा नहीं है कि मैं इसे नहीं करना चाहती थी और अगर मैं इसे न करती तो हिचकी नहीं बनती.मैं नहीं तो कोई और ये रोल करता.भाग्य कहता है,रोल-रोल पे लिखा है एक्टर का नाम और ये मेरा भाग्य था कि मुझे हिचकी करनी थी.

आप कभी हकलाया करती थीं और अपनी आवाज़ और हाइट को अपनी कमी मानती थीं?

मैं हकलाने की समस्या से जूझ चुकी हूं,पता नहीं भगवान् जाने कैसे,मैंने उसपर काम किया मगर मैं इसे अपनी कमी नहीं मानती.समाज में सभी हिचकी तभी आती हैं जब लोग एक तय रास्ते पर ही चलना चाहते हैं तो ये मेरे डर नहीं थे,ये समाज की हिचकी हैं.जैसे,औरत को मर्द से कम समझ समाज ने की हिचकी,औरत ऐसा नहीं सोचती,समाज ऐसा सोचता है,उनके दिमाग में हिचकी है.तो मेरे सांवलेपन,मेरी बेसुरी आवाज़,मेरी हाइट,ये मैं हूं,मैं अपने आपको लंबा दिखाने के लिए खींच नहीं सकती.गोरी नहीं दिख सकती,आवाज़ नहीं बदल सकती,मैं जैसी हूंवैसे ही हूं,आप एक्सेप्ट करो या रिजेक्ट.मेरे केस में समाज ने अपनी वर्जनाएं तोड़ीं और मुझे एक्सेप्ट किया.जब ऑडियंस ने आपको कुबूल लिया तो फिर किसे परवाह है?जनता जनार्दन सर्वोपरि है.जब उन्होंने टिक मार्क कर दिया,100 में से 100 दिया तो कोई क्या बोल सकता है!

क्या आपको लगता है इंडियन ऑडियंस हिचकी जैसी फिल्म के लिए रेडी हैं?

लेट्स सी.हमें सोमवार तक पता चल जाएगा.दूध का दूध,पानी का पानी हो जाएगा.

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