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'मुझे 10 अच्छी स्क्रिप्ट मिलेगी में 10 फिल्में करूंगा'- अभय देओल

बॉलीवुड एक्टर अभय देओल इन दिनों आनेवाली फिल्म 'नानू की जानू' को लेकर चर्चा में हैं. फिल्म में उनके साथ एक्ट्रेस पत्रलेखा भी हैं. यह एक कॉमेडी हॉरर फिल्म हैं. दो साल पर्दे पर वापसी कर रहे अभय देओल की यह फिल्म 20 अप्रैल को सिनेमाघरों में रिलीज होगी.

फिल्मों का चुनाव आप की आधार पर करते हो?
दरअसल, फिल्मों का चुनाव मैं अपने कैरेक्टर के आधार पर करता हूं कि फिल्म में जो ,मेरा कैरेक्टर हैं मैं उसके साथ रिलेट कर सकता हूं या नहीं. मुझे उस तरह कि फिल्में नहीं पसंद जिसमें हीरो 10 आदमी को मार लड़की को पटा लेते हैं, वो मुझे बहुत बोरिंग लगता हैं. मैं हमेशा एक नई कहानी की राह देखता हूं.

'नानू की जानू' एक हॉरर कॉमेडी फिल्म हैं तो इसमें आपने किस तरह से मेहनत की हैं?
फिल्म में मेरे लिए जो चीज डिफाइन करती हैं वो है जब वो (अभय देओल) सपना चौधरी के साथ डांस करता हैं. जब मुझे बोला गया कि फिल्म में ऐसा गाना हैं और डांस करना पड़ेगा. मेरा मानना है कि जो इस तरह की फिल्में होती हैं जिसमें कहानी चल रही हैं, फिर कहानी रुकेगी और उसके बाद गाना आएगा, फिर कहानी शुरू होगी तो प्लीज आप मुझे मत बुलाइए. क्यूंकि मेरी फिल्मों में कहानी कभी रूकती नहीं. गाना आएगा और जाएगा लेकिन कहानी चलती रहती हैं तो जब मुझे बोला गया कि तुम एक शादी में जाते हो वहां सपना चौधरी वहां डांस करती रहती हैं और आप उस मौके का फायदा उठाते हैं.

 

सपना चौधरी का कोई हरियाणवी गाना देखा हैं?
नहीं, लेकिन अब जरूर देखूंगा (हंसते हुए).

'जिंदगी न मिलेगी दोबारा' के सिकुअल में काम करेंगे?
मैं तो बोल ही रहा हूं लेकिन किसी फिल्म का सिकुअल पार्ट वन से ज्यादा अच्छा होना चाहिए लेकिन मुझे लगता है कि जोया खुद नहीं लिखेगी अगर वो उस लेवल पर तक नहीं हैं.

ऐसा कहा जाता है कि अभय देओल, रितिक रोशन और निल नितिन मुकेश हॉलीवुड मटेरियल हैं क्यूंकि उनका जो लेवल हैं वहां तक बॉलीवुड अब तक पहुंचा नहीं हैं, इस बारे में आप क्या कहना चाहते हो?
देखिए, हॉलीवुड के लिए जो सबसे ज्यादा जरुरी हैं, वो है सफेद होना. गोरी चमड़ी होना बहुत जरुरी हैं. हम वहां से ताल्लुक नहीं रखते. हम भारत के लिए गोरे हैं. दुनिया के लिए हम काले हैं, इसलिए तो मैं हंसता हूं फेयर एंड लवली क्रीम पर, जितना भी गोरा होना है हो जाओ आप हमेशा इंडियन ही रहोगे और इस चीज के लिए बहुत गर्व महसुस करता हूं.

क्या आपको लगता है कि बॉलीवुड में कुछ फिल्में ऐसी हैं जिनका सिकुअल नहीं बनना चाहिए?
हां, कुछ फिल्में होती हैं जिनका सीक्वल नहीं बनना चाहिए. सीक्वल बनाना बहुत मुश्किल होता हैं. कुछ सक्सेसफुल फ्रेंचाइसी भी हैं और जिंदगी ना मिलेगी दुबारा उन फिल्मों ें से एक हैं जिनकी फ्रेंचाइसी बननी चाहिए.

'ओए लक्की! लक्की ओए' की रिलीज के समय मुंबई में 26/11 हमला हुआ था. जिसमें देश का बहुत नुकसान हुआ और आगरा ऐसा नहीं होता तो शायद फिल्म और अच्छा बिज़नेस करती?
मैं आपको वही जवाब दूंगा जो उस रात मैंने एक जन को दिया था. मैंने कहा था लोग मर रहे हैं. भाड़ में गई तुम्हारी फिल्म. जो नुकसान देश को हुआ वो फिल्म के नुकसान से कहीं ज्यादा बढ़ा हैं. मैं ये नहीं सोच सकता कि अगर ये नहीं हुआ तो मेरी फिल्म और अच्छी कमाई करती. अगर वो हादसा नहीं होता तो कई परिवार नहीं उजड़ते.

एक सीक्रेट सुना कि आप अपनी तारीफ सुनना पसंद नहीं करते ऐसा क्यों ?
ऐसी बात नहीं है कि तारीफ मुझे पसंद नहीं हैं लेकिन मैं रिएक्ट नहीं करता. मैं थोड़ा शर्मा जाता हूं. समझ में नहीं आता कि कैसे रिएक्ट करूं. मुझे ऐसे लगता है कि अभी उसने तारीफ की हैं तो मुझे भी उसकी तारीफ करनी चाहिए.

इतने सालों में आपके बारे में कभी कोई कंट्रोवर्सी नहीं. कमाल आर खान जैसे लोग जो कुछ नहीं करते उन्हें भी पब्लिसिटी मिलती हैं तो आपको नहीं लगता कि फिल्म इंडस्ट्री में रहते हुए ऐसा करना कहीं न कहीं आपको नुक्सान देगा?
उसका लेवल तो देखिए आप (हंसते हुए). मैं तो मीडिया से भागता था, थोड़ा बहुत असर तो पड़ता हैं करियर आपका धीरे-धीरे आगे बढ़ता हैं. मीडिया को आज खरीदा भी जाता है. ब्रांड्स को लेकर एक इमेज भी बना सकते हैं. ब्रांड्स लेकर लोग स्टारडम खरीद लेते हैं. मुझे अपने ऊपर अटेंशन पसंद नहीं और शायद ये मेरे बचपन का प्रभाव था , जब बचपन में मैं अपने परिवार के बारे में पढ़ता था, फिर स्कूल जाते वक्त क्या सवाल आते थे मुझको. बचपन में मैं मेदे को गाली देता था.

घर में आपकी फिल्मों के लिए सबसे बड़ा क्रिटिक कौन हैं?
मेरे तायाजी मेरी फिल्मों के क्रिटिक हैं. परिवार में सब लोग करते हैं. पहले करियर के शुरूआती दौर में थोड़ा करते थे क्यूंकि उन्हें फिक्र होती थी कि क्या कर रहा हैं. भईया पूछते थे कि किसके साथ काम कर रहा हैं तो कसर तो जरुर था.

आपके लिए अक्सर क्लासी रोल आते रहे हैं लेकिन ओये लक्की लक्की ओये में आपने उस चीज को तोड़ा हैं तो अभिनय के छेत्र में आपके साथ ऐसा क्या जुड़ा हैं, जो आप तोडना चाहते हैं ?
एक जमाने में ऐसा सोचा था कि लोग मेरे बारे में ऐसा क्यों सोचते हैं कि मैं अप्रोचेबल नहीं हूं लेकिन अब मैं नहीं सोचता. लोगो को लगता है कि मैं फिल्मों को लेकर चूजी हूं. चूजी कहां हूं, मुझे 10 अच्छी स्क्रिप्ट मिलेगी मैं 10 फिल्म में काम करूंगा.

पेश है फिल्म के निर्देशक फराज हैदर से बातचीत के कुछ खास अंश

आप राइटर भी हैं और डायरेक्टर भी हैं तो एडिटिंग टेबल पर अपनी लाइन और अपनी ही चीजों को काटने में कितनी मुश्किल होती हैं?
मुश्किल तो होती हैं क्यूंकि हम जो शूट करते हैं वो सबकुछ अच्छा लगता हैं लेकिन अगर फिल्म थोड़ी बड़ी हो रही हैं तो डेफिनेटली कैंची चलानी पड़ती हैं. एडिटिंग टेबल पर हम खराब और अच्छे का डिसीजन नहीं लेते लेकिन बेटर होने की दीदिजन लेते हैं कि ये चीज बेहतर होनी चाहिए. हमेशा कोशिश करता हूं कि जितना मैं शूट कर रहा हूं वो ही मेरी फिल्म में आए.

10-15 साल पहले जिस तरह की फिल्में बनती थी और अब जिस तरह से बनती हैं तो क्या आपको लगता हैं कि आज फिल्में बनाना मुश्किल हो गया हैं?
बिल्कुल, आज के समय में आप ऑडियंस को बेवकूफ नहीं बना सकते. पहले लोगो की एक फैंटसी होती थी कि महीने और साल में एक फिल्म आती थी तो लोग एंटरटेमेंट के लिए सिनेमाघरों में जाते थे. आप जो भी फिल्म बनाए एक उनकी समझ में भी आना चाहिए और मजा भी आना चाहिए.

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