श्रीदेवी और बोनी कपूर की बेटी जाह्नवी कपूर की फिल्म 'धड़क' 20 जुलाई को रिलीज के लिए तैयार है. फिल्म का निर्देशन शशांक खेतान ने किया है. यह फिल्म सुपरहिट मराठी फिल्म 'सैराट' का हिंदी रीमेक है. अपनी फिल्म के बारे में जाह्नवी ने हमसे खुलकर बातचीत की. इसके साथ ही फिल्म और उससे जुड़े अनुभवों के बारे में कई किस्से शेयर किए.
सवाल: आपने अपने एक इंटरव्यू में कहा कि फिल्म मेकिंग के नॉन-क्रिएटिव आस्पेक्ट के लिए आपके माता-पिता तैयार नहीं थे. एक्टिंग के बारे में उनका खयाल रहा?
जवाब: यह जॉब है ही ऐसी. आपको स्टारडम तो मिलता है, लेकिन आपको एक मंच या अखाड़े में खड़ा कर दिया जाता है. उसके बाद ऑडियंस या मीडिया को पूरा अधिकार होता है कि वो आपके ऊपर ऊंगली उठाएं, या कमेंट करें. मॉम और डैड को सिर्फ यह चिंता होती थी कि मैं मीडिया को कैसे हैंडल करुंगी. जब आप एक्टर होते हैं, तो एक्टिंग के अलावा बहुत सारी चीज़ों के लिए आपको तैयार रहना होता है. आपको सिर्फ एक्टिंग नहीं करनी, बल्कि प्रमोशन्स भी करने होते हैं, असफलता को पचाना सीखना होता है, सफलता को संभालना सीखना होता है. तो इन चीजों को लेकर वो थोड़ा परेशान थे.
सवाल: जैसे-जैसे पीढ़ियां बदल रहीं हैं, वैसे ही इंडियन सिनेमा भी बदल रहा है. एक तरफ बॉलीवुड के स्थापित कलाकार हैं, दूसरी तरफ आपकी पीढ़ी. अपनी फैन फॉलोइंग बनाने के बारे में आप क्या सोचते हैं?
जवाब: ऐसी कोई तैयारी नहीं है. मैं बस यह सोचती हूं कि मुझे लोगों का प्यार कमाना पड़ेगा. उसके लिए पूरी ईमानदारी से अपना काम करना होगा और सबकी सलाह-मशवरे की भी कदर करनी होगी. मम्मी और पापा ने हमेशा यही सिखाया है कि लोगों का दिल जीतना जरूरी है. बहुत से लोग यह भी सोचते होंगे कि इंडस्ट्री में आकर मैंने कई लोगों से एक मौका छीना है. तो मुझे शायद दोगनी मेहनत करनी होगी. दूसरी तरफ भाई-भतीजावाद कि बहस भी होती है, जहां लोग सोचते हैं कि मुझे यह मौका बहुत आसानी से मिल गया. इन सब बातों के बीच मुझे अपने काम से अपनी पहचान बनानी है. मुझे एक्टिंग से बहुत प्यार है.
सवाल: बॉलीवुड में आपकी पहली फिल्म एक मराठी फिल्म की रीमेक या एडॉप्शन है. आपको नहीं लगता कि डेब्यू के लिए आपको एक ओरिजिनल हिंदी फिल्म चुननी चाहिए थी?
जवाब: नहीं, ऐसा नहीं है. मैं तो 'सैराट' फिल्म देखकर भौंचक्की रह गई थी. उसका प्लॉट बहुत बेहतरीन है. जिन किरदारों के ऊपर वो फिल्म बनी है, उस लड़की के रोल का ग्राफ बहुत अच्छा है. तो मुझे लगता है कि मेरे करियर की शुरुआत के लिए यह कहानी बहुत उम्दा है. दूसरे, जब शशांक के साथ काम करने की बात आती है, तो वो अपने किरदारों को बिलकुल ओरिजिनल रखते हैं. वो अपनी कहानी में रिश्तों भी भी बिलकुल रीयल रखते हैं. मैंने उनकी
पिछली दो फिल्में भी देखी हैं और उन्हें बहुत पसंद किया है. फिर ईशान जैसे टैलेंटेड एक्टर के साथ काम करने का भी मौका मिल रहा था. तो यह सारी चीजें बहुत एक्साइटिंग थीं. बचपन से मैं 'रोमियो-जूलियट' से बहुत प्रभावित रही हूं, तो उस कहानी का कोई भी एडॉप्शन हो - मुझे हमेशा अच्छा लगता है.
मैं रोमियो-जूलियट से बहुत प्रभावित रही हूं, तो उस कहानी का कोई भी एडॉप्शन हो - मुझे हमेशा अच्छा लगता है.
सवाल: राजस्थान में शूटिंग और मेवाड़ का कल्चर कैसा लगा आपको? शूटिंग के दौरान अपनी भाषा पर किस तरह काम किया आपने?
जवाब: मेवाड़ी कल्चर बेहद खूबसूरत है. मैं बहुत आभारी हूं कि मुझे वहां जाकर उनका कल्चर एक्स्प्लोर करने का मौका मिला. मैं इतिहास में बहुत दिलचस्पी रखती हूं. शूटिंग से पहले हम दो बार वहां गए. वहां के लोगों से बात की, उनके बोल-चाल का तरीका समझा, बहुत सारा खाना खाया जो मुझे बहुत पसंद आया. वहां के लोगों में अपने कल्चर को लेकर एक शान भी है, जो आपको काफी लुभाती है. हमारा डायरेक्टर खुद भी मारवाड़ी है, उन्होंने उदयपुर में काफी वक्त गुजारा है. उन्हें बहुत समझ थी वहां की भाषा की, तो वो मुझे रीडिंग्स करने को कहते थे.
हम लोगों को हंसा सकते हैं, रुला सकते हैं. पर सबसे जरूरी चीज है अपना काम ईमानदारी से करना.
सवाल: आपकी मां कहती थीं कि एक्टिंग का मतलब सिर्फ सुन्दर दिखना और लाइनें पढ़ना नहीं होता है. अब आप भी इस फील्ड में आ गई हैं. तो आपके अनुभव के हिसाब से एक्टिंग क्या है?
जवाब: मेरे लिए एक्टिंग जीवन जीने की एक कला है. यह एक फीलिंग की तरह है. मुझे लगता है कि एक्टर्स शायद सबसे ज्यादा सौभाग्यशाली कलाकार होते हैं. यह एक ऐसा प्रोफेशन है जहां आपको अलग-अलग तरह के जीवन जीने का मौका मिलता है. आप रोज कोई न कोई नई चीज अनुभव करते हैं, और उसी हिसाब से आपका विकास होता है. दुनिया में कोई डॉक्टर किसी की जान बचा रहा है, कोई सैनिक बॉर्डर पर लड़ाई कर रहा है - ऐसे कई ज़रूरी प्रोफेशन हैं दुनिया में. तो लोग सोचते हैं कि हम एक्टर्स का काम बहुत आसान होता है. लेकिन हमारे पास ताकत है लोगों को कई चीजे महसूस कराने की. हम वो एहसास पैदा करने की क्षमता रखते हैं. हम लोगों को हंसा सकते हैं, रुला सकते हैं. पर सबसे जरूरी चीज है अपना काम ईमानदारी से करना. एक्टिंग फील्ड से जुड़ने की बदौलत ही आज मैं राजस्थानी कल्चर के बारे में इतना जान पाई. कल शायद मैं किसी की मां का रोल करूंगी, तो उस एहसास को भी महसूस कर पाऊंगी.
सवाल: सुना है इस फिल्म के लिए आपको डांस ट्रेनिंग लेनी पड़ी?
जवाब: प्रॉपर ट्रेनिंग नहीं ली मैंने, पर हां एक क्रैश कोर्स किया था. क्यूंकि कथक के लिए ट्रेनिंग बहुत जरूरी होती है, लेकिन मेरे पास सिर्फ तीन-चार महीने ही थे - तो एक कथक-बॉलीवुड वर्जन का क्रैश कोर्स किया था मैंने. मैं अपने आप को एक क्वालीफाइड या ट्रेंड डांसर नहीं बोल सकती, लेकिन अभी शूटिंग के बाद मैंने फिर से कथक की क्लासेस शुरू की हैं.
सवाल: जब आपने 'धड़क' की शूटिंग शुरू की, तो एक फ्रीडम का एहसास भी होगा आपके अंदर. लेकिन उसी दौरान आपने फैन्स का अटेंशन भी पाया होगा, ऑटोग्राफ्स देने भी शुरू किये होंगे. तो क्या आपको ऐसा लगा कि वो फ्रीडम फिर से छिन रही है?
जवाब: मैं अपनी परवरिश को लेकर खुद को बहुत खुशकिस्मत मानती हूं. हम कहीं भी जाते थे घर से बाहर, तो मॉम और डैड मुझे लेकर बहुत प्रोटेक्टिव रहे हैं. कहीं घूमने जाते थे तो भी मुझे याद है कि ज़्यादातर समय हम होटल के रूम में ही बिताते थे. और फिर अपना इवेंट अटेंड करके वापस आ जाते थे. लेकिन हां, सड़कों पर आमतौर पर घूमना और चीज़ों को एक्स्प्लोर करना- यह मैं नहीं कर पायी. पर इस फिल्म की शूटिंग के दौरान मैंने राजस्थान को वहां एक किसी लोकल शख्स की तरह ही एक्स्प्लोर किया. लेकिन हां, लोग सेल्फी या ऑटोग्राफ लेना चाहते हैं तो मुझे भी अच्छा लगता है. लोग मरते हैं इस अटेंशन के लिए. मुझे कहीं न कहीं पता है कि मुझे जो अटेंशन मिल रही है, उसका ज्यादा क्रैडिट मॉम-डैड को जाता है और बाकी इस फिल्म 'धड़क' को. यह मेरी पहली फिल्म है तो मैं अपने दम पर अभी अपनी फैन फॉलोइंग नहीं बना पायी हूं.
सवाल: करण जौहर ने लॉन्च से पहले कुछ सलाह दी आपको?
जवाब: वो फिल्म के प्रोड्यूसर हैं, तो वो हमेशा सबके टच में रहते हैं और बात करते रहते हैं. सबसे बड़ी चीज है कि अपनी पर्सनल इन्वेस्टमेंट के अलावा भी वो सभी काम करने वालों के साथ एक पर्सनल रिलेशन बनाकर रखते हैं. हमें बताते रहते हैं कि हमेशा विनम्र रहो. वो मानते हैं कि टैलेंट एक बिलकुल अलग चीज है, लेकिन हार्ड वर्क को कभी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए.
सवाल: किसी तरह का प्रेशर महसूस कर रही हैं क्या आप रिलीज से पहले?
जवाब: हमने 'मधु' और 'पार्थवी' बनकर बहुत वक्त गुजारा है, उनकी दुनिया में उनकी कहानी को हमने जिया है. बहुत प्रोटेक्टिव फील करती हूं मैं इन रोल्स को लेकर. एक अटैचमेंट हो जाता है अपने रोल के साथ. घबराहट इस बात की है कि अब इन किरदारों को और इनकी दुनिया को हम दूसरों के हाथों में सौंप रहे हैं. पर हमने मेहनत से और ईमानदारी से काम किया है. किसी को 'सैराट' ज्यादा पसंद आएगी, तो किसी को 'धड़क', इस पर हमारा कंट्रोल नहीं है. लेकिन जिस चीज पर हमारा कंट्रोल था वो हमने शूटिंग के दौरान ध्यान रखा. हमने अच्छी नीयत से फिल्म बनाई है. तो और कोई घबराहट नहीं है.