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'धड़क' इस मंशा से नहीं बनाई गई कि 'सैराट' के साथ इसका कम्पटीशन हो: ईशान खट्टर

'बियॉन्ड द क्लाउड्स' में अपने अभिनय का लोहा मनवा चुके ईशान खट्टर अब 'धड़क' के जरिए उन्हें बॉक्स ऑफिस पर धमाल मचाने के ल‍िए पूरी तरह तैयार हैं. मुलाकात के दौरान उन्‍होंने अपनी फिल्म, आने वाले प्रोजेक्‍ट्स, फ‍िल्‍म की तैयारी कैसे की जैसे विभिन्न विषयों पर बातें कीं...

सवाल: पहली ही फिल्म 'बियॉन्ड द क्लाउड्स' में बेस्ट एक्टर के लिए एक इंटरनेशनल अवॉर्ड आपको मिला. कैसा महसूस हुआ आपको?
जवाब: बहुत ही ज्‍‍‍‍‍‍यादा अच्छा लगा. माजिद मजीदी सर की फिल्म थी, और हम इस्तानबुल में थे. तुर्की की यह मेरी पहली ट्रिप थी. सबसे ज़्यादा खुश तो मैं ट्रेवल करके और शूट करके था. एक इंडियन फिल्म को जब आप दुनिया भर की दूसरी फिल्मों के बीच रेप्रेज़ेंट करते हैं, तो उसकी ख़ुशी ही कुछ और होती है. टीम के कुछ लोग अनुमान ज़रूर लगा रहे थे कि मुझे अवॉर्ड मिल सकता है, लेकिन मुझे इसकी बिलकुल उम्मीद नहीं थी. मेरी मांं वहां मौजूद थीं. मेरा पहला अवॉर्ड था. तो काफी अच्छा लगा. इस कैटेगरी में दस से ज़्यादा एक्टर्स थे जो सालों से इंडस्ट्री में हैं. इसलिए मुझे नहीं लग रहा था कि मुझे अवॉर्ड मिलेगा. पर मैं खुद को खुशकिस्मत मानता हूं.

सवाल: लोगों को 'धड़क' के ट्रेलर्स काफी पसंद आ रहे हैं. अब आगे के लिए क्या आपके पास और फिल्मों के ऑफर्स आने लगे हैं?
जवाब: जी हां. एक-दो जगह से ऑफर्स आए हैं. मैंने फिल्में या स्क्रिप्ट्स सुनी नहीं हैं. लेकिन लोग इंट्रेस्ट शो कर रहे हैं.

सवाल: 'बियॉन्ड द क्लाउड्स' के रिव्यूज़ के बीच एक हॉलीवुड रिपोर्टर ने भी आपकी तारीफ़ की थी और आपका फ्यूचर करियर बढ़िया बताया उन्होंने. वो रिव्यू पढ़ा था आपने?
जवाब: जी. मुझे ख़ुशी मिलती है जब लोग इस तरह मेरा काम आंकते हैं. मुझे एक पहचान दी जा रही है, वो भी अपने करियर के इस शुरुआती दौर में, यह देखकर ख़ुशी होती है.

सवाल: आपने एक इंटरव्यू में बोलै था कि 'धड़क' असलियत में मराठी फिल्म 'सैराट' की अडॉप्टेशन है, रीमेक नहीं है. तो आपके डायरेक्टर ने 'सैराट' से अलग इस फिल्म में क्या किया? या ऑडियंस को हैरान करने वाले कुछ एलिमेंट हैं क्या आपकी फिल्म में?
जवाब: मैं ऊपरी तौर पर कुछ बातें बता सकता हूंं आपको. अगर कहानी में जाऊंंगा तो फिर आप फिल्म का मज़ा नहीं ले पाएंगे. मैं इतना ज़रूर कह सकता हूंं कि इस फिल्म में एक नया कल्चर दिखाया गया है, किरदार बिलकुल अलग हैं, राजस्थान और वहां के ट्रेडीशन्स से काफी प्रभावित है यह फिल्म. जो किरदार दिखाए हैं, उनकी दुनिया और परवरिश बिलकुल अलग रही है, और इसीलिए उनका नजरिया भी बिलकुल अलग है. और जिस तरह से इस कहानी को पेश किया गया है या शूट किया गया है वो बिलकुल अलग है, क्यूंकि डायरेक्टर अलग हैं. हमारी पूरी कोशिश थी कि हम कहानी के किरदारों के साथ इन्साफ करें. 'सैराट' में जो ट्रीटमेंट दिया गया है वो मराठी कल्चर के हिसाब से है. यहांं प्लॉट और ट्रीटमेंट बिलकुल अलग देखने को मिलेगा. कहानी में भी छोटे-छोटे डिफरेंसेस आपको देखने को मिलेंगे.

सवाल: 'धड़क' आपकी पहली मेनस्ट्रीम हिंदी फिल्म है, और वो भी किसी फिल्म की अडॉप्टेशन. आपको नहीं लगता कि मेनस्ट्रीम बॉलीवुड में डेब्यू के लिए आपको एक ओरिजिनल फिल्‍म चुननी चाहिए थी?
जवाब: नहीं, मैं इस फिल्म से काफी खुश हूंं. हालांकि रीमेक या अडोप्टेशन्स में ऑडियंस को अनुमान होता है कि कहानी किस बारे में होगी. तो आपके कन्धों पर ज़िम्मेदारी काफी बढ़ जाती है. लोग तुलना ज़रूर करते हैं. लेकिन 'धड़क' कभी भी इस मंशा के साथ नहीं बनायी गयी कि 'सैराट' के साथ इसका कम्पटीशन किया जाए, या इसे 'सैराट' से बेहतर बनाया जाए. शशांक इसे अपनी तरह से डायरेक्ट करना चाहते थे. यह बहुत खूबसूरत कहानी है, और देशभर की जनता तक इसे पहुंचना चाहिए.

सवाल: आपने इस फिल्म के लिए अपने कान छिदवाये हैं, वज़न भी बढ़ाया है. और क्या क्या तैयारियां की हैं आपने इस फिल्म के लिए?
जवाब: इस फिल्म में एक मेवाड़ी बोलचाल का इस्तेमाल हुआ है, तो हमने राजस्थान में काफी समय बिताया. ज़ुबान बेहतर करने की कोशिश की. वहां के कल्चर को करीब से समझने की कोशिश की. वहां के लोगों की शारीरिक बनावट पर भी गौर किया, और वैसा ही लुक मुझे दिया गया. तेज़ धूप की वजह से वहां के लोगों के बालों का रंग अलग होता है. पर मेरे बाल गहरे काले थे, तो उन्हें हल्का किया गया. हल्के भूरे रंग के कॉन्टैक्ट लैंस पहनाये गए मुझे. 'बियॉन्ड द क्लाउड्स' में मेरा वज़न बहुत कम रखा गया था, लेकिन यहांं शशांक चाहते थे कि में एक खाता पीता मेवाड़ी लड़के की तरह दिखूं, इसलिए फिर से वज़न बढ़ाना पड़ा.

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