फिल्म: परीक्षा -द फाइनल टेस्ट
कास्ट: आदिल हुसैन, प्रियंका बोस, शुभम झा, संजय सूरी
निर्देशक: प्रकाश झा
OTT: Zee5
रेटिंग: 3 मून्स
प्रकाश झा की नई फिल्म 'परीक्षा: द फाइनल टेस्ट' शिक्षा प्रणाली के बजाय समाज में प्रचलित वर्ग और जाति को लेकर किए जाने वाले भेदभाव पर है. फिल्म का नाम दो चीजों का अर्थ बयां करती है, एक तरफ प्राइवेट स्कूलों और सरकारी स्कूलों के बीच शिक्षा के अंतर की एक बड़ी खाई और दूसरी तरफ यह जाति आधारित पूर्व धारणा पर रोहनी डालती है.
बात करें फिल्म की कहानी की तो यह एक रिक्शा चलाने वाले शख्स बुच्ची पासवान (आदिल हुसैन) की है, जो किसी भी रूप में अपने बेटे को पढ़ाना चाहता है. बुच्ची जो अमीर घरों के बच्चों को स्कूल छोड़ता है और उनके साथ टूटी फूटी इंग्लिश में नर्सरी राइंस बोल बातें करता है. वह कभी-कभी उन अमीर बच्चों द्वारा छोड़े हुए बुक्स और बैग्स को अपने बेटे बुलबुल ( शुभम झा) के लिए लेकर आता है. गरीबी में पलने के बावजूद बुच्ची का बेटा बुलबुल पढ़ने में होशियार होता है. लेकिन सरकारी स्कूल में जाने की वजह से उसे प्राइवेट स्कूल जैसी कोई भी सुविधा नहीं मिलती है. वह बहुत गरीब होते हैं बुच्ची जहां रिक्शा चलाने का काम करता है, वही उसकी पत्नी (प्रियंका बोस) बर्तनों की फैक्ट्री में उन्हें घसने का काम करती रहती है.
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गरीबी की मार झेल रहा बुच्ची चाहकर भी बेटे को बड़े स्कूल में पढ़ाने के लिए पैसे नहीं जुटा पाता और इस तरह से वह गलत रास्ता अपनाता है. ऐसे में एक दिन उसके हाथ एक बटवा लगता है, जिसमे कुल ₹80 हजार रूपये होते हैं. लेकिन इसे वापस करने की जगह बुच्ची इसे लेकर अपने बेटे को एक बड़े स्कूल में दाखिला दिलाने के सपने देखना शुरू कर देता है. इस तरह से वह स्कूल के प्रिंसिपल के पास पहुंच जाता है, उनसे बहुत सारी विनती करने के बाद अपने बेटे को उस बड़े स्कूल में एडमिशन दिलाने के लिए राजी कर लेता है. बुलबुल जो पढ़ने में अच्छा रहता है, वह स्कूल द्वारा पूछे गए सभी सवालों का जवाब देकर स्कूल में एडमिशन पा लेता है.
बुच्ची के लिए प्राइवेट स्कूल में बेटे को एडमिशन दिलाना ही एक बाधा नहीं होती है, बल्कि वहां पढ़ने जा रहे अमीर बच्चों के बीच में बुलबुल का पढ़ना अमीर लोगों को खटक ने लगता है. दूसरी तरफ बुच्ची बेटे को पढ़ाने के ख्वाब को पूरा करने के चक्कर में अपने सर पर कर्ज का बोझ लाद लेता है और इतना ही नहीं इसके बाद वह चोरी का रास्ता भी अपनाना शुरू कर देता है. बच्ची चोरी किए गए सभी पैसों को अपने बेटे की स्कूल फीस के लिए इस्तेमाल करता है, इतना ही नहीं वह स्कूल प्रशासन को भी इन पैसों को देता है, ताकि उसके बेटे को परीक्षा के समय मदद मिल सके. बुलबुल को जब रिश्वत देने की बात का पता चलता है तब उसे यह बहुत बुरा लगता है, वह अपनी मेहनत से अपने अंक प्राप्त करना चाहता है. वही बुच्ची भी अपने द्वारा किए जाए गए गलत कामों पर सोचता है, लेकिन गरीबी की वजह से उसे फिर से एक बार चोरी करने का मन बनाना पड़ता है जिसकी वजह से वह पकड़ा जाता है.
पुलिस द्वारा पूछे जाने पर बुच्ची कुछ नहीं बताता कि वह चोरी क्यों करता है, उसे लगता है कि अगर वह सच बोल देगा तो उसके बेटे की जिंदगी बर्बाद हो जाएगी. इस तरह से फिल्म में एक नए किरदार की एंट्री होती है. जी हां हम बात कर रहे हैं आईपीएस अधिकारी बने एक्टर संजय सूरी की जो बुच्ची से बातचीत करते हैं और सच जानने के बाद उसकी कॉलोनी में जाकर गरीब बच्चों को पढ़ाते हैं. साथ ही साथ वह बुलबुल को भी पढ़ाते हैं और उसका हौसला भी बढ़ाते हैं. जिसके बाद इस चीज पर मीडिया से लेकर अमीर लोगों और नेताओं की नजर जाती है, जो कि बाद में उन पर दबाव डालने लगते हैं कि वह उनके बच्चों को भी पढ़ाएं, लेकिन वह इस चीज से इनकार कर देते हैं.
कहानी में ट्विस्ट तब आता है, जब बुलबुल का बोर्ड नजदीक रहता है और सभी को बुच्ची के चोरी करने के बारे में पता चल जाता है. इस वजह से बुलबुल को स्कूल से निकालने तक ही बात होने लगती है. ऐसे में यह देखना फिल्म में दिलचस्प होगा कि क्या बुलबुल को परीक्षा देने मिलती है कि नहीं? एक पिता द्वारा किए गए त्याग, बलिदान और उसके बच्चे के भविष्य को बनाने के लिए देखे गए सपनों पर क्या भारी पड़ती है उसकी की गई गलती? क्या आईपीएस ऑफिसर बुलबुल की किसी तरह से मदद कर पाते हैं? इन सभी सवालों का जवाब पाने के लिए आपको देखनी पड़ेगी प्रकाश झा की यह फिल्म.
फिल्म के सभी एक्टर्स द्वारा की गयी एक्टिंग अच्छी है. साथ ही बात करें प्रकाश झा की सिनेमाई प्रतिभा की तो वह इस फिल्म में थोड़ी कम नजर आ रही है. फिल्म एक तरह से वर्ग विभाजन या शिक्षा प्रणाली पर नए सिरे से रोशनी डालने में कहीं न कहीं नाकाम रही है. यह कहना गलत नहीं होगा कि परीक्षा कहीं न कहीं दिल को चुने में विफल रही है.