फिल्म: लूडो
डायरेक्टर: अनुराग बसु
कास्ट: अभिषेक बच्चन, पंकज त्रिपाठी, राजकुमार राव, आदित्य रॉय कपूर, रोहित सराफ, फातिमा सना शेख, सान्या मल्होत्रा, पर्ल मैनी, आशा नेगी, पारितोष त्रिपाठी, इनायत वर्मा
ओटीट: नेटफ्लिक्स
टाइम: 2 घंटे 30 मिनट
रेटिंग: 3 मून्स
अपनी बंदूक को बाएं, दाएं और सेंटर पर घुमाते हुए, पंकज त्रिपाठी, एक पर्प फिक्शन अंडरवर्ल्ड डॉन की तरह, बाथरूम में बाथटब में नहा रहे एक नग्न आदमी को मारता है. 'ओ बेटा जी, अरे ओ बाबू जी किस्मत की हवा कभी नर्म, कभी गर्म' सॉन्ग बैकड्रॉप में चलता है, पुराने बॉलीवुड सॉन्ग्स और स्टाइल के लिए अनुराग बसु का प्यार उनकी लेटेस्ट रिलीज लूडो में काफी दिख रहा है. एक मल्टी-नेरेटिव फिल्म को इंडस्ट्री के होनहार, फाइनेस्ट एक्टर्स के साथ प्रोमिसिंग न्यूकमर्स का साथ मिला है. फिल्म में अभिषेक ए बच्चन, पंकज त्रिपाठी, राजकुमार राव, आदित्य रॉय कपूर, रोहित सराफ, फातिमा सना शेख, सान्या मल्होत्रा, पर्ल मैनी और आशा नेगी ने लीड रोल निभाया है. लूडो में पांच अलग-अलग कहानियां को दिखाया गया है . जो जीवन के विभिन्न स्वादों को दिखाते हैं.
पहले फ्रेम से ही अनुराग बसु, लूडो को एक नॉन-ग्लैमरस टच देते है. कहानी सत्तू भैया (पंकज त्रिपाठी) नाम के एक अंडरवर्ल्ड डॉन के इर्द-गिर्द घूमती है. उसका अड्डा शहर के बाहर स्थित है ताकि पुलिस उसे कानूनी रूप से नुकसान ना पहुंचा सके. उसने एक बिजनेस मैन का मर्डर किया है.
वहीं एक प्रभावशाली व्यक्ति डॉ. आकाश चौहान (आदित्य रॉय कपूर) अपने वायरल सेक्स वीडियो को इंटरनेट से हटाने के लिए उनकी मदद चाहता हैं. आकाश, एक मीडिल क्लास वेंट्रिलोक्विस्ट है, जो कठपुतली शो को होस्ट करके अपना जीवन चलाता है. उसे एक मैटेरियलिस्टिक लड़की श्रुति चोकसी (सान्या मल्होत्रा) से प्यार हो जाता है. वर्तमान में श्रुति की शादी एक अमीर व्यवसायी से हो रही होती है. पर वायरल क्लिप की वजह से आकाश और श्रुति फिर से मिल जाते है वो भी वायरल क्लिप की वजह से.
इसके बाद 'लूडो' का पासा आता है, राहुल अवस्थी (रोहित सराफ) की कहानी पर. राहुल एक छोटे शहर का लड़का है. वह एक मॉल में एक स्टोर पर काम करता है और अपने लिए एक सेफ जगह खोजने के लिए काफी परेशानियों का सामना करता है. हालांकि, एक दिन जब उसे मॉल की पार्किंग से बाहर निकाल दिया जाता है, तो उसे रात के लिए रूकने के लिए एक छोटी सी जगह मिल जाती है. दुर्भाग्य से, राहुल इस जगह रूककर सत्तू भैया के अपराध का चश्मदीद गवाह बन गया. घटनाओं के एक ट्वीस्ट और टर्न में राहुल केरल की एक नर्स, शीजा थॉमस से मिलता है. वे पैसे के लालची हैं और एक शानदार जीवन जीने की ख्वाहिश रखते हैं.
चौथा कैरेक्टर, जो गुस्से को दर्शाता है वह है बटुकेश्वर तिवारी उर्फबिट्टू भैया (अभिषेक ए बच्चन). पहले, ये सत्तू भैया के दाहिने हाथ थे लेकिन उनके रिश्ते में खटास आ गई जब बिट्टू को आशा (आशा नेगी) से प्यार हो गया और बिट्टू ने एक साफ-सुथरे फैमिली मैन की तरह अपना जीवन जीना शुरू किया. हालाँकि, अपराध ने उसे नहीं छोड़ा. उसे हत्या की कोशिश के तहत जेल भेज दिया जाता है. 6 साल बाद, वह वापस आता है तो उसके लिए बहुत कुछ बदल गया है. उसकी बीवी किसी दूसरे से ब्याह कर चुकी है. बिटिया वह वापस पाना चाहता है. वह इमोशनली रूप से कमजोर होता है.
वहीं जब उसकी मुलाकात एक छोटी लड़की मिनी (इनायत वर्मा) से होती है, जिसके माता-पिता के पास उसके लिए समय नहीं है, तो बिट्टू उसके करीब महसूस करता है और उसे अपनी बेटी की तरह मानता है. छोटी लड़की के निर्देशों का पालन करते हुए, वह ऐसा दिखावा करता है जैसे उसने पैसे के लिए उसका अपहरण कर लिया है.
अगली कहानी आलोक कुमार गुप्ता (राजकुमार राव) उर्फ 'आलू’ की है. मिथुन चक्रवर्ती के फैन के किरदार में सब कुछ लुटा के होश में आए तो क्या हुआ टाइप प्रेमी बने राजकुमार के इस किरदार की तासीर बहुत गर्म है. तपिश उसकी शादीशुदा प्रेमिका और एक बच्चे की मां बनी फातिमा सना शेख की भी कम नहीं है. उनके बचपन की प्यारी पिंकी (फातिमा सना शेख) ने उन्हें अपने फायदे के लिए इस्तेमाल किया और किसी और से शादी कर लेती है. सालों बाद, उसे शक होता है कि उसके पति का विवाहेतर संबंध है और वह उस पर जासूसी करती है. इसके बीच में, उसका पति सत्तू की हत्या करने वाले व्यापारी के घर में एंट्री करता है और उस पर हत्या करने का आरोप लगाया जाता है. पिंकी आलोक की मदद चाहती है.
फिल्म ‘लूडो’ में अनुराग बसु ने एक बार फिर सतरंगी दुनिया का इंद्रधनुष अपने किरदारों के साथ साथ उनके आस पास दिखने वाली रंग बिरंगी चीजों से सजाया है. हर फ्रेम में रंग समेटने की उनकी आदत उनकी कहानी को सहज बनाती है. कोलकाता और उसके आसपास के इलाके अनुराग की फिल्मों को खूब संजाते संवारते हैं. ये लोकेशन्स ‘लूडो’ के भी खूब काम आती है. पर हां चार सभ्य कहानियों का चित्रण करते हैं, लेकिन उन्हें संतोषजनक निष्कर्ष देने में विफल रहते हैं. एक बिंदु पर, वह महाभारत, कर्म, पाप-पुण्य, मृत्यु और जीवन आदि में उलझ जाते हैं. पर हां, पॉजिटिव एंगल पर अनुराग, हमेशा की तरह, अपने एक्टर्स को अच्छा काम देते हैं. इस बार भी, वह निराश नहीं करते हैं.
अनुराग का लेखन कुछ हिस्सों में चमकता है जबकि इसे कुछ हिस्सों में तेज और प्रभावी होने की आवश्यकता है, हालांकि उनका कैमियो मिस करना मुश्किल है! निर्देशक के रूप में अनुराग के साथ, दर्शकों को कुछ जादुई मोमेंट्स की उम्मीद रहती हैं. सिनेमैटोग्राफी वर्ल्ड क्लास है. बैकग्राउंड म्यूजिक उत्तम है. बस प्रीतम का सुर इस बार सही नहीं लगा है. सईद कादरी से बेहतर गाने की उम्मीद थी. संदीप श्रीवास्तव और श्लोक लाल के लिखे गाने भी कुछ खास नहीं हैं. अरिजीत सिंह जब तक कामयाब हैं, चल ही रहे हैं, लेकिन इन्हें भी अपना फर्मा कभी न कभी तो तोड़ना ही होगा.
पंकज त्रिपाठी का सत्तू भैया वाला रोल फिल्म की जान है. पंकज त्रिपाठी, जिन्होंने प्रभावी रूप से गैंगस्टर भूमिकाओं के लिए बेंचमार्क सेट किया है, अभी भी अपने कावीन भैया (मिर्जापुर) अवतार में हैं. कम शब्दों के साथ, वह अपने चेहरे और आंखों के साथ बोलते हैं. अभिषेक बच्चन ने इस फिल्म में परमवीर चक्र जीता है. बदमाशी का रोल जूनियर बच्चन कमाल का इसके पहले मणिरत्नम की ‘युवा’ में भी कर चुके हैं और उस किरदार का अक्स आपको यहां भी दिखता है.
अभिषेक की जोड़ीदार बनी बाल कलाकार इनायत वर्मा को देखना अपने आप में अलग अनुभव है. अगर इस उम्र में ये इतनी ‘काकी’ हैं. अभिषेक बच्चन बिट्टू के रूप में चमकते हैं जो भावनात्मक रूप से कमजोर है, चाहे वह क्रोध हो या प्रेम. वह अपने किरदार में जान फूंक देते है. आदित्य अपने कैरेक्टर के साथ लूडो में ताजगी लाते है. अनुराग की अंधेरी दुनिया में, आदित्य रंगों में भर जाता है.
राजकुमार राव ने एक बार फिर सबको इम्प्रेस किया है. मिथुन चक्रवर्ती के फैन के किरदार में सब कुछ लुटा के होश में आए तो क्या हुआ टाइप प्रेमी बने राजकुमार के इस किरदार की तासीर बहुत गर्म है. फिल्म का सरप्राइज पैकेज रोहित और पर्ल की अदाकारी है। अनुराग बसु ने दो हीरे अदाकारी के समंदर से खोजे हैं, इनकी कढ़ाई और गढ़ाई पर जमाने की सतर्क नजर रहने वाली है.
सान्या मल्होत्रा श्रुति की भूमिका के लिए एकदम फिट हैं. वह परदे पर बहुत अच्छी लगती है और आदित्य के साथ उसकी केमिस्ट्री काफी अच्छी लगी है. फातिमा पिंकी की भूमिका में चमकती है जो अपने फायदे के लिए आलोक का इस्तेमाल करती है. वह एक लंबी स्क्रीन समय की हकदार थी. आशा का किरदार छोटा है पर अच्छा है, लेकिन हम निश्चित रूप से उन्हें और ज्यादा देखना चाहते थे.
आपको कहानियां स्वेटर की बुनाई के फंदों की तरह गिनते रहनी पड़ें लेकिन एक बार नाप समझ में आ गई तो ये भी समझ आ जाएगा कि कहां फंदे गिराने हैं और कहां बढ़ाने हैं. और, ये इस बुनावट को लिखने की कसावट ही है कि एक कहानी दूसरी कहानी के ऊपर से फिसलती रहती है और दर्शक को देखने में कहीं कोई बाधा आने नहीं पाती. इसके लिए फिल्म के वीडियो एडीटर अजय शर्मा को दस में दस नंबर दिए जा सकते हैं.
अनुराग जब तक भट्ट भाइयों के साथ ‘साया’, ‘मर्डर’ ‘तुमसा नहीं देखा’ और ‘गैंगस्टर’ बनाते रहे. फिर अनुराग ने ‘लाइफ इन ए मेट्रो’बनाई. इस एक फिल्म ने न सिर्फ अनुराग बसु के प्रति दर्शकों का नजरिया बदल दिया बल्कि फिल्म जगत ने भी उन्हें एक अलग नजरिये से देखना शुरू किया. अनुराग ने फिर दो बेहतरीन फिल्में ‘काइट्स’ और ‘बर्फी’ बनाईं. वहीं लुडो में अनुराग बसु के जादू और परिपक्वता का अभाव है जो बर्फी और लाइफ इन ए मेट्रो में देखा गया था. वैसे संक्षेप में, अगर आप ओटीटी पर कुछ अलग देखना चाहते हैं तो लूडो एक बार देख सकते हैं.
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