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AK vs AK Review: विक्रमादित्य मोटवाने की इस थ्रिलर में अनिल कपूर और अनुराग कश्यप लगे 'झक्कास', एंटरटेन के साथ साथ कन्फ्यूज्ड कर देगी फिल्म

जब एक-दूसरे को आड़े हाथों लेने की बात आती है, तो अनिल कपूर और अनुराग कश्यप से बेहतर ये कोई नहीं कर सकता. और ये बात साबित करने के लिए विक्रमादित्य मोटवाने की नेटफ्लिक्स की ये फिल्म काफी है. फिल्म का कॉन्सेप्ट सिंपल है - एक दूरदर्शी डायरेक्टर, एक ऑल्ड स्कूल एक्टर और 10 घंटे तक चलने वाला कैमरा.  लेकिन इसके बाद जो होगा वह आपके दिमाग को उड़ा देगा. अनिल और अनुराग स्टारर AK vs AK दर्शकों को कंफ्यूज कर देगी की ये रियलिटी है या फैंटेसी. पर हां, हालाँकि एक बात ज़रूर है- जब भी आप ये फिल्म देखेंगे तो आपके ये फिल्म एंटरटेन करने के साथ साथ उलझा जरूर देंगी. 

1 घंटे 48 मिनट की फिल्म 'सस्ते टारनटिनो' अनुराग कश्यप की मुलाकात ऑल्ड स्कूल एक्टर' अनिल कपूर के साथ शुरू होती है. ‘एके वर्सेज एके’ फिल्म के अंदर चलती फिल्म है. किरदारों ने अपना ही चोला पहना हुआ है. अनिल कपूर का रोल अनिल कपूर ही कर रहे हैं. अनुराग कश्यप का रोल भी अनुराग कश्यप का ही है. नकली टाइप की एक डॉक्यूमेंट्री बनाने का ये प्रचलन सिनेमा का नया प्रयोग है. फिल्म में अनिल कपूर के भाई बोनी कपूर, बेटा हर्षवर्धन, बेटी सोनम उनका निजी स्टाफ सब कुछ असली दुनिया के हैं, बस काम वह एक कहानी में कर रहे हैं. कहानी की शुरूआत एक संवाद कार्यक्रम से होती है जिसमें अनुराग गुस्से में आकर अनिल कपूर के चेहरे पर पानी फेंक देते हैं. फिल्म बिरादरी इसके बाद उनका बहिष्कार करती दिखाई जाती है, यहां तक कि नवाजुद्दीन सिद्दीकी भी उनका फोन काट देते हैं. करियर बचाने के लिए अनुराग एक ऐसी फिल्म बनाने निकलते हैं जिसमें वह सोनम का अपहरण कर लेते हैं और अनिल कपूर के पास उसे बचाने के लिए वक्त पहले से तय होता है. और, इस सबके दौरान कैमरा बंद नहीं होना है. वह पुलिस को सूचित नहीं कर सकते हैं, मदद के लिए फोन कर सकते हैं या अपने परिवार के सदस्यों को भी बता सकते हैं, खासकर सोनम के चिंतित पति आनंद आहूजा को. यह सब अनिल के जन्मदिन की पूर्व संध्या पर होता है इसलिए अव्यवस्था और भी बदतर हो जाती है.

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वहीं इसके बाद अनिल के बेटे हर्षवर्धन कपूर कहानी में एंट्री लेते है. जो अपने पिता से अधिक एके को प्यार करता है. अपरिपक्व फिल्मांकन और रिवेंज के रूप में जो शुरू होती ये कहानी अनुराग के लिए सबसे बुरा सपने जैसी बन जाती है. खैर, ऐसा होता क्यू है ये सब आपको फिल्म देखने के बाद पता चलेगा. 

AK vs AK बॉलीवुड की कन्वेंशनल फिल्म नहीं है. यह एक झलक देता है कि बॉलीवुड स्टार के रियल लाइफ में क्या होता है जब एक 'क्रेजी डायरेक्टर' अपना दिमाग खो देता है. फिल्म का दिलचस्प पहलू सोनम, हर्षवर्धन और बोनी कपूर का नेचुरल कैमियो है. यह फिल्म को मजबूत और भरोसेमंद बनाता है.

जब परफॉर्मेंस की बात आती है, तो अनिल कपूर खुद ही शो चुरा लेते हैं. इतना अधिक कि कोई विश्वास नहीं करता कि वह वास्तव में एक्टिंग कर रहे हैं. अनिल मेलोड्रामा के दौर के सुपरस्टार रहे हैं. अब सिनेमा हकीकत से गलबहियां कर रहा है. बदलते दौर के निर्देशकों के साथ तारतम्य बिठा पाने की अनिल कपूर अद्भुत मिसाल हैं. फिल्म पूरी तरह से उन्हीं के कंधों पर है. फिल्म में कोई हीरोइन नहीं है। कोई गाना नहीं है. टुकड़ों टुकड़ों में जो गाना बार बार बजता भी है वो है, ‘माई नेम इज लखन’. परदे पर अनिल कपूर यहां भी बिल्कुल सहज दिखे. वैसे ही जैसे एक बाप अपनी बेटी के किडनैप हो जाने पर परेशान होगा, वैसा ही वह भी करते दिखे. 
 

वैसे अनुराग कश्यप भी बिल्कुल पीछे नहीं हैं. अनुराग कश्यप फिल्ममेकर अच्छे रहे हैं, अच्छी बात ये है कि वह अब अपने आसपास के लोगों को अपने जैसा बनाने की कोशिशें करना बंद कर चुके हैं. फिल्म ‘एके वर्सेज एके’ की शुरूआत से एकबारगी को लगता है कि कहीं विक्रमादित्य ने अनुराग का चोला तो नहीं पहन लिया लेकिन वह जल्दी ही इससे बाहर आ जाते हैं. एक सीन में जब अनिल और अनुराग हाथ मिलाते हैं, जिस तरह से अनिल और अनुराग एक-दूसरे पर धौंस जमाते हैं, सीन देखने लायक है...एक तरफ कश्यप कपूर को 'पुराना लखन' कहते हैं और अनिल अनुराग को 'बॉलीवुड का सबसे बड़ा धोखेबाज' कहते हैं. 


विक्रमादित्य ने इस फिल्म में अपना असली लोहा फिर से दिखाया है. 10 साल से लेकर अब तक उनके खाते में डायरेक्टर के तौर पर ‘ट्रैप्ड’ और ‘भावेश जोशी सुपरहीरो’ जैसी फिल्में ही शामिल रही हैं. नए तरह के सिनेमा की तलाश में रहने वालों के लिए हिंदी सिनेमा से निकली ये पेशकश जाते हुए साल की निशानी है.

सबसे पहली बात - चलो एक फिल्म के निर्देशन के लिए विक्रमादित्य मोटवाने की सराहना करते हैं और सराहना करते हैं जो आमतौर पर बॉलीवुड के पास भी नहीं है. इस फिल्म को लोगों को समझने में देर लगेगी...लेकिन फिल्ममेकर ने इसे बनाने का जोखिम लिया. उनकी दिशा एकदम सही है, तब भी जब पूरी फिल्म एक हैंडीकैम पर फिल्माई गई है. जरूरी पंचों के साथ अविनाश संपत का लेखन एक क्लासिक थ्रिलर है. फिल्म का पूरा खाका अविनाश का ही खींचा हुआ है. वहीं अभिषेक गुप्ता की एडिटिंग और कुरकुरी हो सकती थी. लेकिन हां, बैकग्राउंड म्यूजिक और रियल लोकेशन फिल्म की ऑवरॉल बहुत अच्छा बनाते है. 

अनिल और अनुराग  के बीच के टकराव को देखने के लिए आप ये फिल्म आप जरूर देख सकते हैं, क्योंकि, बाप का, दादा का, भाई का, सबका बदला लेगा रे, तेरा कश्यप!
              पीपिंगमून फिल्म 'AK vs AK' को 3.5 मून्स देता है 

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