फिल्म: द गर्ल ऑन द ट्रेन
कास्ट: परिणीति चोपड़ा, अविनाश तिवारी, अदिति राव हैदरी और कीर्ति कुल्हारी
निर्देशक: रिभु दासगुप्ता
ओटीटी: नेटफ्लिक्स
अवधि: 2 घंटे
रेटिंग: 3 मून्स
बॉलीवुड में फिलहाल एडेप्टेशन का दौर चल रहा है और अब इस लिस्ट में रिभु दासगुप्ता की पौला हॉकिन्स की बेस्टसेलिंग बुक 'द गर्ल ऑन द ट्रेन' का हिंदी एडेप्टेशन है, जिस पर हॉलीवुड ने पहले ही 2016 में एक फिल्म बनाई थी. ऐसे में इस मर्डर मिस्ट्री पर बनी हिंदी फिल्म में परिणीति चोपड़ा लीड रोल निभा रही हैं.
फ़िल्म की कहानी लंदन में रहने वाली मीरा कपूर (परिणीति चोपड़ा) की है, जो पेशे से एक लॉयर और शॉर्ट टर्म amnesia से ग्रस्त है, जिसका एक काला अतीत, होने के साथ शेखर (अविनाश तिवारी) के साथ एक टूटी हुई शादी भी है. अपने अकेलेपन से उबरने के लिए वह परफेक्ट कपल नुसरत (अदिति राव हैदरी) और आनंद (शमौन अहमद) की जिंदगी को रोज यात्रा के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले ट्रेन से निहारती रहती है. लेकिन एक दिन वह कुछ अप्रत्याशित देती है जो उसके विश्वास को तोड़ देता है और इस तरह से वह सच से पर्दा उठाने के लिए निकल जाती है जो उसे चौका देता है. हालांकि, बहुत जल्द ही अनजाने में एक क्रूर अपराध में शामिल हो जाती है, जिसे वह खुद हल करने का फैसला करती है.
और जब मीरा ट्रेन में अपने सफर पर निकलती है, तो वह अपने एक रात का पीछा करती है जो उसे याद नहीं रहता है लेकिन एक अपराध जिसे वह भूल नहीं सकती है. हमेशा की तरह, इस हिंदी एडेप्टेशन में भी ड्रामा की कमी नहीं है. ठेठ 'बॉलीवुड-ईश' के रूप में आने वाली कई चीजों के बीच, जैसे परिणीति का सहज मेकअप और कलर को-ऑर्डिनेशन के कपड़े हैं जो वह कभी नहीं भूलतीं, भले ही उनका जीवन टूट रहा हो. यहां, एमिली ब्लंट के साथ कोई तुलना नहीं किया जा सकता है, निश्चित रूप से रिभु ने इस फिल्म के साथ एक अच्छी कोशिश की है लेकिन उतनी अच्छी नहीं है.
बात करें परिणीति चोपड़ा की तो उन्होंने पूरी फिल्म का भार अपने कंधो पर उठाया है. फिल्म में वह आश्वस्त हैं और जानती हैं कि वह क्या कर रही हैं. उनका स्क्रीन प्रजेंस शानदार है. इसे उनकी कमबैक फिल्म कहना गलत नहीं होगा, एक्टिंग की मामले में. दुर्भाग्य से, फिल्म उनकी टैलेंट को कॉम्पलिमेंट नहीं करती है. फिल्म में एक्ट्रेस ने अपने इमोशंस को बेहद अच्छी तरह से इस्तेमाल किया है, जो उन्होंने पहले कभी नहीं किया था.
फिल्म की सपोर्टिंग कास्ट भी शानदार है. कीर्ति कुल्हारी, अदिति राव हैदरी और अविनाश तिवारी ने भी अपने किरदार के साथ न्याय किया है.
निर्देशक रिभु दासगुप्ता ने कल्ट-क्लासिक को फिर से बनाने के लिए पूरी टीम के साथ मेहनत की है. लेकिन जिन लोगो ने ओरिजिनल फिल्म देखी है वे अन्यथा सोच सकते हैं. गौरव शुक्ला का लेखन फिल्म के स्वर से मेल खाता है. सुनील निगवेकर को सिनेमैटोग्राफी और संगीथ वर्गीज के पॉइंट टू एडिटिंग के लिए श्रेय दिया जाता है. हालांकि, गिल्ड बेनामराम और चंदन सक्सेना द्वारा फिल्म का संगीत निराशाजनक है क्योंकि वह फिल्म के सीरियस प्लाट को मैच नहीं करता है.