फिल्म: साइलेंस ... कैन यू हियर इट?
कास्ट: मनोज बाजपेयी, प्राची देसाई, अर्जुन माथुर, साहिल वैद, बरखा सिंह, शिशिर शर्मा
निर्देशक: अबान भरुचा देवहंस
OTT: Zee5
रेटिंग: 3 मून्स
अच्छी मर्डर मिस्ट्री किसे पसंद नहीं है और खास कर के तब जब उसमे मनोज बाजपेयी जैसे टैलेंटेड एक्टर एक तेज तरार पुलिस अफसर की भूमिका निभा रहे हों, जो अपराधी को पकड़ने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है. निर्देशक अबान भरुचा देवहंस की फिल्म 'साइलेंस... कैन यू हियर इट?' में मनोज सुनी हुई बातो पर नहीं खुद की आंखों से देखी हुई चीजों पर भरोसा करेंगे, जो इस थ्रिलर को और रोमांचक बनाता है.
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फिल्म की शुरुआत कुछ यंग ट्रेकर्स द्वारा एक जवान लड़की की लाश मिलने से होती है. यह आगे चलकर एक हाई-प्रोफाइल मामला बनकर सामने आता है, जिसमे पीड़िता पूजा (बरखा सिंह) एक रिटायर्ड जज-जस्टिस चौधरी (शिशिर शर्मा) की बेटी होती है. चौधरी, अपनी बेटी के हत्यारों को पकड़ने के लिए पुलिस कमिश्नर से अनुरोध करते हैं कि वह अपनी बेटी की हत्या के मामले को एसीपी अविनाश वर्मा (मनोज बाजपेयी) को सौंपें. इस केस के लिए अविनाश को चुनने की वजह उसका गुस्सा, सच जानने के लिए बेताब होना और रूल बुक को फॉलो न करने की आदत होती है. जज ने पुलिस कमिश्नर को बताया कि अविनाश का न्याय के बारे में विचार अब तक खत्म नहीं हुआ है और उसकी अधीरता से इस मामले में तेजी आएगी.
अविनाश तीन टुकड़ियों- संजना भाटिया (प्राची देसाई), अमित चौहान (साहिल वैद) और राज गुप्ता (वाकर शेख) के साथ मिलकर एक टीम बनाता है, जो साथ मिलकर मामला ठंडा होने से पहले हत्यारे को पकड़ने की कोशिश करते हैं. उनका मुख्य संदिग्ध एक युवा राजनेता रवि खन्ना (अर्जुन माथुर) साबित होता है, जिसके घर पर पूजा को आखिरी बार देखा गया था और उसकी पत्नी पूजा की अच्छी दोस्त होती है, जो एक एक्सीडेंट के बाद हॉस्पिटल में कोमा की स्थिति में होती है. हालांकि, कहानी नजर आने वाली चीजों से कहीं ज्यादा है.
ऐड फिल्म मेकर और लेखक अबान भरुचा देवहंस ने अपना फीचर फिल्म डेब्यू 'साइलेंस ... कैन यू हियर इट?' से किया है, उन्होंने स्क्रीनप्ले छोड़कर बाकी सभी चीजों में अपनी पकड़ बनाए रखी है. हालांकि, फिल्म में क्या सस्पेंस है इसका आपको अंदाजा लगाने में समय नहीं लगेगा. फिल्म में उनकी कहानी सही मायने में एक ऐसे पुलिस वाले के इर्द-गिर्द घूमती है जिसे नियमों और परेशान निजी जीवन के लिए कोई चिंता नहीं होती.
मनोज वाजपेयी हर बार की तरह जबरदस्त हैं और उन्होंने अपनी कमाल की एक्टिंग से अलग तरह के इस किरदार में जान डालने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. हालांकि, इस तरह से वह अपनी पुलिस की इस भूमिका को अपने बाकी किरदारों से अलग बनाने में कामयाब रहे हैं. हालांकि, उनके अभिनय में उनकी अन्य भूमिकाओं का कुछ अंश नहीं देखा जाना मुश्किल है. बहरहाल, वह आगे की ओर जाते हैं और अपने ट्रेडमार्क ह्यूमर के साथ कुछ हंसी के पल लाने में कामयाब रहते हैं. यह कहना गलत नहीं होगा कि उन्होंने बेहद खूबसूरत तरीके से फिल्म को अपने कंधों पर संभाला है.
प्राची देसाई एक पुलिस वाले के रूप में अपनी भूमिका को अच्छी तरह से निभाया है, साथ ही उन्हें लम्बे समय के बाद स्क्रीन पर देखना बेहद अच्छा है. फिल्म में अविनाश के किरदार के साथ वह एक परफेक्ट सहयोगी साबित होती हैं. वहीं, इंटरनेशनल एमी अवॉर्ड में नामित अर्जुन माथुर, एक राजनीतिज्ञ के रूप में, अपने स्तरित किरदार के अलग रंगों को पूरी तरह से स्क्रीन पर लाने में कामयाब रहे हैं. साहिल वैद, वाकर शेख और बरखा सिंह ने अपनी भूमिकाओं को ठीक से निभाया है.
अरविंद सिंह की सिनेमैटोग्राफी थ्रिलर और सस्पेंस बरकरार रखने में मदद करती है. हालांकि, संदीप कुमार सेठी की एडिटिंग थोड़ी बहुत और अच्छी हो सकती थी. मेकर्स ने फिल्म में अनावश्यक गानों को न जोड़ते हुए उसे मजबूती दी है बैकग्राउंड स्कोर सही बीट्स के साथ कहानी को आगे बढ़ने में मदद करती है.
हालांकि सस्पेंस फिल्म का सबसे बड़ा तुरुप का इक्का नहीं हो सकता है, लेकिन यह मनोज का एक शानदार काम है जो आपको एंटरटेनमेंट का डोज देने के लिए काफी है.
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