फिल्म: सरदार का ग्रैंडसन
कास्ट: नीना गुप्ता, अर्जुन कपूर, रकुल प्रीत सिंह, जॉन अब्राहम और अदिति राव हैदरी
डायरेक्टर : काशवी नायर
ओटीटी : नेटफ्लिक्स
रेटिंग्स : 3 मून्स
फैमिली ड्रामा बॉलीवुड का बहुत अहम हिस्सा रहा है. इसी लिस्ट में अब काशवी नायर की फिल्म 'सरदार का ग्रैंडसन' का नाम भी जुड़ गया है. दिल को छू लेने वाली ये फिल्म शायद कई जगह आज के समय के हिसाब से शायद ज्यादा फिट ना बैठें पर हां लोगों को रिश्तों से जरूर जोड़ेगी. अर्जुन कपूर, रकुल प्रीत सिंह, नीना गुप्ता, जॉन अब्राहम और अदिति राव हैदरी की शानदार एक्टर्स की टुकड़ी के साथ आपको धीरे धीरे अपनी ओर जरूर खिंचेगी. ये सच है कि किसी अनुभवी निर्देशक के हाथों में जाकर ये फिल्म एक ऑल टाइम क्लासिक बन सकती थी, लेकिन तारीफ काशवी की करनी होगी कि उन्होंने एक मुश्किल विषय को बहुत ही सहजता के साथ दर्शकों के सामने रखा. 'सरदार का ग्रैंडसन' , जैसा कि नाम से पता चलता है, एक परिवार के प्यार के बारे में है और ये बताती है किसी एक की जरूरत को कभी-कभी पूरा करना ही दूसरे के जीवन का जरूरत बन जाती है.
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काशवी की फिल्म की कहानी अनोखी है. 2 घंटे 20 मिनट की इस फिल्म की शुरुआत अमरीक (अर्जुन कपूर) और उसकी मंगेतर राधा (रकुल प्रीत सिंह) के साथ होती है, जो अमेरिका में मूवर्स एंड पैकर्स का बिजनेस जेंटली जेंटली नाम से चलाती है. लेकिन जल्द ही अमरीक की और से इमोशनल कनेक्शन ना होने की वजह से दोनों के रिश्ते में खटास आ जाती है. फिर ये दोनो अलग हो जाते है. अमरीक का दिल टूट जाता है. इसके बाद अमरीक को अपनी दादी रूपिंदर कौर की एकलौती इच्छा को पूरा करने के लिए उनके हॉमटाउन अमृतसर वापस बुलाया जाता है. रूपिंदर, जिसे हर कोई प्यार से 'सरदार' (नीना गुप्ता) कहकर बुलाता है, वे आखिरी बार अपने पाकिस्तान के लाहौर में अपने पैतृक घर जाना चाहतीं है.
सरदार ने अपने पति के साथ मिलकर लाहौर में उन्होंने बहुत सपने बुने थे. लेकिन, दंगा उनके अरमानों का क़ातिल निकला. अपने दुधमुंहे बच्चे को सीने से बांधकर और एक साइकिल लेकर वह लाहौर से भागती है. सरहद के इस पार अमृतसर को वह अपना ठिकाना बनाती है और शुरू करती है एक साइकिल कंपनी. इतनी बड़ी कंपनी कि जिसका एक रत्ती भर हिस्सा भी अब सरदार की वसीयत में होना किसी को मालामाल कर सकता है. सरदार की बस एक ही ख्वाहिश है कि मरने से पहले उसे लाहौर वाला अपना घर देखना है. अमरीक दादी के दिल की बात पूरी करने की कोशिश करता है. पर जब अमरीक को सरदार के साथ लाहौर जाने से मना कर दिया जाता है, तो वह इस मामले को अपने हाथों में लेने का फैसला करता है. और फिर शुरू होती है भारत-पाकिस्तान की कहानी. इसके बाद सरदार का पोता स्ट्रक्चरल रिलोकेशन तकनीक के जरिए पैतृक घर को अमृतसर में लाने का फैसला करता है. इमोशन्स और कुछ दिल को छू लेने वाले क्षणों से सजी ये फिल्म सरदार के पोते को अपने मिशन को पूरा करने के लिए मजबूर करती है क्योंकि वह अपनी दादी के प्यार के लिए सीमाओं को पार करने से भई पीछे नहीं हटता है.
स्ट्रक्चरल रिलोकेशन एक का यूनिक कॉन्सेप्ट, जो भले ही दुनिया के कई हिस्सों में मौजूद है, पर एक इंडियन ऑडियन्स को थोड़ा अजीब लग सकता है. इस कठिन समय में एक प्यारी सी कहानी का आना ताजगी भरा है. इस समय जब सभी को हंसी के कुछ पल चाहिए. एहसासों का नकलीपन से परे और भावनाओं का सैलाब में डूबी फिल्म एक प्यार भरे दादी-बेटे के रिश्ते के जरिए दिखाई गई है.
परफोर्मेंस A1 हैं. जब कलाकारों की टुकड़ी में नीना जी हो तो फिल्ममें अपने आप जान आ जाती है. फिल्म ‘सरदार का ग्रांडसन’ की हीरोइन नीना गुप्ता ही हैं. 62 साल की नीना गुप्ता ने 90 साल की बुजुर्ग का किरदार उन्होंने शानदार तरीके से निभाया है. 90 साल का दिखने के लिए नीना गुप्ता को प्रोस्थेटिक मेकअप भी कराना पड़ा है, पर वह उसमें भी सुंदर ही दिखती हैं. पूरे परिवार के साथ उनका रिश्ता निभाना कहानी की असली कड़ी है. उनका लुक उतना ही देसी है जितना कि उन्हें सूट और शॉल से सजाए गए रंगीन क्लिप के साथ मिलता है. एक ठेठ पंजाबी दादी के रूप में, नीना भावनाओं को व्यक्त करती है और फिल्म को दिल से छू लेती है. उनकी बोली का पंजाबी टच इस किरदार को और मजबूत बनाता है.
अमरीक के किरजार में अर्जुन शांत और दिल को छू लेने वाला प्रदर्शन करते हैं. वह समझदार है, होशियार है लेकिन सबसे बढ़कर वे अपनी दादी की आखिरी इच्छा को पूरा करने के लिए संवेदनशील है. आप में से कुछ लोगों को जो बात परेशान कर सकती है, वह है उनका पंजाबी लहजा जो कई बार थोड़ा अननेचुरल लगता है, लेकिन अर्जुन के किरदार की खूबसूरती उससे कई ज्यादा है. रकुल फिल्म में अपने पार्टनर को इमोशनल और मेंटल सपोर्ट देने का काम बखूबी करती हैं. हालांकि, उनके किरदार में ज्यादा गहराई नहीं है. अदिति राव हैदरी और जॉन अब्राहम, जो यंग नीना गुप्ता और उनके दिवंगत पति की भूमिका निभाते हैं, रोमांस की पुरानी दुनिया की यादों को ताजा करते है. दोनें कम स्क्रीन स्पेस के साथ भी...दर्शकों को अपनी छोटी और प्यारी दुनिया में पूरी तरह से ले जाने में कामयाब होते हैं. अदिति ने ठेठ पंजाबन युवती के किरदार को बहुत शिद्दत से जिया है. फिल्म की सपोर्टिंग कास्ट सोनी राजदान, कंवलजीत सिंह और कुमुद मिश्रा - अपने अपने किरदारों के साथ पूरा न्याय करते हैं.
काशवी नायर का डायरेक्शन लगभग सही हो सकता था अगर टाइम का थोड़ा ध्यान रखा जाता. ऐसा लगता है कि फिल्म की लंबाई के कारण फिल्म अपने रियल इमोशन्स और एक्साइटमेंट को खो देती है. माहिर झावेरी ने एडिटिंग में थोड़ी रियायत कम बरती होती तो ओटीटी के हिसाब से ये फिल्म थोड़ी और चुस्त की जा सकती थी. फिल्म की लेंथ के कारण कुछ हिस्से रिपीट और गैर जरूरी लगते हैं. अनुजा चौहान, अमितोष नागपाल और काशवी द्वारा लिखी गई कहानी में नयापन है. सिनेमैटोग्राफर महेद्र शेट्टी को सलाम, उनका कैमरा लोकेशन्स को जीवंत करने में कामयाब रहा. तनिष्क बागची का संगीत अविश्वसनीय है और फिल्म के स्वर से मेल खाता है. विजय घोडके ने यहां कला निर्देशन में और शीतल शर्मा ने वेशभूषाएं चुनने में काबिले तारीफ काम किया है.
भावनाओं के सैलाब और रिश्तो की अहमियत समझाती नेटफ्लिक्स की इस फिल्म को आप पूरे परिवार के आराम से बैठकर देख सकते है.
PeepingMoon 'सरदार का ग्रैंडसन' को 3 मून्स देता है.