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Ray Review: मनोज बाजपेयी, के के मेनन, अली फजल और हर्षवर्धन कपूर ने महान फिल्मकार 'सत्यजीत रे' को शानदार ढंग से और पूरे गर्व से किया सेलिब्रेट

कास्ट: मनोज बाजपेयी, गजराज राव, के के मेनन, अली फजल, हर्षवर्धन कपूर, राधिका मदान, श्वेता बसु प्रसाद, अनिंदिता बोस, श्रुति मेनन, बिदिता बग, दिब्येंदु भट्टाचार्य, राधिका मदान, चंदन रॉय सान्याल और आकांक्षा रंजन कपूर
डायरेक्टर: श्रीजीत मुखर्जी, अभिषेक चौबे और वासन बाला 
राइटर: निरेन भट्ट और सिराज अहमद
ओटीटी: नेटफ्लिक्स
रेटिंग्स: 3 मून्स 

राष्ट्र ने 2 मई, 2021 को महान फिल्मकार सत्यजीत रे की 100 वीं जयंती मनाई. महान फिल्मकार को सम्मानित करने के लिए  फिल्ममेकर्स अभिषेक चौबे, श्रीजीत मुखर्जी और वासन बाला ने साथ में नेटफ्लिक्स के लिए एक एंथोलॉजी को डायरेक्ट किया. जिसका नाम 'रे' है. ये एंथोलॉजी सत्यजीत रे के राइटिंग से प्रेरित है. जीवन के रंग और ढेर सारी भावनाओं के साथ, अभिषेक चौबे की 'हंगामा है क्यों बरपा', श्रीजीत मुखर्जी की 'फॉरगेट मी नॉट' और 'बहरूपिया' और वासन बाला की 'स्पॉटलाइट' की ये कहानियां ट्विस्ट, थ्रिलर और टर्न से भरी हैं. अब तक, नेटफ्लिक्स पर कई एंथोलॉजी रिलीज हो चुकी है. जिसमें 'लस्ट स्टोरीज', 'घोस्ट स्टोरीज', 'पित्त कथालू' और 'अजीब दास्ता' के नाम शामिल है. 

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मनोज बाजपेयी, गजराज राव, अली फजल, श्वेता बसु प्रसाद, अनिंदिता बोस, श्रुति मेनन, के के मेनन, बिदिता बाग, दिब्येंदु भट्टाचार्य, हर्षवर्धन कपूर, राधिका मदान, चंदन रॉय सान्याल और आकांक्षा रंजन कपूर स्टारर इन चार कहानियां का आधार प्यार, वासना, धोखा और सच्चाई है.


 

फॉर्गेट मी नॉट

'रे' की पहली कहानी 'फॉर्गेट मी नॉट' का निर्देशन श्रीजीत मुखर्जी ने किया है. 'फॉर्गेट मी नॉट' में अली फजल और श्वेता बसु प्रसाद अहम किरदार निभा रहे हैं. कहानी में अली फजल, इप्सित की भूमिका में हैं, जिसकी मेमोरी कंप्यूटर से भी अच्छी कही जाती है. इप्सित कुछ भी नहीं भूलता है और उसकी पर्सनल व प्रोफेशनल लाइफ में सब कुछ एक दम परफेक्ट है. ऐसे में एक दिन उसकी मुलाकात एक लड़की से होती है, जो उसे कुछ ऐसा बताती है, जो इप्सित को याद नहीं है. अब इसके बाद इप्सित के साथ कई ऐसी छोटी- छोटी चीजें होती हैं, जिससे उसको ऐसा महसूस होने लगता है कि वो चीजें भूलने लगा है. लेकिन कहानी का ट्विस्ट आपको हैरान कर देगा.

इप्सिट के किरदार में अली धमाकेदार हैं. उनकी दक्षिण भारतीय बोली एकदम सही है. इप्सिट जैसा गहन किरदार निभाने के लिए उनका नजरिया शानदार है. वहीं श्वेता बसु प्रसाद यानी मैगी के किरदार का नया रूप भी आपको पसंद आएगा. वहीं रिया यानी अनिंदिता ने अपने किरदार से पूरा न्याय किया है. श्रुति मेनन का काम तारीफ-ए-काबिल है. श्रुति ने इप्सित की पत्नी अमला की भूमिका को खूबसूरती से निभाया हैं. श्रीजीत मुखर्जी की 'फॉरगेट मी नॉट' एंटरटेनिंग कहानी के साथ थ्रिलर के रूप में सामने आती है. कहानी दर्शकों को जरूर ये सोचने पर मजबूर करेगी कि क्या हम भी वक्त के साथ बदले हैं और बदले है तो ये बदलाव पॉजिटिव है या निगेटिव. 
 

हंगामा है क्यों बरपा

जब एक ही फ्रेम में मनोज बाजपेयी और गजराज राव नजर आएं तो फिर मजा आना लाजमी है. रे की तीसरी कहानी 'हंगामा है क्यों बरपा' को अभिषेक चौबे ने डायरेक्ट किया है. कहानी में मनोज बाजपेयी, मुसाफिर अली का किरदार निभा रहे हैं. अली, एक लोकप्रिय गज़ल गायक है जो क्लेप्टोमेनिया से पीड़ित है. वहीं गजराज राव 'बेग'  के किरदार में है. जो पहले पहलवान थे पर फिर स्पोर्ट्स जर्नलिस्ट बन गए. मुसाफिर अली की मुलाकात ट्रेन के एक सफर के दौरान बेग से होती है. दोनों एक दूसरे से बातें करते है  और जैसे-जैसे बातचीत बढ़ती है, मुसाफिर अली को पता चलता है कि बेग के साथ यह उसकी पहली मुलाकात नहीं है. वे दोनों दस साल पहले इसी तरह की ट्रेन यात्रा पर एक-दूसरे से मिले थे. और तब बेग ने अली की एक घड़ी चोरी की थी. इस घड़ी की चोरी के बाद बेग का बुरा वक्त शुरू हो गया था और मुसाफिर अली के अच्छे दिन. लेकिन कहानी के अंत में कुछ ऐसा होता है, जिससे मुसाफिर अली और बेग दोनों की जूझ रहे होते हैं.

परफोर्मेंस की बात करें तो अपनी हर एक किरदार और परफोर्मेंस के साथ मनोज खुद से आगे निकल जाते हैं और यहां भी ऐसा ही हुआ.  पहले फैमिली मैन के श्रीकांत और अब 'हंगामा है क्यों बरपा' के मुसाफिर अली, मनोज हर रंग हर किरदार में शानदार है, बोले तो एक दम फिट. मनोज को पता है कि अपने किरदार को अपने कंधों पर कैसे आराम से ले जाना है. इसे एक ड्रीम स्टार कास्ट बनाते हुए गजराज राव. गजराज किसी परिचय के मौहताज नहीं है. एक्टिंग उनकी सांसो में है. वह न केवल अपने किरदार से कहानी को और दिलचस्प बनाते हैं बल्कि अब तक का अपना सबसे बेस्ट भी देते है. मनोज और गजराज की 'कभी ग्रूफी तो कभी इंटेंस' केमिस्ट्री सभी के लिए देखना सुखद है. 'हंगामा है क्यों बरपा' में अभिषेक चौबे ने दो  व्यक्तियों की आपस में जुड़े भाग्य की व्यंग्य कहानी को शानदार तरीके से दिखाया है. डर और सस्पेंस की मात्रा एक दम सटीक है. 
 

बहरूपिया

तीसरी कहानी 'बहरूपिया' का निर्देशन श्रीजीत मुखर्जी ने किया है. सीरीज में के के मेनन ने इंद्राशीष का किरदार निभाया है. इंद्राशीष एक  डरपोक व्यक्ति है, वे मेकअप आर्टिस्ट बनना चाहता है पर एक ऐसी नौकरी में फंस जाता है जिससे वह नफरत करता है. उसकी अपनी प्रेमिका देबाश्री (बिदिता बाग) उसका दिल तोड़ देती है. वहीं इंद्राशीष की दादी की मौत भी उसे अंदर से झकझोर देती है. पर इंद्राशीष की दादी गुजर से पहले उसके लिए प्रोस्थेटिक्स बनाने की किताब बहुरूपिया छोड़ देती है. ऐसे में इंद्राशीष अपने मेकअप स्किल्स की मदद से पहले अपने बॉस से बदला लेता है, जो उससे काफी परेशान रहता था. वह अपने कौशल का उपयोग उन लोगों को वापस पाने के लिए करता है जिन्हें वह जीवन में अपने साथ अन्याय महसूस करता है और भगवान का मजाक उड़ाता है. धीरे- धीरे इंद्राशीष बहरूपिया बनकर अलग- अलग रूप धरता है, लेकिन एक बाबा (दिब्येंदु भट्टाचार्य) को गलत साबित करने के चक्कर में एक रेपिस्ट का रूप धरना उसे भारी पड़ जाता है.

इंद्राशीष के किरदार में के के मेनन की जीतनी तारीफ की जाएं कम है. एक आदमी जो कपड़े की तरह अपना चेहरा बदलता है और उन सभी को परफेक्ट बनाता है. एक्टर के हाव-भाव का विशेष उल्लेख किया जाना चाहिए. पीर बाबा के रूप में दिब्येंदु भट्टाचार्य ने भूमिका के साथ पूरा न्याय किया है. वह फिल्म में एक बहुत जरूरी रोमांच जोड़ते है. श्रीजीत मुखर्जी का डायरेक्शन इससे बेहतर नहीं हो सकता था. फिल्ममेकर ने जिस तरह से अपने किरदारों को कहानी में दिखाया है, वह प्रभावशाली है. ओपन एंडिंग के साथ भी, श्रीजीत दर्शकों पर धमाकेदार असर छोड़ देते हैं.
 

स्पॉटलाइट

रे की चौथी व आखिरी कहानी 'स्पॉटलाइट' का निर्देशन वासन बाला ने किया है. इस कहानी में दिखाया गया है कि एक्टर विक (हर्षवर्धन कपूर), जो स्ट्रगल करने के करने के बाद अपने 'लुक' के चलते काफी चर्चा पातचा है. उसको बाद में हर बार सेम लुक की वजह से क्रिटिक्स पसंद नहीं करते हैं. 'वन लुक विक' के रूप में टाइपकास्ट, वह टैग से छुटकारा पाने और खुद को साबित करने का फैसला करता है. वहीं उसकी जिंदगी में सब अच्छा होता है, जब तक दिव्य दीदी (राधिका मदान) की एंट्री नहीं होती है. इसके बाद तो विक जो भी चाह रहा होता है वो दिव्य दीदी की वजह से पूरा नहीं हो पा रहा है. दिव्य दीदी से नफरत करने वाले विक की आखिरकार मुलाकात दिव्य दीदी की से होती है और कहानी में आता है बड़ा ट्विस्ट.

अपने करियर में काफी उतार-चढ़ाव पर होने के बावजूद हर्षवर्धन कपूर अपने इस किरदार के लिए एक स्टैंडिंग ओवेशन का पात्र है. वह विक्रम अरोड़ा के रोल में अपना सबकुछ झोंक देते हैं. अपने स्वैग से फिल्म को और बेहतर बनाने वाली हैं राधिका मदान, जो मशहूर 'दीदी' की भूमिका निभा रही हैं. विक की गर्लफ्रेंड के किरदार में आकांक्षा रंजन कपूर और मैनेजर के किरदार में चंदन रॉय सान्याल जमे है. स्पॉटलाइट के साथ, वासन बाला हमें एक ऐसी दुनिया में ले जाते है जो अजीब है पर रिलेटेबल है. हालांकि कुछ लोगों को यह समझना मुश्किल हो सकता है, स्पॉटलाइट में दर्शकों से अनोखे तरीके से बात करने की ताकत है.
 

करीब चार घंटे की 'रे' में आपको चार अलग कहानियां देखने को मिल रही हैं और हर कहानी एक दूसरे से अलग है. निरेन भट्ट और सिराज अहमद के शानदार लेखन के साथ, महान सत्यजीत रे से प्रेरित सिनेमा की दुनिया का अनुभव करने के लिए रे देखें. हर कहानी एक दूसरे से अलग, मजबूत भावनात्मक कोर के साथ थ्रिलर, ट्विस्ट और टर्न से भरी हैं जो आपको एंज तक बांधें रखती हैं.
 

पीपिंगमून की तरफ से 'रे' को 3.5 मून्स
 

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