फिल्म: 14 फेरे
कास्ट: विक्रांत मैसी, कृति खरबंदा और गौहर
डायरेक्टर: देवांशु सिंह
ओटीटी: जी5
रेटिंग्स: 3 मून्स
साथ फेरे? जी हां, हम सभी ने इसके बारे में सुना है, लेकिन 14 फेरे, यह कुछ नया है. ये फिल्ममेकर देवांशु शर्मा की नई फिल्म का नाम है. विक्रांत मैसी, कृति खरबंदा और गौहर खान स्टारर इस सोशल कॉमेडी में एक नहीं बल्कि दो सीक्रेट शादियों की कहानी है. ड्रामे, कॉमेडी और अनोखे पहलुओं को दिखाती ये कहानी सामाजित मुद्दे पर चोट करती है. 14 फेरे खासकर उन भारतीय परिवारों की कहानी है जो सदियों से चली आ रही परंपरा में बंध कर रह गए है. ये फिल्म परिवार, शादी के जश्न के बीच कई बुनियादी खामियों को सही तरीके से दिखाकर सवाल उठाती है.
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फिल्म में संजय लाल सिंह (विक्रांत मैसी) और अदिति करवासरा (कृति खरबंदा) की लव स्टोरी दिखाती है. दोनों की लव स्टोरी कॉलेज की रैगिंग से शुरू होती है और लिव इन तक पहुंच जाती है. संजय जहां बिहार के हैं तो वहीं कृति राजस्थान की, दोनों के ही परिवार लव मैरिज के एक दम खिलाफ होते हैं. वैसे इतना तो आपने कई फिल्मों में देखा होगा... लेकिन बाकी फिल्मों की तरह संजय और अदिति, ना भागते हैं और न ही परिवार वालों को मनाने में जुटते हैं. वो बिठाते हैं तिकड़म, और करते हैं शादी की प्लानिंग. इस मुद्दे को सुलझाने के लिए, संजय और अदिति का साथ देते हैं जुबीना (गौहर खान) और 'सर' (जमील खान). ये दोनों संजय और अदिति के परिवारों सामने माता-पिता की भूमिका निभाने है. गौहर और जमील पहले संजय के माता-पिता बन कर जयपुर में अदिता के पिता और भाई को शादी के लिए मनाते हैं और उसके बाद जहानाबाद जाते हैं. वहां अदिता के माता-पिता बन कर वे संजय के परिवार को शादी के लिए राजी करते हैं. इस तरह संजय और अदिति अब दो शादियां करेंगे. 14 फेरे लेंगे. मगर क्या सचमुच बात बन गई है और आसानी से बिना हंगामे के फेरे भी हो जाएंगे?
14 फेरे दर्शक को एक के बाद एक दो शादियों के ताने-बाने में उलझाए रहती है और तेज गति से चलती है. कहानी कहीं भी बोर नहीं करती है. यह अंत तक आपको बांधे रखेगी. हालांकि, फिल्म की एंडिंग जितनी ड्रामैटिक होनी चाहिए थी, उतनी लगी नहीं. फिल्म में कॉमेडी है, ड्रामा है, रोमांस है, इमोशन है और साथ ही एक सीख भी है. दर्शकों को गुदगुदाने के साथ-साथ ये फिल्म एक रूढ़िवादी सोच पर चोट भी देती है. फिल्म की कहानी उन समाज के ठेकेदारों के लिए है, जो जात-पात से ऊपर उठकर कभी नहीं सोचते.
एक्टिंग निश्चित रूप से फिल्म की रीढ़ हैं. विक्रांत ने अपने किरदार को बहुत शानदार तरीके से निभाया है, दिल्ली में रहकर अपनी बिहारी बोलते विक्रांत फिल्म दर फिल्म निखरते जा रहे है. हर बार वो अपना पिछले से भी बेस्ट देते है. वहीं कृति खरबंदा अपने दमदार रोल में हर इमोशन को बेहतरीन तरीके से दिखाती हैं. कृति फैमेली एंटरटेनर फिल्मों के दर्शकों के बीच पहचान बनाने में कामयाब रही हैं.
ज़ुबीना के रूप में गौहर ने अपनी लेयर्ड और चैलेंजिंग किरदार में जमती हैं. उन्होंने फिल्म में एक, दो नहीं बल्कि तीन किरदार निभाए हैं और वे सब में शानदार है. सपोर्टिंग कास्ट में विनीत कुमार, जमील खान, यामिनी, मनोज बख्शी, गोविंद पांडे, सुमित सूरी, प्रियांशु सिंह दमदार लगे है. हर कलाकार को फिल्म में बखूबी तरीके से पेश किया गया है.
देवांशु का डायरेक्शन प्वाइंट पर है. उन्होने इस लब स्टारी को असंवेदनशील बनाए बिना कॉमेडी और सोशल एंगल के साथ बहुत अच्छी तरह से दिखाया है. मनोज कलवानी को 14 फेरे के लिए उनके शानदार लेखन के लिए श्रेय देना चाहिए. सिनेमैटोग्राफर रिजू दास बहुत अच्छे से अपना काम संभालते हैं. हालाँकि, मनन सागर की एडिटिंग में छोड़ा औक कसाव हो सकता था. फिल्म में बेवजह थोड़ी कन्फ्यूजन क्रिएट की गई है. राजीव वी भल्ला और JAM8 का म्यूजिक फिल्म की जान है और टोन से पूरी तरह मेल खाता है.
करीब 2 घंटे की फिल्म देखते हुए आपके चेहरे पर मुस्कान बनी रहेगी. वहीं कुछ सीन्स आपके दिल को भी छू जाएंगे. कहानी और स्टार कास्ट की दमदार परफोर्मेंट के लिए आप '14 फेरे' को देख सकते हैं.
पीपिंगमून फिल्म '14 फेरे' को 3 मून्स देता है.