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PeepingMoon Exclusive: वर्ल्ड एन्वायरमेंट डे पर 'स्पर्श गंगा' की सह-संस्थापक और एक्ट्रेस आरुषि निशंक ने अपनी मुहिम पर की बात, कहा- 'सिर्फ गंगा ही नहीं सभी नदियों की अहमियत समझना है जरूरी'

5 जून यानि वर्ल्ड एन्वायरमेंट डे. वैसे तो हम में से ज्यादातर लोग सिर्फ इस एक दिन को काफी एक्टिव हो जाते हैं लेकिन बहुत से लोग ऐसे हैं जो पूरे साल और काफी लंबे अरसे पृथ्वी को हरा भरा और पर्यावरण को बेहतर बनाए रखने की कोशिशों में जी जान से जुटे हुए हैं. ऐसा ही एक प्रेरणा से भर देने वाला नाम है आरुषि निशंक का. उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान में केंद्रीय शिक्षा मंत्री डॉ रमेश पोखरियाल निशंक की होनहार बेटी से अलग आरुषि की पहचान उनके अपने ढेर सारे नेक कामों की वजह से है. वो बॉलीवुड में भी लगातार अपना दखल बढ़ा रही हैं. वो समाजसेवी भी हैं, पर्यावरण कार्यकर्ता भी, कलाकार भी हैं तो एक लाजवाब कत्थक डांसर भी. स्वच्छ नदी गंगा के प्रति जागरुकता जगाना एक आंदोलन रहा है जिसका स्तंभ आरुषि निशंक रही है. अरुशी निशंक ने 2008 में स्पर्श गंगा अभियान के अभियान में सक्रिय रूप से शामिल होकर पर्यावरण के क्षेत्र में योगदान दिया है और गंगा को प्रदूषण और अशुद्धियों से मुक्त करने का संकल्प लिया.पीपिंगमून से खास बातचीत में आरुषि ने बात की अपने अब तक के सफर और आगे की प्लानिंग पर. पेश है इस बातचीत के खास अंश. 

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सवाल- 2008 में शुरू हुई एक गैर-लाभकारी पहल स्पर्श गंगा की सह-संस्थापक हैं तो, मेरा सवाल ये है कि जैसे आज के दौर में  ग्लोबल वॉर्मिंग की चुनौतिया  हैं..अमेजॉन के जंगल जले, पिछले हफ्ते अफ्रिका के जंगलों में आग लगी...ग्लेशियर्स के पिघलने के सिलसिला जारी है..वहीं उत्तराखंड में भी आपदाएं आती रहती हैं..भारत के लिहाज से किस तरह के काम करने की जरूरत है पर्यावरण को बचाने के लिए ?
जवाब- स्पर्श गंगा की शुरुआत 2008 में की गई थी. और तब से लेकर आज तक सिर्फ अपने देश के ही नहीं नहीं पूरी दुनिया के करोड़ों लोग इस मुहिम से जुड़े हुए हैं. 
आपने बहुत सही कहा कि अमेजॉन के जंगल हो या चाहे अफ्रीका के जंगलों में आग लगना हो, या ग्लेशियर का पिघलना हो, यह हमारे लिए बहुत बड़ी चुनौती के साथ चिंता का विषय है. जिसका जवाब हमें ढूंढना बहुत जरूरी है, और मैं हर बार यह बोलती हूं कि हमारे पास कोई प्लेनेट भी नहीं है, और हमें अपने ही प्लेनेट को ठीक करके चलना है. शुरुआत से हम देखें, अगर आपको कभी आपके टीचर ने एक पेंटिंग बनाने के लिए बोला हो तो हम बहुत सुंदर सी पेंटिंग बनाते हैं, जो आज भी हमारे आपके दिलों में तरोताजा हैं. हम अपनी पेंटिंग में हमेशा से खूबसूरत बर्फ से ढके पहाड़ बनाते हैं, खूबसूरत सी नीली नीली नदियां बनाते हैं, हरे हरे पेड़ बनाते हैं और प्यारे प्यारे पक्षी को उड़ते हुए दिखाते हैं, पर अनफॉर्चूनेटली यह जो हमारे दिमाग में खूबसूरत सी पेंटिंग है, आज कहीं खो सा रहा है. और इसका रीजन यही है कि जैसे आपने ग्लोबल वार्मिंग की बात की है तो इस पर मैं कहूंगी कि हर साल टेंपरेचर में इजाफा होता जा रहा है, जिसकी वजह से हम सब ग्लोबल वार्मिंग को लेकर सफर कर रहे हैं. नीली नदियों की मैं बात करूं तो 1.9 मिलियन कचरा हर रोज गंगा जी में डाला जाता है. पूरी दुनिया में 1.64 मिलियन लोग आज भी साफ पानी नहीं पी पाते हैं. हम अपनी इस मुहिम के तहत यही कोशिश कर रहे हैं कि जो हमने बचपन में नीले पानी को लेकर अपनी खूबसूरत पेंटिंग बनाई थी वह जल्द पूरी हो. और मुझे ऐसा लगता है कि इसके लिए जागरूकता बहुत जरूरी है, क्योंकि मुझे लगता है कि हमने कई बड़ी मुश्किलों से पार पाया है. इस समय हमारा देश कोरोना वायरस महामारी से जूझ रहा है. लेकिन जागरूकता फैलाने के बाद लोगों में इस बीमारी से लड़ने की हिम्मत आ रही है. ऐसे ही हम स्पर्श गंगा के माध्यम से लोगों को जागरूक करने की कोशिश कर रहे हैं. हमने इसके तहत बहुत जगह बहुत सारे पेड़ लगाएं है, वही हमारी टीम सिर्फ भारत ही नहीं बाकी देशों में भी जाकर नदियों को अशुद्धियों से मुक्त कराने पर काम कर रही है.

सवाल- आप एक ट्रेंड कत्थक डांसर हैं, समाजसेवा भी करती हैं, इंडस्ट्री से भी जुड़ी हैं और इसके अलावा आप क्या करना चाहती है ?
जवाब-  मैं एक ट्रेंड कथक डांसर हूं और मुझे कत्थक सिखाते हुए लगभग 16 17 साल हो गए हैं. मैंने 15 से ज्यादा देशों में जाकर कत्थक का प्रदर्शन भी किया है, और मैं जहां भी जाती हूं वहां लोगों को सिखा कर भी आती हूं. और मैंने कुछ स्पेशल कंपोजिशन्स भी बनाए हैं, जिसमें गंगा तरण भी शामिल है. हम इसमें कत्थक बैले के जरिए, लोगों के सामने गंगा की खूबसूरत कहानियों को लेकर आते हैं. जिससे हर उम्र, वर्ग और ओहदे के लोग इससे जुड़ जाते हैं, मैंने कई देशों में जाकर अपने देश की गंगा मां की खूबसूरती से लोगों को अवगत कराया. मैं चाहती हूं की इससे लोग गंगा ही नहीं बाकी भी नदियों की अहमियत समझें. इसके अलावा मैं सोशल एक्टिविस्ट भी हूं. मैं चाहती हूं हर जरूरतमंद तक मैं मदद पहुंचाऊ. इसके अलावा इंडस्ट्री से भी जुड़ी हुई हूं. मैं कई प्रोजेक्ट की को-प्रोड्यूसर भी हूं. हमने काफी चीज प्रोड्यूस भी की है. पिछले साल निराला जैसी रीजनल फिल्म को मैंने प्रोड्यूस किया था, यह फिल्म मेरे पिताजी के नोबेल पर आधारित थी. इसके अलावा हम कई और बड़े सब्जेक्ट पर भी काम कर रहे हैं. और मैं एक कलाकार भी हूं और रही आगे की बात तो बस भगवान जहां जहां भेजेगा, वहां वहां जाकर मैं अपने आप को प्रूफ करतीं रहूंगीं. बस मुझे अपने काम में अपना बेस्ट देना है. 

सवाल- टी-सीरीज़ के एलबम 'वफा ना रास आई' के साथ अपनी शुरुआत की है. इसे एक महीने से भी कम समय में 125 मिलियन बार देखा जा चुका है ? 
जवाब- यह मेरे लिए वास्तव में चुनौतीपूर्ण था क्योंकि यह मेरा पहला प्रोजेक्ट था. मैं शायद ही तकनीकी भाषा जानती थी लेकिन सह-अभिनेता और निर्देशक कॉर्पोरेट और मददगार थे. दूसरी बात यह है कि जनवरी के महीने में कश्मीर में शूट किया गया था. इतने अनुकूल मौसम में शूट करना वास्तव में कठिन था, लेकिन एक साथ वफ़ा ना रास आई की जर्नी बहुत अच्छी थी. 

सवाल- आपकी फिल्म 'Tarini' को लेकर क्या अपडेट है. फिल्म में अपने किरदार के बारे में बताइए ?
जवाब- यह प्रोजेक्ट मेरे दिल के बहुत करीब है. डेढ साल से ज्यादा तो इस प्रोजेक्ट पर सिर्फ रिसर्च किया था. हमें रिसर्च के दौरान बहुत सारी परमिशन लेनी पड़ी थी, क्योंकि मिनिस्ट्री ऑफ डिफेंस के अंडर का यह सब्जेक्ट है. और फिर प्रसून जी जैसे प्रखर व्यक्ति का इस प्रोजेक्ट से जुड़ना. उनके दिमाग में ये कहानी बहुत बार बन चुकी है. उनके ही गाइडेंस में लगभग 2 साल से हम इस प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं. अभी मैं इस के बारे में ज्यादा नहीं बता सकती हूं लेकिन हमने इसके लिए बहुत बड़े डायरेक्टर को साइन किया है. मैं अभी इसके बारे में ज्यादा नहीं बता सकती हूं पर हां यह बहुत बड़ा प्रोजेक्ट है और इस प्रोजेक्ट के बाद जरूर एक रिवोल्यूशन आएगा.

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